आज भारत के प्रधानमंत्री, अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी, वर्तमान भारत के शिल्पकार, दूरद्रष्टा, विघटीत स्वतंत्र भारत का एकीकरण करने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की 182 फ़ीट ऊंची प्रतिमा, जो की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा होंगी “एकता की प्रतिमा” स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के चरण-स्पर्श कर राष्ट्र की ओर से सरदार वल्लभभाई पटेल को ॠणस्वीकारांजली देंगे इससे आगे बढ़कर कहें तो स्वतंत्रता के पश्चात सरदार पटेल को हुए उन सभी अध्यायों का राष्ट्र के द्वारा कीया पश्चाताप ही हैं।
स्टेच्यु ऑफ युनिटी का भूमिपूजन 2013
सरदार सरोवर परियोजना नर्मदा बांध के पास साधु बेट पर रेकोर्ड 56 महिनों में ही तैयार किया गया है। विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा का सबसे पहला विचार 7 अक्टुबर 2007 में किया गया और इस विचार को कार्यान्वित करने हेतु गुजरात सरकार ने सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय एकता ट्रस्ट (SVPRET) की स्थापना की। सरदार वल्लभभाई पटेल की 138 वीं जन्मजयंती 31 अक्टूबर 2013 के दिन वर्तमान प्रधानमंत्री और उस समय के गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ने भूमि पूजन करके इस प्रतिमा की निंव रखी । स्टेच्यु ऑफ युनिटी के नाम पर अलग-अलग कार्यक्रमों की एक मुहिम चलाई गई ।
किसानों के द्वारा लोहे का समर्पण
भारत के 6 लाख गांवों के किसानों ने इस योजना के लिए करीब 5000 टन लोहे के खेत के औजारों का समर्पण किया। बाद में इस लोहे को शुद्ध करने के बाद परियोजना के लिए उपयोग किया गया।
रन फॉर युनिटी (Run for Unity)
15 दिसंबर 2013 को समग्र भारत में अनेक जगहों पर रन फॉर युनिटी Run for Unity मैराथन दौड़ का आयोजन किया गया जिसमें हजारों लोगों ने स्वयंभु रजिस्ट्रेशन कर हिस्सा लिया।
सुराज पीटीशन
स्टेच्यु ऑफ युनिटी परियोजना के अंतर्गत सुराज पीटीशन का आयोजन किया गया जिसमें करीब 20 मिलियन नागरिकों ने सुराज के लिए अपने विचार लिखें और अपने हस्ताक्षर किए। सुराज पीटीशन पर हस्ताक्षर करके भारत के नागरिकों ने विश्व की सबसे ज्यादा लोगों द्वारा हस्ताक्षर की गई सबसे बड़ी पीटीशन का रेकॉर्ड बना दिया।
स्टेच्यु ऑफ युनिटी के विषय में पिछले कुछ दिनों से बहुत सारी जानकारियां प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, सायबर मिडिया और सोशल मीडिया मिडिया के जरिए न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व में प्रकाशित, प्रसारित एवं प्रचारित की जा रही है इसलिए उसी जानकारियों का पिष्टपेषण करना उचित नहीं होगा और स्वतंत्रता संग्राम में तथा स्वतंत्रता के पश्चात के सरदार वल्लभभाई पटेल का राष्ट्र के प्रति योगदान समग्र भारत जानता ही है इसलिए उसे भी दोहराना नहीं चाहुंगा, परंतु स्वतंत्रता के पश्चात भारत के लोह पुरुष कहे जाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल को इतिहास से भुलाने, मिटाने और अप्रस्तुत करने की जो कोशिशें हुईं उसे जानना आवश्यक है क्योंकि जब तक उन घृणित प्रयासों की जानकारी नहीं होंगी स्टेच्यु ऑफ युनिटी समज में नहीं आ सकता।
कोंग्रेस प्रेसिडेंट और स्वतंत्र भारत केप्रधानमंत्री पद के लिए हुआ अन्याय
सरदार वल्लभभाई पटेल प्रति अन्याय की शुरुआत स्वतंत्रता से पहले ही हो चुकी थी जब 1929 और 1937 में गांधीजी ने जवाहरलाल नेहरू को सरदार पटेल के बदले कोंग्रेस के प्रमुख के रूप में पसंद कीया था। स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के लिए कोंग्रेस की राज्य/प्रदेश की 15 कमेटियों में से 12 ने सरदार वल्लभभाई पटेल की दरख्वास्त की थी और बाकी की 3 कमेटी ओं ने कीसी भी नाम की दरख्वास्त नहीं की थी बावजूद इसके स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बनाया गया। यह निर्णय जब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सुना तब उन्होंने कहा था “Gandhi had once again sacrificed his trusted lieutenant in favour of the ‘glamorous Nehru’.“
