सोमवार, 23 जनवरी 2023

6,00,000 पाउंड देकर क्या छुपा रही है ब्रिटिश सरकार ?




कोइ दस्तावेज को गुप्त रखने की कीमत क्या हो सकती है ? यूके सरकार  कुछ दस्तावेजो को गुप्त रखने के लिए और उसे सार्वजनिक न करने  के लिए 6,00,000 पाउंड (लगभग 800,000 डॉलर) का भुगतान कर रही है। क्या है येह दस्तावेज ? ऐसा क्या है उन दस्तावेजो में ? कौन सा रहस्य छुपा है उन दस्तावेजो में जिसे युके की सरकार सार्वजनिक न करने के लिए इतना बडा मुल्य चुका रही है ?: 


इन सभी प्रश्नो के उत्तर भारत की स्वतंत्रता के समय के दंपत्ति के पास छुपे है, और वो दंपत्ति है ब्रिटिश भारत के अंतिम वाइसरोय और स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और उनकी पत्नी लेडी माउंटबेटन, उनकी डायरीयां और दोनों के बीच कुछ के पत्राचार को युके की सरकार सार्वजनिक करना नही चाहती और उसके लिए इतनी बडी किमत चुका रही है, लेकिन आखिर मामला क्या है ? किस को दे रही है ब्रिटन की सरकार इतनी बडी राशि ? 

कीस कागजात को छुपाना चाहती है ब्रिटिश सरकार ?

यूके सरकार इन कागजातों को कीसी भी तरह दफनाने की, छुपाने की, सार्वजनिक नहीं करने की कोशिश कर रही है, विशेष रूप से विभाजन के वर्षों से जुडे कागजात को दफनाना, छुपाना चाहती है और नही चाहती के यह डायरी और पत्राचार सार्वजनिक हो। ब्रिटिश सरकार को लगता है की यह डायरीयां और पत्राचार ब्रिटिश शाही परिवार की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकते है और इसीलिए ब्रिटिश लेखक एंड्रयू लॉनी के खिलाफ एक अदालती लड़ाई में ब्रिटिश सरकार इतनी बडी राशि का भुगतान कर रही है। ब्रिटिश सरकार ऐसा मानती है की लोर्ड माउंट्बेटन और उनकी पत्नी लेडी एडविना माउंट्बेटन की डायरीयां और उनकी बीच के पत्राचार ब्रिटेन के पाकिस्तान और भारत के बीच के रिश्तों को खतरे में डाल सकता है। 





माउंटबेटन और लडी एडविना 

ब्रिटिश सरकार किस कारण से लोर्ड माउंटबेटन और उनकी पत्नी लेडी एडविना के पत्राचार और डायरीयां को इतना महत्व दे रही है ? लोर्ड माउंटबेटन और उनकी पत्नी लेडी एडविना की डायरीयां और पत्राचार ब्रिटिश शाही परिवार की प्रतिष्ठा को कैसे नुकसान पहुंचा सकते है ? लोर्ड माउंटबेटन का ब्रिटन के शाही परिवार से क्या संबंध है ? यहाँ यह जानना आवश्यक है की महारानी विक्टोरिया के प्रपौत्र थे। लोर्ड माउंटबेटन एक रॉयलिस्ट थे और जैसे की ब्रितिश रोयल परिवार का नियम है की परिवार के सदस्य को  ब्रिटिश सेना में निश्चित समय के लिए अपनी सेवा देनी  पडती थी, उस नियम का पालन करते हुए लोर्ड माउंटबेटनने भी रॉयल नेवी में अपनी सेवा दी थी। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नौसेना की कमान संभाली और ब्रिटिश राज में विभिन्न पदों पर रहे। वह भारत के अंतिम वायसराय भी बने। 1922 में दिल्ली में ही माउंटबेटन की मुलाकात एडविना नाम की एक युवती से हुई थी। उन्होंने तब शादी करने का फैसला किया, जिसमें कथित तौर पर कई उतार-चढ़ाव आए। दावा किया गया था कि दोनों के अन्य लोगों के साथ अफेयर थे परंतु माउंटबेटन और एड्विनाने लग्न किये। अब देखा जाए तो माउंटबेटन दंपति की शादी किसी से छिपी नहीं थी फीर ऐसा क्या है जो ब्रिटिश सरकार छिपाने की कोशिश कर रही है ?




भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु और एडविना के पत्र का अंश  

लेडी माउंटबेटन वैसे मिलनसार थी और उनके काफी मित्र थे एड्विना के करीबी दोस्तों में से एक भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू भी थे। नेहरु और एड्विना की मित्रता के अनेक किस्से है जो समय समय पर चर्चा में आते रहेते है । एड्विना और जवाहरलाल नेहरु में पत्राचार होते थे यह भी सार्वजनिक है, कुछ पत्र ऐसे भी है जो सार्वजनिक भी है । एड्विना और जवाहरलाल नेहरू के बीच हुए पत्राचार में से एक पत्र WION न्युज के पास था जिसका संदर्भ देते हुए WION न्युजने दावा किया है की उस पत्र में, एडविनाने नेहरु को लिखा था, "आपने मुझे शांति की एक अजीब भावना के साथ छोड़ दिया। शायद मैं आपके लिए वही लायी हूँ? "मुझे आज सुबह आपको ड्राइव करते हुए देखते हुए नफरत हुइ। जवाहरलाल नेहरू ने इसका उत्तर दिया  "जीवन एक नीरसता है,"।




कीसने मांगे ब्रिटिश सरकार से माउंटबेटन और लडी एदविना के वो कागजात ?

माउंटबेटन के कागजात जैसे एक खजाने की निधि के समान हैं उस में इतिहास है और कथित तौर पर बहुत सारे घोटाले हैं। इसलिए, कुछ साल पहले, लेखक एंड्र्यु लॉनीने जब इन कागजातों पर किसी प्रकार की रोक न करते हुए ब्रिटिश सरकार से मांगे, तो सरकार ने उन्हें उपकृत करने से इनकार कर दिया। लेकिन लेखक एंड्र्यु लॉनी ने सरकार के नकारात्मक उत्तर को ही नकार दिया और उन्होंने अंग्रेजों के सूचना की स्वतंत्रता के कानून का हवाला दिया और सरकार को माउंटबेटन के सभी कागजातों में से कम से कम 99.8 प्रतिशत को जारी करने के लिए मजबूर कर दिया, जबकि सरकारने बाकी के कागजातों का खुलासा करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। 

क्या रह्स्य है नकारे गये कगजातों में ?

