ब्रह्मपुत्र नदी उपर बनकर तैयार बोगीबील ब्रिज असम राज्य के दिब्रुगढ और धेमाजी जिले से गुजरता हैं। इस ब्रिज के बन जाने से असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच की दूरी कम हो जायेगी। 4.94 किलोमीटर लंबा यह ब्रिज भारत के धोला सढिया ब्रिज, बांद्रा वर्ली सी लिंक और महात्मा गांधी सेतु के बाद चौथे नंबर का सबसे लंबा पुल है। रेल कम रोड इस ब्रिज के उपर के हिस्से में 3 लेन की सडक बनाईं गई है और नीचे के हिस्से में 2 रेलवे ट्रैक से लैस भारत का सबसे अनुठा ब्रिज है, डबल डेकर यह ब्रिज जीस पर बसें, ट्रकें जैसे सड़क पर चलने वाले वाहन और रेलवे ट्रैक पर चलने वाली ट्रेनें एक साथ उपर नीचे चलेंगे इस लिहाज से यह ब्रिज भारतीय इंजीनियरिंग की अनोखी मिसाल है ।
बोगीबील पुल भारत की चीन से सटी सीमा की सुरक्षा के लिए बेहद खास माना जा रहा है। इस पुल के बनने से असम और अरुणाचल प्रदेश की दूरी कम होगी, सेना की जरुरतों के नजरिए से काफी उपयोगी साबित होगा, इस पुल से भारतीय सेना की भीमकाय टेंको को भी आसानी से ले जाया जा सकता है। सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार यह पुल भारत को चीन की ओर से मिलने वाली चुनौतियों का जवाब है।
बोगीबील पुल की विशेषताएं :
- इस पुल को बनाने में 4857 करोड़ रुपए का खर्च हुआ है ।
- उपर 3 लैन सडक और नीचे 2 रेलवे ट्रैक वाला यह डबल डेकर ब्रिज है।
- इस पुल पर से सेना की भीमकाय टेंको को भी आसानी से ले जाया जा सकता है और लड़ाकू विमानों को भी उतारे जा सकतें हैं।
- बोगीबील पुल का शिलान्यास 1997 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री एच.डी. देवगौड़ा ने किया था।
- 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई ने इस पुल का निर्माण कार्य शुरू करवाया था।
- इस पुल की लंबाई 4.94 किलोमीटर की है।
- भारतीय इंजीनियरिंग की ईस मिसाल पुल का निर्माण युरोपीयन मानकों के आधार पर किया गया है।
- बोगीबील ब्रिज के निर्माण में इस्तेमाल की गई सामग्री जंगरोधी है।
- असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच की दूरी कम करने वाला यह पुल 120 वर्षों तक संपूर्ण रुप से सुरक्षित है।
- इस ब्रिज की बुनियाद में 42 डबल डी वेल फाउंडेशन खंभे है जीन्हे नदी में 62 मीटर तक गाड़ा गया है, जो इस ब्रिज की मजबूती को ओर बढ़ा देता है।
- 42 डबल डी वेल फाउंडेशन खंभों की शक्ति से यह ब्रिज भयानक बाढ़ और रिक्टर स्केल पर 8 की तीव्रता के भुकंप के झटकों को भी आसानी से सहन कर सकता है।
- बोगीबील पुल के निर्माण से पूर्वी असम से अरुणाचल प्रदेश के बीच का सफर केवल 4 घंटे में पूर्ण हो जाएगा अर्थात् 10 घंटे कम हो जायेंगे।
- यह पुल ब्रह्मपुत्र घाटी के उत्तरी और दक्षिणी सिरों को जोड़ेगा। पहले धेमाजी से दिब्रुगढ की 500 किलोमीटर की दूरी तय करने में 34 घंटे लगते थे वो अब केवल 100 किलोमीटर तक की हो जाएगी।
- इस पुल का निर्माण दिल्ली से दिब्रुगढ की यात्रा में 3 घंटे कम हो जायेंगे।
बोगीबील ब्रिज का इतिहास