संसद परिसर में सरदार पटेल की प्रथम प्रतिमा नहीं स्थापित की गई।
सरदार पटेल की मृत्यु 1950 में हुई उसके 13 वर्ष पश्चात 1963 में सरदार पटेल का पुतला दिल्ली के पटेल चौक में लगाया गया। इस प्रतिमा लगाने के पीछे के कुछ तथ्य जानने आवश्यक है। सरदार पटेल की प्रतिमा की तख्ति पर सरदार के विषय में क्या लिखा जाए ? ऐसी चर्चा हुई तब श्री जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव कीया के “Architect Of Indian Unity” ऐसा लिखा जाए, जो मंजुर भी किया गया, सुनने में जो कीतना अच्छा लगता है परंतु जब प्रतिमा का अनावरण किया गया तब तख्ति पर लिखा मिला “Architect Of Nation”. इस प्रतिमा का अनावरण सरदार पटेल की 88 वीं जन्मजयंती की प्रतिक्षा ना करते हुए करीब डेढ़ माह पहले 18 सितंबर 1963 को ही संसद के प्रांगण में न रखकर संसद मार्ग के दुसरे चौराहे पर कर दिया गया प्रश्न यह उठता है कि सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा को संसद के प्रांगण में क्युं नहीं स्थापित किया ? और अनावरण के लिए उनके जन्मदिन तक प्रतिक्षा क्यों नहीं की गई ? जबकि तीन महीने पहले ही जवाहरलाल नेहरू के पिता एवं कोंग्रेस के पूर्व प्रमुख श्री मोतीलाल नेहरू की प्रतिमा का अनावरण उनके 102 वें जन्मदिन 6/05/1963 पर संसद के प्रांगण में ही कीया गया था।
संसद के प्रांगण में नेताओं की प्रतिमाओं का इतिहास और सरदार पटेल
संसद के प्रांगण में सबसे पहली 12.5 फीट की प्रतिमा जवाहरलाल नेहरू के पिता एवं कोंग्रेस के पूर्व प्रमुख मोतीलाल नेहरू की 1963 में लगाई गई, बाद में श्री गोपालकृष्ण गोखले की प्रतिमा लगाई गई जीसकी ऊंचाई 3.5 फ़ीट थी। स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की 18 फ़ीट की प्रतिमा 1967 में, महात्मा गांधी की प्रतिमा 1993 में, जवाहरलाल नेहरू की प्रतिमा 1995 में की स्थापना की गई। 1996 में संसद के प्रांगण में श्रीमती इंदिरा गांधी और मौलाना अबुल कलाम आजाद की 18-18 फ़ीट की प्रतिमा ओं का अनावरण किया गया। उसके बाद सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा 1998 में संसद के प्रांगण में स्थापित की गई, यहां इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि 1998 में भारत के प्रथम गैर-कोंग्रेसी प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेई सत्तारूढ़ थे और सरदार वल्लभभाई पटेल की प्रतिमा प्रायोजित की थी गुजरात सरकार ने वो भी गैर-कोंग्रेसी थी ।
संसद परिसर में तैलचित्रों का इतिहास अर्थात् सरदार पटेल की अवगणना का दस्तावेज
सरदार पटेल की प्रतिभा और उनके राष्ट्र के प्रति उनके योगदान को भुलाने की जो कोशिशें की गईं उसका साक्षी संसद परिसर भी है। संसद परिसर में भारत के इतिहास के महान राष्ट्रप्रेमी ओं के तैल चित्र लगाएं जाते हैं।
संसद परिसर में सबसे पहला तैल चित्र महात्मा गांधी का 28/08/1947 में लगाया गया। बाद में श्री बालगंगाधर तिलक का 28/07/1956 में, श्री लाला लाजपतराय का 17/11/1956 में तैल चित्र लगाएं गये। 30/03/1957 में मोतीलाल नेहरू का तैल चित्र लगाया गया। मौलाना अबुल कलाम आजाद की मृत्यु 22/02/1958 को हुई और केवल आठ दिन बाद उनका तैल चित्र संसद परिसर में लगाने की दरख्वास्त की गई 16/12/1959 में उनका तैल चित्र लगाया गया। सरदार वल्लभभाई पटेल की मृत्यु 15/12/1950 को हुई और आठ वर्षों के बाद उनका तैल चित्र लगाया गया 23/04/1958 के दिन।
- श्री जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु 27/05/1964 को हुई और उनका तैल चित्र 05/05/1966 में लगाया गया।
- श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु 31/10/1984 के दिन हुई और उनका तैल चित्र लगाया गया 19/04/1987 में जब 1988-89 में चुनाव आ रहे थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के सीधे आरोप लगाये गये थे।