ब्रिटिश सरकारने जिस बाकी के कागजातों का खुलासा करने से स्पष्ट इनकार कर दिया वह कागजात कथित तौर पर 1947 और 1948 के वर्षों के दस्तावेज हैं, जिनमें लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन की डायरी और दोनों के बीच कुछ पत्राचार शामिल हैं। इस दंपत्ति को अपने विचारों को बिना कोइ शब्द चोरी किये, प्रमाणिकता से कागज़ पर लिखने की आदत थी। अपनी आदत को पुरा करने के लिए दोनों डायरी लिखते थे, दोनों ने चिट्ठियों में अपने मन की बातें एक दुसरे को लिखे पत्रोमें स्पष्ट रुप से लिखी है। 1942 में लॉर्ड माउंटबेटन ने अपनी पत्नी को यह लिखा था: "अतिप्रिय एडविना, मुझे लगता है कि जीवन के सबसे कठिन सप्ताह के दौरान दो बार तुम्हें छोड़ना पड़ा। मुझे डर है, जैसा कि मैंने एक बार तुमसे पहले भी कहा था, तुम्हें एक नाविक से शादी नहीं करनी चाहिए थी। मैं अच्छी अच्छी बातें कहने का आदी नहीं हुं और मैं आपके अधिकांश अन्य प्रशंसकों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की उम्मीद नहीं कर सकता। परंतु मुझे लगता है कि मुझे यह अवश्य कहना चाहिए जो मैं सोचता हुं कि तुम वास्तव में भव्य और बहुत प्यारी और मधुर हो। माउंटबेटन ने भारत के विभाजन के दौरान हुइ सारी राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, सरहदीय और अन्य सभी उठापटक के साक्षी ही नही थे अपितु बहुत सारी बातो में मुख्य संचालक भी थे। माउंटबेटन और उनकी पत्नी लेडी माउंटबेटन को अपने विचारों बिना कीसी जिजक लिखने की आदत थी, ब्रिटिश सरकार को यह शंका है की उनकी डायरियों सार्वजनिक करने से वो सारी बातों का खुलासा हो सकता है जो उस समय साजा नही किये गये और इसी कारण  ब्रिटेन इसे साझा करने में सहज नहीं है। उनकी डायरियों में नेहरू, मोहम्मद अली जिन्ना, महात्मा गांधी और भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा खींचने वाले सर सिरिल रेडक्लिफ के बारे में माउंटबेटन के विचार हो सकते हैं। माउंटबेटन, शाही परिवार के एक बहुत ही प्रभावशाली सदस्य, ड्यूक ऑफ एडिनबर्ग प्रिंस फिलिप के मामा थे। वह तत्कालिन प्रिंस ऑफ वेल्स, प्रिंस चार्ल्स और वर्तमान किंग चार्ल्स के लिए एक पिता समान थे, दोनों बहुत करीब थे। माना जाता है कि माउंटबेटन ने प्रिंस चार्ल्स के निजी जीवन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी, चाहे वह तत्कालीन प्रेमिका कैमिला पार्कर बाउल्स के साथ उनका अफेयर हो या डायना के साथ उनकी शादी। शाही परिवार प्यार से माउंटबेटन को "अंकल डिकी" कहता था। और वर्तमान किंग चार्ल्स माउंटबेटन की डायरी लिखने की आदत के बारे में भलीभांती जानते थे। ऐसा कहा जाता है कि शाही परिवार के पास उनके कुछ दस्तावेज भी थे। लेकिन परिवार में किसने सोचा होगा कि अंकल डिकी की डायरी एक दिन सार्वजनिक खजाने को खाली करना शुरू कर देगी? अब तक, यूके सरकार ने माउंटबेटन के विचारों को दुनिया से छिपाने की कोशिश करते हुए, उन्हें छुपाने के लिए 800,000 डॉलर खर्च किए हैं। 

क्या माउंटबेटन दंपत्ति के पत्राचार और डायरीयां कभी सार्वजनिक होगी ?

अभी, लंदन में एक मुकदमा चल रहा है जो यह निर्धारित करेगा कि ब्रिटेन के शाही परिवार और ब्रिटन की कैबिनेट की चिंताओं के बावजूद माउंटबेटन दंपत्ति की सभी निजी डायरियों और पत्रों को जनता के लिए जारी किया जाना चाहिए या नहीं।

