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समग्र ब्रह्मांड में प्राकृतिक प्रकार से हुआ जन्म एक विशेष प्रसंग हैं, चाहे वो धरती पर किसी जीव का बच्चा हो या आकाशगंगा में अथवा आकाशगंगा के बाहर अन्य आकाशगंगा में किसी तारे का जन्म हो। मानव जाति प्रतिदिन विज्ञान के पथ पर आगे बढ रही है और इसी पथ पर आज मानव जाति विज्ञान के उस छोर पर पहुंच गई है जहां उसने जन्म की प्राकृतिक व्यवस्था को चुनौति देकर प्रकृति को अपने हाथ में लेने का प्रयास किया है। ऐसी एक प्रयास का परिणाम है गंगा बछडी, क्लोनिंग पद्धति से जन्मा गिर गाय का मादा बछडा गंगा भारत के क्लोनिंग विज्ञान की दिशा में मील का पत्थर गिना जा रहा है। हरियाणा के करनाल स्थिति राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान ने यह इतिहास रचा है। 2021 में उत्तराखंड लाइव स्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड देहरादून के सहयोग से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल ने भारत में पाइ जानेवाली गिर, साहीवाल और रेड-सिंधी जैसी देशी गायों के क्लोनिंग का कार्य शुरू किया था। इसी परियोजना के तहत 16 मार्च 2023 को गिर नस्ल की एक क्लोन बछडी का जन्म हुआ. इसका नाम गंगा रखा गया। जन्म के समय इसका वजन 32 किलोग्राम था औऱ यह बछड़ी स्वस्थ है. गिर गाय भारत के देशी गाय की एक प्रसिद्ध नस्ल है. जो मूलत: गुजरात में पाई जाती है. हरियाणा के करनाल में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान (एनडीआरआई) में गंगा का जन्म करवाने वाले वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि क्लोनिंग से देशी गायों के प्रजनन को बढ़ावा मिलेगा, जिनकी संख्या क्रॉस-ब्रीडिंग, उच्च उपज वाली विदेशी नस्लों और निर्यात को अपनाने से घट गई है।
जिसके तहत एनडीआरआई कार्य करता है ऐसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक का मानना है की “गिर गाय जैसे देशी जानवर रोग प्रतिरोधी हैं और देश की गर्म और आर्द्र जलवायु के अनुकूल हैं। क्लोनिंग तकनीक में भारत में पशुपालन के द्वारा दूध से आमदनी करनेवाले वकिसानों के लिए अधिक दूध देने वाले स्वदेशी मवेशियों की आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता है,"
गिर गाय ही क्यों ?
हरित क्रांति के बाद, कृषि के बढ़ते मशीनीकरण ने इन गायों की भारतीय नस्लों को आर्थिक रुप से कम लाभदायक बना दिया था, इसलिए किसानों ने ज्यादा दूध उत्पादन के लिए क्रॉस-ब्रीडिंग का प्रयोग करने का प्रयास कीया, परंतु लम्पी त्वचा रोग जैसी बीमारियों के लिए संकर नस्ले अधिक संवेदनशील निकले और यह प्रयास असफल और नुकसानदायक दिखाई देने लगा। ऐसे समय पर राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान करनाल ने देसी गायों के सरंक्षण और संख्या वृद्धि के लिए पशु क्लोनिंग तकनीक विकसित करने का आरंभ किया। प्रश्न यह था कि किस नस्ल का क्लोनिंग किया जाय तब यह ध्यान किया गया कि पारंपरिक भारतीय गाय की नस्लें जैसे गिर, साहीवाल और रेड सिंधी मुख्य रूप से अपेक्षाकृत ज्यादा दूध देने वाले जानवर हैं।
इस काम के लिए गिर नस्ल का चुनाव इसलिए किया गया क्योंकि ये गाय अन्य नस्लों की अपेक्षा, बहुत अधिक सहनशील होती है। यह अत्यधिक तापमान व ठंड को आसानी से सहन कर लेती है. इनके अंदर अन्य गायों के मुकाबले रोग प्रतिरोधक क्षमता भी ज्यादा होती है एवं विभिन्न ऊष्ण कटिबन्ध रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है. इसी कारण, भारत की देशी गायों की ब्राजील, अमेरिका, मैक्सिको, और वेनेजुएला में बहुत मांग हैं.
डॉ. सोलकर बताते है "जब हम सबसे बेहतर नस्ल की पहचान करने बैठे, तो गिर नस्ल की गाय को निस्संदेह चैंपियन पाया। यह एक मजबूत नस्ल है और कभी भारत में बहुतायत से पाई जाती थी। यह कठोर मौसम का सामना कर सकती है। इन सबसे ऊपर, यह एक अधिक दूध देने वाली नस्ल है। इस कारण इसे ब्राजील ले जाया गया जहां इसने श्वेत क्रांति लाई,” डॉ. सेलोकरने आगे कहा। “गिर और साहीवाल गायों में दुग्ध उत्पादन को 2-3 गुना तक बढ़ाने की क्षमता होती है। एक सामान्य भारतीय गाय एक दिन में औसतन 4-5 लीटर देती है, वहां यह नस्लें एक दिन में 15-20 लीटर उत्पादन कर सकती हैं।"
कैसे हुआ गिर गाय का क्लोनिंग
इस प्रोजेक्ट से संलग्न वैज्ञानिक के अनुसार ‘भैंस की अपेक्षा गाय से सेल और अंडे निकालना काफी मुश्किल था. साथ ही हमारे पास गाय की क्लोनिंग की टेक्नीक भी मौजूद नहीं थी. ऐसे में हमें काफी रिसर्च करनी पड़ी इस तकनीक को विकसित करना काफी चुनौतीपूर्ण रहा है. हम 2021 से ही इसकी कोशिश में जुटे थे यह पूरी प्रक्रिया में करीब 2 वर्ष का समय लगा और अब आकर हमें सफलता मिली है.’
