अमेरिका, यूरोपीय संघ सहित रूस, चीन, दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, सऊदी अरब, जर्मनी, इडोनिशिया, इटली, मेक्सिको, इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, तुर्की जैसे देशों से बना संगठन है जी-20, यह ऐसे देश है जो विश्व जीडीपी का 85 प्रतिशत, विश्व कारोबार का 75 प्रतिशत हिस्सा समेटे हुए है, इतना ही नहि विश्व की 60 प्रतिशत जनसंख्या जी-20 देशों में ही रहती है। भारत इतने सामर्थ्यवान एवं बड़े समूह की अध्यक्षता एक दिसंबर से कर रहा है। ऐसे सामर्थ्यवान देशो के संगठन जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलना भारत के लिए एक बड़ा अवसर है। जी-20 देशों की अध्यक्षता मिलना यह केवल संजोग नही है परंतु, विश्व व्यवस्था के इन समृद्ध देशो के संगठन जी-20 देशों के बीच भारत के सामर्थ्य की स्वीकार्यता स्पष्ट तौर पर दर्शाता है। इस मौके का उपयोग करते हुए भारत को विश्व कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और इस विचार को स्पष्ट करते हुए ‘भारत के पास विश्व कल्याण, शांति एवं पर्यावरण की चुनौतियों का समाधान है।" इस बात को विश्व के समक्ष उजागर करते हुए हमने एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य की जो थीम दी है, उससे वसुधैव कुटुंबकम् के लिए हमारी प्रतिबद्धता जाहिर होती है।’ बिना किसी संदेह के जी-20 को विश्व नेतृत्वकर्ता समूह के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है।
भारत की प्रमुख और प्रभावी होती भूमिका
गत दिनों इंडोनेशिया के बाली में आयोजित जी-20 देशों की बैठक में और पिछले दिनों उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के सम्मेलन में भी यह साफ तौर पर दिख यहा था की विश्व मंचों पर भारत की प्रमुख और प्रभावी होती भूमिका को अब विश्व के प्रमुख देश स्वीकारने लगे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने उज्बेकिस्तान के समरकंद में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत में जब कहा कि "यह युद्ध का युग नहीं है" तो उस पर विश्व आश्चर्यचकित रह गया था, क्योंकि भारत हथियारों और तेल की आपूर्ति के लिए बहुत हद तक रूस पर निर्भर है। भारत जितना इंधन आयात करता है उसमे रूस से खरीदा जाने वाला ईंधन 19% से बढकर 23% हुआ है, भारतीय मिलिट्री के करीब 86 फीसदी उपकरणों का सीधा संबंध रूस से है, कुछ उदाहरण देखते है भारत ने रूस से 125 एंतोनोव एन-32 कार्गो प्लेन खरीदे थे जिनमें से 105 अब भी काम कर रहे हैं, इस प्लेन्स को अत्याधुनिक बनाया जा रहा है, भारत ने रूस के साथ AK-203 असॉल्ट राइफल बनाने की 5 हजार करोड़ रुपये की डील की है.जिसके तहत 6.01 लाख राइफल भारत में बनेगी, जबकि 70 हजार राइफल रूस से ही आएगी, भारत के कइ जंगी जहाजो पर रुस द्वारा विकसित की गइ घुमने वाली तोप यानी क्लोज-इन वेपन सिस्टम रोटरी केनन, भारतीय वायुसेना के सबसे घातक लड़ाकू विमानों में से एक मिग-29 मिकोयान (MiG-29 Mikoyan) को रूस ने ही बनाया है और फिलहाल इसके तीन वैरिएंट्स भारत के पास मौजूद हैं, जिसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने अत्याधुनिक बनाया है और भारतीय वायुसेना में ऐसे 272 विमान मौजूद ऐसा लडाकु विमान सुखोई 30एमकेआई भी रुस से ही भारत ने खरिदा है और जिसे भारत ने जिसका नाम बदलकर भीष्म रखा है ऐसी मेइन बैटल टेंक टी-90 टेंक जिसके लिये भारतने रुस के साथ डील की है तिसके तहत 2025 तक 1675 भीष्म टेंक ड्युटी पर तैनात कर देगा यह टेंक भी रुस्ने ही बनाइ है, इस तरह से रुस के साथ गहरे रक्षा संबंध होने के बावजुद भारतने जो कहा उससे विश्व यह मानने लगा है की भारत अब किसी अन्य देश के दबाव में आकर अपने फैसले नही लेता बल्कि भारत के निर्णय विश्व हितऔर स्व के परिप्रेक्ष्य में लेता है.