शनिवार, 7 जनवरी 2023

विश्व नेता भारत का प्रतिबिंब G-20 का अध्यक्ष भारत




अमेरिका, यूरोपीय संघ सहित रूस, चीन, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब, जर्मनी, इडोनिशिया, इटली, मेक्सिको, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, तुर्की जैसे देशों से बना संगठन है जी-20, यह ऐसे देश है जो विश्व जीडीपी का 85 प्रतिशत, विश्व कारोबार का 75 प्रतिशत हिस्सा समेटे हुए है, इतना ही नहि विश्व की 60 प्रतिशत जनसंख्या जी-20 देशों में ही रहती है भारत इतने सामर्थ्यवान एवं बड़े समूह की अध्यक्षता एक दिसंबर से कर रहा है। ऐसे सामर्थ्यवान देशो के संगठन जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलना भारत के लिए एक बड़ा अवसर है। जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलना यह केवल संजोग नही है परंतु, विश्व व्यवस्था के इन समृद्ध देशो के संगठन जी-20 देशों के बीच भारत के सामर्थ्य की स्वीकार्यता स्पष्ट तौर पर दर्शाता है। इस मौके का उपयोग करते हुए भारत को विश्व कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और इस विचार को स्पष्ट करते हुए ‘भारत के पास विश्व कल्याण, शांति एवं पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान है।" इस बात को विश्व के समक्ष उजागर करते हुए हमने एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य की जो थीम दी है, उससे वसुधैव कुटुंबकम् के लिए हमारी प्रतिबद्धता जाहिर होती है।’ बिना किसी संदेह के जी-20 को विश्व नेतृत्वकर्ता समूह के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है।



भारत की प्रमुख और प्रभावी होती भूमिका

गत दिनों इंडोनेशिया के बाली में आयोजित जी-20 देशों की बैठक में और पिछले दिनों उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के सम्मेलन में भी यह साफ तौर पर दिख यहा था की विश्व मंचों पर भारत की प्रमुख और प्रभावी होती भूमिका को अब विश्व के प्रमुख देश स्वीकारने लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत में जब कहा कि "यह युद्ध का युग नहीं है" तो उस पर विश्व आश्चर्यचकित रह गया था, क्योंकि भारत हथियारों और तेल की आपूर्ति के लिए बहुत हद तक रूस पर निर्भर है। भारत जितना इंधन आयात करता है  उसमे रूस से खरीदा जाने वाला ईंधन 19% से बढकर 23% हुआ है, भारतीय मिलिट्री के करीब 86 फीसदी उपकरणों का सीधा संबंध रूस से है, कुछ उदाहरण देखते है भारत ने रूस से 125 एंतोनोव एन-32 कार्गो प्लेन खरीदे थे जिनमें से 105 अब भी काम कर रहे हैं, इस प्लेन्स को अत्याधुनिक बनाया जा रहा है, भारत ने रूस के साथ AK-203 असॉल्ट राइफल बनाने की 5 हजार करोड़ रुपये की डील की है.जिसके तहत 6.01 लाख राइफल भारत में बनेगी, जबकि 70 हजार राइफल रूस से ही आएगी, भारत के कइ जंगी जहाजो पर रुस द्वारा विकसित की गइ घुमने वाली तोप यानी क्लोज-इन वेपन सिस्टम रोटरी केनन, भारतीय वायुसेना के सबसे घातक लड़ाकू विमानों में से एक मिग-29 मिकोयान (MiG-29 Mikoyan) को रूस ने ही बनाया है और फिलहाल इसके तीन वैरिएंट्स भारत के पास मौजूद हैं, जिसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने अत्याधुनिक बनाया है और भारतीय वायुसेना में ऐसे 272 विमान मौजूद ऐसा लडाकु विमान सुखोई 30एमकेआई भी रुस से ही भारत ने खरिदा है और जिसे भारत ने जिसका नाम बदलकर भीष्म रखा है ऐसी मेइन बैटल टेंक टी-90 टेंक जिसके लिये भारतने रुस के साथ डील की है तिसके तहत 2025 तक 1675 भीष्म टेंक ड्युटी पर तैनात कर देगा यह टेंक भी रुस्ने ही बनाइ है, इस तरह से रुस के साथ गहरे रक्षा संबंध होने के बावजुद भारतने जो कहा उससे विश्व यह मानने लगा है की भारत अब किसी अन्य देश के दबाव में आकर अपने फैसले नही लेता बल्कि भारत के निर्णय विश्व हितऔर स्व के परिप्रेक्ष्य में लेता है.   