गाय के इस बछड़े को पैदा करने के लिए वैज्ञानिकों ने तीन जानवरों का इस्तेमाल किया। अंडाणु को साहीवाल नस्ल से लिया गया था, दैहिक कोशिका गिर नस्ल से ली गई थी और एक सरोगेट पशु एक संकर नस्ल था। गिर गाय के क्लोनिंग की संपूर्ण प्रक्रीया का विवरण एनडीआरआई के वैज्ञानिक ने ऐसे किया....
एनडीआरआई करनाल के वैज्ञानिक डॉ नरेश सेलोकर के अनुसार क्लोनिंग में स्पर्म का नहीं, किन्तु सोमेटिक सेल या कोशिकाओं का उपयोग होता है। सोमेटिक सेल या कोशिकाओं को जिस नस्ल का बच्चा चाहिए उस नस्ल के जानवर के शरीर से निकालकर प्रयोगशाला में 'कल्चर' किया जाता है और साथ ही अंडक (ओसाइट्स) को सूइयो की सहायता से अलग कर दिया जाता है। इस प्रकीया के बाद दोनो को मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है, इस प्रक्रीया में 7-8 दिन का समय लगता है। बाद में भ्रूण (ब्लास्टोसिस्ट) को सरोगेट माता (गाय) के अंदर प्रस्थापित किया जाता है। यह प्रक्रीया से क्लोन तैयार होता है। इसके 9 महीने बाद क्लोन पशु के बच्चे का जन्म होता है। गंगा की क्लोनिंग के लिए गिर नस्ल का सेल लिया गया. और साहीवाल किस्म का अंडा लिया गया, जिसका DNA निकाल दिया गया था, इससे भ्रूण तैयार किया गया, इस भ्रूण को जर्सी गाय के अंदर स्थानांतरित किया गया.'
भारतीय वैज्ञानिको के द्वारा क्लोनिंग तकनीक के प्रयोग का इतिहास
एनडीआरआई करनाल क्लोनिंग तकनीक से भैंस की क्लोनिंग करने में सफलता हासिल कर चुका है। फरवरी 6, 2009 में इस टेक्निक के द्वारा विश्व के सर्वप्रथम भेंस का क्लोनिंग सफलतापूर्वक किया गया था। भैंस के बच्चे को पैदा किया गया था, उसका नाम समरुपा रखा गया दुर्भाग्यवश इस बछडे के फेफड़े में संक्रमण हो गया और पांच-छह दिन में उसकी मृत्यु हो गई। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से वैज्ञानिक निराश नहीं हुए और इसी वर्ष 6 जून 2009 को उनका प्रयास फलीभूत हुआ, और एक मादा क्लोन बछड़ा गरिमा पैदा हुई, जन्म समय गरिमा का वजन 43 किग्रा था, गरिमा दो वर्ष से अधिक समय तक जीवित रही. गरिमा का जन्म भारत में डेयरी अनुसंधान के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है। बाद में 22 अगस्त 2010 को गरिमा-2 का जन्म क्लोनिंग से किया गया, जिससे अब तक सात सामान्य बछड़े पैदा हो चुके हैं।वैज्ञानिकों ने 26 अगस्त, 2010 को पहला नर बछड़ा श्रेष्ठ भी पैदा किया, जिसके वीर्य का उपयोग अच्छे जननद्रव्य के गुणन के लिए किया जा रहा है। क्लोन भैंस गरिमा ने 2013 में मादा बछड़ा को जन्म दिया जिसका नाम महिमार खा गया, उसके बाद 2014 में एक और मादा बछड़े को जन्म दिया उस बछडे का नाम करिश्मा रखा गया। यह बछडे क्लोन भैंस से पैदा हुए विश्व के पहले बछड़े हैं। वर्ष 2017 में CIRB ने पहले क्लोन असमिया भैंस नर बछड़े का जन्म करवाया, उस नर असमिया नर भेंस बछडे का नामांकन सच-गौरव किया गया। 2021 का गणतंत्र दिवस एनडीआरआई के इतिहास में सर्वदा स्मरण किया जायेगा उस दिन एक क्लोन नर भैंस बछड़े का जन्म करवाया गया और गणतंत्र दिवस पर जन्म हुआ था इस दिन को याद रखने के लिए उसका नाम गणतंत्र रखा गया।
वर्ष 2012 में एनडीआरआई और शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने कश्मीर में नूरी नामक विश्व की पहली पश्मीना भेड के क्लोन का जन्म करवाया।