भारतीय कूटनीति
बाद में एक कार्यक्रम में व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि "भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है और मोदी एक देशभक्त राजनेता हैं, जो अपने देश के हितों के लिहाज से नीति तय करते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि विश्व व्यवस्था में भारत की भूमिका बढ़ने वाली है।" इसकी पुष्टि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से लेकर प्रमुख नेताओं द्वारा कही जा रही यह बात कर रही है कि हम भारत के हितों के लिहाज से कोई भी निर्णय लेंगे। पुतिन की ही तरह फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुअल मैक्रों भी भारत के अच्छे मित्रों में गिने जाते हैं। गत दिनों मैक्रों ने जी-20 की बैठक से प्रधानमंत्री मोदी के साथ एक चित्र साझा करते हुए लिखा कि "हम भारत की अध्यक्षता में शांति के एजेंडे पर साझा काम करेंगे।" जाहिर है आतंकवाद, वित्तीय समावेशन, खाद्य सुरक्षा और ऊर्जा पर विश्व के विकसित देश भारत के नेतृत्व में चल रहे एजेंडे को आगे बढ़ाने की बात कर रहे हैं। अमेरिकी मीडिया आमतौर पर भारतीय प्रधानमंत्रियों के बयान को बहुत प्रमुखता नहीं देता है, लेकिन अमेरिका को मोदी का 'यह युद्ध का युग नहीं है' वाला यह बयान अपने पक्ष में लगा तो वह मोदी की प्रशंसा में जुट गया। जाहिर है अमेरिका, रूस और चीन की तिकड़ी के बीच फंसी विश्व व्यवस्था में भारतीय कूटनीति के संतुलन का यह अप्रतिम उदाहरण देखने को मिला है। साथ ही भारत अब किसी के दबाव में या प्रभाव में आकर अपने फैसले नही ले रहा ऐस स्पष्ट संदेश विश्व को मिल रहा है जब भारत के विदेशमंत्री को युरोप में युरोप के पत्रकार के द्वारा ऐसा प्रश्न पुछा जाता है की भारत रुस से इंधन खरिदता है उस इंधन के पैसे से रुस युद्ध करता है तब भारत के विदेशमंत्री स्पष्ट शब्दो में उत्तर देते है की भारत से कही ज्यादा इंधन युरोप के देश रुस से खरीदते है । ऐसे अनेक उदाहरण विश्व के मंच पर भारत के बयानो के मिल जायेंगे जिस को देख सुन विश्व भारत के सामर्थ्य को मानने पर विवश हो रहा है। एक और बात यह भी है की विश्व की महासत्ता कहे जानेवाले देश या संगठन कोइ भी निर्णय लेने के बारे में सोचते है तो स्वाभाविक रुप से यह विचार किया जाता है की उस निर्णय पर भारत का रुख एवम रवैया कैसा रहेगा ।
अब ऐसे समय में जब भारत जी-20 की अध्यक्षता संभालने जा रहा है, उससे ठीक पहले भारत की विश्व नेता के तौर पर यह स्वीकार्यता सकारात्मक संकेत है। भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को वैकल्पिक और रीन्युएबल ऊर्जा की ओर तेजी से ले जा रहा है, लेकिन भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के रास्ते में किसी तरह की बाधा खड़ी करने की कोशिश हुई तो यह विश्व अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर नहीं होगा यह बात विश्व को अब समज में आ रही है। इस समय रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध की वजह से पूरी दुनिया में खाद्य और ऊर्जा आपूर्ति पर बुरा असर पड़ रहा है। जबकि भारत में इस युद्ध की काफी कम असर हुइ है और इस युद्ध के बावजुद आज भारत विश्व की तिसरे नंबर की और सब से तेज गति से आगे बढ रही अर्थव्यवस्था बना हुआ है।
जी-20 की अध्यक्षता
आज का खाद संकट कल का खाद्य संकट न बने इसके लिए जरूरी है कि विकसित देश एक साथ आकर आपूर्ति सुचारु करने का प्रयास करें। भारत लोकतंत्र की जननी है यह बात फिर से स्थापित हो रही है। गत दिनों बाली में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मुलाकात के बाद चीन की तरफ से जारी बयान में जिस तरह से अमेरिकी शैली के लोकतंत्र और चीनी शैली के लोकतंत्र की बात की गई थी, उसमें भारतीय लोकतंत्र की स्थापना अति महत्वपूर्ण है। यहां यह बात भी ध्यान में रखना होगा कि अमेरिका हो या चीन, दोनों ही देश इस स्थिति में नहीं हैं कि कह सकें कि यह युद्ध का युग नहीं है, क्योंकि दोनों ही देश युद्ध की स्थिति के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार दिखते हैं। इसीलिए भारतीय लोकतंत्र का उदाहरण विश्व के दूसरे देशों को आसानी से समझ आता है।
समग्रतया देखने पर भारत ऐसे समय में जी-20 की अध्यक्षता संभालने जा रहा है, जब संपूर्ण विश्व में तनाव है। अर्थव्यवस्था में कमजोरी दिख रही है और खाद्य एवं ऊर्जा की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। उम्मीद है भारत अपनी अध्यक्षता के दौरान इनका समाधान पेश करेगा। यह बात विश्व इस लिये भी समजता और मानता है क्योंकि पहले प्रधानमंत्रित्व काल में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने विश्व व्यवस्था में परिवर्तन करके बहुध्रुवीय विश्व बनाने की बात की थी और शुरुआत भी की थी वह आज अब दूसरे कार्यकाल में वह साकार होती दिख रही है। इस पर विश्व के विकसित देशों की भी स्वीकृति मिलती दिख रही है।
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