भारतीय कूटनीति

बाद में एक कार्यक्रम में व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि "भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है और मोदी एक देशभक्त राजनेता हैं, जो अपने देश के हितों के लिहाज से नीति तय करते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका बढ़ने वाली है।" इसकी पुष्टि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से लेकर प्रमुख नेताओं द्वारा कही जा रही यह बात कर रही है कि हम भारत के हितों के लिहाज से कोई भी निर्णय लेंगे। पुतिन की ही तरह फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुअल मैक्रों भी भारत के अच्छे मित्रों में गिने जाते हैं। गत दिनों मैक्रों ने जी-20 की बैठक से प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक चित्र साझा करते हुए लिखा कि "हम भारत की अध्यक्षता में शांति के एजेंडे पर साझा काम करेंगे।" जाहिर है आतंकवाद, वित्तीय समावेशन, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा पर विश्व के विकसित देश भारत के नेतृत्व में चल रहे एजेंडे को आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं। अमेरिकी मीडिया आमतौर पर भारतीय प्रधानमंत्रियों के बयान को बहुत प्रमुखता नहीं देता है, लेकिन अमेरिका को मोदी का 'यह युद्ध का युग नहीं है' वाला यह बयान अपने पक्ष में लगा तो वह मोदी की प्रशंसा में जुट गया। जाहिर है अमेरिका, रूस और चीन की तिकड़ी के बीच फंसी विश्व व्यवस्था में भारतीय कूटनीति के संतुलन का यह अप्रतिम उदाहरण देखने को मिला है। साथ ही भारत अब किसी के दबाव में या प्रभाव में आकर अपने फैसले नही ले रहा ऐस स्पष्ट संदेश विश्व को मिल रहा है जब भारत के विदेशमंत्री को युरोप में युरोप के पत्रकार के द्वारा ऐसा प्रश्न पुछा जाता है की भारत रुस से इंधन खरिदता है उस इंधन के पैसे से रुस युद्ध करता है तब भारत के विदेशमंत्री स्पष्ट शब्दो में उत्तर देते है की भारत से कही ज्यादा इंधन युरोप के देश रुस से खरीदते है । ऐसे अनेक उदाहरण विश्व के मंच पर भारत के बयानो के मिल जायेंगे जिस को देख सुन विश्व भारत के सामर्थ्य को मानने पर विवश हो रहा है। एक और बात यह भी है की विश्व की महासत्ता कहे जानेवाले देश या संगठन कोइ भी निर्णय लेने के बारे में सोचते है तो स्वाभाविक रुप से यह विचार किया जाता है की उस निर्णय पर भारत का रुख एवम रवैया कैसा रहेगा ।

अब ऐसे समय में जब भारत जी-20 की अध्यक्षता संभालने जा रहा है, उससे ठीक पहले भारत की विश्व नेता के तौर पर यह स्वीकार्यता सकारात्मक संकेत है। भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को वैकल्पिक और रीन्युएबल ऊर्जा की ओर तेजी से ले जा रहा है, लेकिन भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के रास्ते में किसी तरह की बाधा खड़ी करने की कोशिश हुई तो यह विश्व अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर नहीं होगा यह बात विश्व को अब समज में आ रही है। इस समय रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में खाद्य और ऊर्जा आपूर्ति पर बुरा असर पड़ रहा है। जबकि भारत में इस युद्ध की काफी कम असर हुइ है और इस युद्ध के बावजुद आज भारत विश्व की तिसरे नंबर की और सब से तेज गति से आगे बढ रही अर्थव्यवस्था बना हुआ है।