बोगीबील पुल के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि इस ब्रिज की जड़ें 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के नेतृत्व में बनी भारत सरकार और श्री प्रफुल्ल कुमार महंत के नेतृत्व में बनी ओल असम स्टुडेन्ट युनियन (AASU) के बीच हुए असम एकोर्ड (Asam Accord) में मिलती है। असम एकोर्ड के अंतर्गत बोगीबील पुल असम में स्थापित कीये जाने वाले बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट में से अति महात्वाकांक्षी और महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट था। इस प्रोजेक्ट को नौवीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, भारत सरकार ने इस पुल की योजना को 1997-98 में स्वीकृत किया और उस समय के प्रधानमंत्री श्री एच.डी. देवगौड़ा ने जनवरी 1997 में इस ब्रिज का शिलान्यास किया था। नौवीं पंचवर्षीय योजना जीसे अप्रैल 1997 से शुरू होना था उसे देश में राजनीतिक संकटों की शृंखला के कारण नौवीं पंचवर्षीय योजना निर्माण और अनुमोदन में ही 2 वर्षों की रुकावट आ गई और अंत में फरवरी 1999 में National Development Council (NDC) ने मंजूरी दे दी।
वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई ने इस पुल के निर्माण कार्य का शुभारंभ किया, एक दो वर्ष पुल निर्माण का कार्य औसतन गति से चल रहा था, इसके बाद पुल निर्माण कार्य की गति और प्रगति काफी धीमी होती चली गई, निर्माण कार्य शुरू होने के करीब पांच वर्ष बाद भारत सरकार ने इस पुल की योजना को राष्ट्रीय योजना का दर्जा दिया, तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह के अनुसार अब इस योजना की कुल बजट राशि का 75% भुगतान केन्द्रीय वित्त मंत्रालय करेगा जबकि बाकी के हिस्से का भुगतान रेलवे मंत्रालय करेगा साथ ही साथ इस पुल को पुरा करने का लक्ष्य वर्ष 2009 निर्धारित किया गया।
आखिर 1985 में जिस ब्रिज बनाने की योजना का वादा किया गया था और जिसे वर्ष 2002 तक पूरा कर राष्ट्र को समर्पित हो जाना चाहिए था उस ब्रिज के निर्माण को पूरा करने की अवधि 7 वर्ष बढ़ गई और साथ ही साथ इस योजना के बजट राशि भी बढ़ती गई, शुरुआत में बोगीबील पुल की लागत 17.67 बिलियन डॉलर आंकी गई थी जो योजना पुरी करने की अवधि बढ़ाने की वजह से करीब दोगुनी 32.30 बिलियन डॉलर हो गई थी ।
आखिर जो पुल 5 वर्षों में ही बन जाना चाहिए था, उसे बनाने की समय-सीमा ओर 7 बढ़ाई गई परन्तु वो ब्रिज का निर्माण संपूर्ण नहीं हो पाया, शुरुआत में जीस बोगीबील पुल की योजना का खर्च 17.67 बिलियन डॉलर आंका गया था उसे बढ़ाकर 32.30 बिलियन डॉलर कर दिया गया परंतु इस ब्रिज का निर्माण संपूर्ण नहीं हो पाया।
बोगीबील पुल शुरुआत की निर्धारित खर्च राशि 17.67 बिलियन डॉलर को बढ़ाकर 32.30 बिलियन डॉलर करने के बाद भी आखिर 49.96 बिलियन डॉलर रुपयों का खर्च करने के बाद, उसके वादे के 32 वर्षों के बाद, शुरुआत में निर्धारित समय सीमा वर्ष 2002 के 16 वर्षों बाद, और दोबारा निर्धारित समयावधि 2009 के 9 वर्षों बाद 25 दिसंबर 2018 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया।
प्रश्न अवश्य पुछा जाना चाहिए कि क्यों देरी हुई ? किसकी वजह से देरी हुई ? क्या देश की आमदनी ऐसे ही लुटा दी जाएगी ? क्यों हमारी सरकारी योजनाएं तय समय-सीमा में पूर्ण नहीं हो पाती ? राजनितिक संकटों की शृंखला के निर्माता और निर्देशक कौन थे ? और है ?
उपर उठाये गये प्रश्नों के उत्तर कृपया जरुर दे।