- श्री राजीव गांधी की मृत्यु 21/05/1991 में हुई और उनका तैल चित्र 20/08/1993 में ही संसद परिसर में स्थापित किया गया।
- डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का परिनिर्वाण 06/12/1956 में हुआ और तैल चित्र लगाया गया 12/04/1990 जब भाजपा समर्थित गैर कोंग्रेसी सरकार सत्तारूढ़ थी।
राष्ट्रीय संग्रहालयों की स्थापना और सरदार पटेल की अवगणना का इतिहास
स्वतंत्रता के बाद गांधीजी जहां रहा करते थे ऐसे बिरला हाउस और मुम्बई के मणीभुवन को उसके मालिकों से लेकर संग्रहालय बना दिया गया, जवाहरलाल नेहरू जिस घर में रहते थे उस तिनमूर्ति भवन का भी संग्रहालय बना दिया गया परंतु सरदार वल्लभभाई पटेल का खुद का घर नहीं था और दिल्ली में बनवारीलाल जी के घर में रहते थे वहां आजतक कोई संग्रहालय नहीं बनाया गया।
भारत रत्न सन्मान और सरदार पटेल की अवगणना
भारत रत्न सन्मान भारत का सबसे बड़ा नागरिक पुरस्कार है। इस सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने में भी सरदार वल्लभभाई पटेल को अन्याय कीया गया। भारत रत्न सन्मान देने का इतिहास देखें तो एक परिवार के महिमा मंडन करने करने की कोशिश जितनी स्पष्ट हो जाती है साथ साथ सरदार वल्लभभाई पटेल के राष्ट्र के प्रति योगदान को भुलाने, मिटाने की कोशिश भी उतनी ही उजागर होती है। कुछ तारीखें और तवारिख देखते हैं भारत रत्न सन्मान की………
- श्री जवाहरलाल नेहरू को भारत रत्न 1955 में मिला जब वो खुद प्रधानमंत्री थे।
- श्रीमती इंदिरा गांधी को भारत रत्न सन्मान 1971 में दिया गया जब वो खुद प्रधानमंत्री थीं।
- श्री राजीव गांधी की मृत्यु 21 मे 1991 को हुई और एक ही महीने के बाद उनको भारत रत्न सन्मान मिल गया।
- यह तो भारत के नागरिकों को मिलें भारत रत्न सन्मान की बात है विदेशी नागरिक नेल्सन मंडेला को 1990 में दिया गया।
- मदर टेरेसा को 1980 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया ।
- भारत के एक राज्य के मुख्यमंत्री और फिल्मएक्टर एम.जी. रामचंद्रन को 1988 में भारत रत्न दिया गया।
उपरोक्त तवारिख खुद की साक्षी है सरदार पटेल के अपमान की। प्रश्न यह है कि सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत रत्न से कब सन्मानित कीया गया ?
सरदार वल्लभभाई पटेल को 1991 में राजीव गांधी के साथ भारत रत्न सन्मान दिया गया।
इससे एक तरिके से सरदार वल्लभभाई पटेल के राष्ट्र के प्रति योगदान और राजीव गांधी के योगदान को समान दिखाने की कोशिश की गई जो कि सरदार पटेल का एक द्रष्टिकोण से अपमान ही था।
इस पुरे लेख को लिखने का उद्देश्य सरदार वल्लभभाई पटेल को हुए अन्यायों को याद करते हुए यह समजने का प्रयास था कि उनकी 182 मीटर की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा Statue of Unity एकता की प्रतिमा केवल एक प्रतिमा नहीं है और ना ही इस प्रतिमा को प्रतिमा के स्वरुप में देखा जाए ।
Statue of Unity एकता की प्रतिमा समर्थ भारत की सरदार वल्लभभाई पटेल को दी गई ऋणांजलि है।
Statue of Unity एकता की प्रतिमा सरदार वल्लभभाई पटेल का राष्ट्र के प्रति योगदान का स्वीकार है।
Statue of Unity एकता की प्रतिमा सरदार वल्लभभाई पटेल की अवगणनाओं का राष्ट्र का कृतज्ञतापूर्वक किया प्रायश्चित है।
भारत के नामी कवि श्री हरिवंशराय बच्चन की सरदार वल्लभभाई पटेल पर लिखी कविता लिखकर मैं सरदार पटेल को नतमस्तक हो वंदन करता हुं।
यही प्रसिद्ध लोह का पुरुष प्रबल,
यही प्रसिद्ध शक्ति की शिला अटल,
हिला इसे सका कभी न कोई शत्रु दल,
पटेल पर स्वदेश को गुमान है।
सुबुद्धि उच्च श्रुंग पर किए जगह,
ह्रदय गंभीर है समुद्र की तरह,
कदम छुए हुए जमीन की तरह,
पटेल देश के निगाह-बान है ।
हरेक पक्ष को पटेल तोलता,
हरेक भेद को पटेल खोलता,
दुराव या छिपाव से उसे गरज ?
कठोर नग्न सत्य बोलता,
पटेल हिंद के निडर जबान है
पटेल हिंद के निडर जबान है
1 टिप्पणी:
જી ખૂબ જ સુંદર જાણકારી...
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