जी-20 की अध्यक्षता

आज का खाद संकट कल का खाद्य संकट न बने इसके लिए जरूरी है कि विकसित देश एक साथ आकर आपूर्ति सुचारु करने का प्रयास करें। भारत लोकतंत्र की जननी है यह बात फिर से स्थापित हो रही है। गत दिनों बाली में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मुलाकात के बाद चीन की तरफ से जारी बयान में जिस तरह से अमेरिकी शैली के लोकतंत्र और चीनी शैली के लोकतंत्र की बात की गई थी, उसमें भारतीय लोकतंत्र की स्थापना अति महत्वपूर्ण है। यहां यह बात भी ध्यान में रखना होगा कि अमेरिका हो या चीन, दोनों ही देश इस स्थिति में नहीं हैं कि कह सकें कि यह युद्ध का युग नहीं है, क्योंकि दोनों ही देश युद्ध की स्थिति के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार दिखते हैं। इसीलिए भारतीय लोकतंत्र का उदाहरण विश्व के दूसरे देशों को आसानी से समझ आता है।

समग्रतया देखने पर भारत ऐसे समय में जी-20 की अध्यक्षता संभालने जा रहा है, जब संपूर्ण विश्व में तनाव है। अर्थव्यवस्था में कमजोरी दिख रही है और खाद्य एवं ऊर्जा की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। उम्मीद है भारत अपनी अध्यक्षता के दौरान इनका समाधान पेश करेगा। यह बात विश्व इस लिये भी समजता और मानता है क्योंकि पहले प्रधानमंत्रित्व काल में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने विश्व व्यवस्था में परिवर्तन करके बहुध्रुवीय विश्व बनाने की बात की थी और शुरुआत भी की थी वह आज अब दूसरे कार्यकाल में वह साकार होती दिख रही है। इस पर विश्व के विकसित देशों की भी स्वीकृति मिलती दिख रही है।

मंगलवार, 3 जनवरी 2023

गंगा विलास : भारत में शुरु होगी विश्व की सब से लंबी क्रुज यात्रा





देव दीपावली जैसे पर्व को भव्य बनाने और काशी कॉरिडोर के निर्माण के बाद बनारस के पर्यटन में एक और अध्याय जुड़ गया है राष्ट्रीय जलमार्ग-1 एक बार फिर पर्यटकों की गतिविधियों से गुलजार होने वाला है। देश के सबसे लंबी रिवर क्रूज़ की यात्रा की शुरुआत जनवरी 2023 से वाराणसी में होने वाली है, मील रही जानकारी के अनुसार, दुनिया का सबसे लंबा लक्ज़री रिवर क्रूज़ जनवरी 2023 में अपनी यात्रा शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है, जो लगभग 4000 किमी की दूरी होगी। 

"गंगा विलास" क्रूज के नाम से जाना जाने वाला यह क्रूज उत्तर प्रदेश के वाराणसी को असम के डिब्रूगढ़ से जोड़ेगा और कोलकाता और ढाका से होकर गुजरेगा।  प्रयागराज-हल्दिया जलमार्ग से होते हुए करीब 4000 किलोमीटर दूरी तय करने वाली दुनिया की सबसे लंबी और रोमांचक रिवर क्रूज यात्रा जनवरी महीन में शुरू होने वाली है। वाराणसी से शुरू होने वाली यह यात्रा केवल भारत ही नहीं, बल्कि बांग्लादेश की नदियों से भी होकर गुजरेगी। गंगा के तट से शुरू होने के बाद भारत में गंगा-भागीरथी, हुगली, ब्रह्मपुत्र और वेस्ट कोस्ट नहर सहित 27 नदी प्रणालियों से होकर गुजरने वाली यह यात्रा ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे पूर्वोत्तर भारत के शहर डिब्रूगढ़ तक जाएगी।



क्रूज मार्ग:

गंगा विलास क्रूज 50 दिनों की सबसे लंबी नदी यात्रा से गुजरेगा, जिसमें 27 नदी प्रणालियां और विश्व धरोहर स्थलों सहित 50 से अधिक पर्यटक स्थल शामिल होंगे। यह क्रूज दुनिया में किसी एक नदी जहाज द्वारा की जाने वाली सबसे बड़ी नदी यात्रा होगी जो भारत और बांग्लादेश दोनों को दुनिया के नदी क्रूज मानचित्र पर रखेगी। जहाज काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और सुंदरवन डेल्टा सहित राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों से होकर गुजरेगा। क्रूज आगे वाराणसी से गुजरेगा और बक्सर, रामनगर और गाजीपुर से होते हुए 8वें दिन पटना पहुंचेगा, और भारत में प्रवेश करने से पहले बांग्लादेश में लगभग 1100 किमी की दूरी तय करेगा। इस दौरे का अन्य मुख्य आकर्षण गंगा आरती होगी, दुनिया के सबसे बड़े मैंग्रोव वन के प्राकृतिक अजूबों की जाँच करना, मायोंग का दौरा करना, जिसे भारत में 'काले जादू' के पालने के रूप में जाना जाता है। "गंगा विलास" क्रूज की पहली यात्रा 13 जनवरी को वाराणसी से शुरू होगी, जबकि क्रूज मार्च महिने में असम के डिब्रूगढ़ जिले में बोगीबील पहुंचेगा 


लग्जरी क्रूज शिप में उप्लब्ध सुविधाए

गंगा विलास क्रूज शिप 62.5 मीटर लंबा और 12.7 मीटर चौड़ा है और भारत में बना पहला रिवर क्रूज शिप है।इस गंगा विलास लग्जरी जहाज में स्पा, सनडेक, फ्रेंच बालकनी और 40 सीटर रेस्तरां जैसी सुविधाओं के साथ 18 सुइट्स होंगे।

भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) के एक वरिष्ठ अधिकारी, जो राष्ट्रीय जल-मार्गों (NWs) के लिए जिम्मेदार एजेंसी है, ने कहा कि एक निजी खिलाड़ी द्वारा संचालित क्रूज एक नियमित सुविधा होगी। अधिकारी ने कहा, "अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास और रखरखाव पर सरकार के बढ़ते ध्यान के कारण, हमने गहराई बढ़ाने, यात्री और मालवाहक जहाजों दोनों के सफल संचालन के लिए आवश्यक नेविगेशन सुविधाएं और जेटी स्थापित करने के लिए कई परियोजनाएं शुरू की हैं।" अधिकारियों ने कहा कि भारत-बांग्लादेश प्रोटोकॉल मार्ग के विकास ने क्रूज सेवा की योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिखायेंगे हरी झंडी

उत्तर प्रदेश के वाराणसी से बांग्लादेश होते हुए असम के डिब्रूगढ़ तक दुनिया की सबसे लंबी नदी क्रूज को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 जनवरी को झंडी दिखाकर रवाना करेंगे।  

आईडब्ल्यूएआई के एक अधिकारी ने कहा, "हमारी सभ्यता नदियों के किनारे विकसित हुई है और इसलिए नदी परिभ्रमण का उपयोग करने वाले पर्यटकों को बेहतर अनुभव मिलेगा और वे हमारी संस्कृति और विरासत को समझेंगे।" हाल ही में शिपिंग और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा था कि क्रूज सेवाओं सहित तटीय और नदी शिपिंग का विकास सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीने कहा था कि केंद्रने 100 राष्ट्रीय जलमार्गों को विकसित करने का काम अपने हाथ में लिया है और लक्ष्य इन जलमार्गों पर चलने वाले विश्व स्तरीय क्रूज को देखने के अलावा कार्गो की आवाजाही को भी देखना है। “प्राचीन काल में, व्यापार और पर्यटन के लिए जलमार्गों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता था। इसलिए कई शहर नदियों के किनारे आ गए और वहां औद्योगिक विकास हुआ।

संवैधानिक संतुलन: भारत में संसद की भूमिका और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में, जाँच और संतुलन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न संस्थाओं की भूमिकाएँ सावधानीपूर्वक परिभाषित की गई है...