शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

भारत का मिशन सुर्य : आदित्य L-1

 

चंद्र के बाद अब इसरो सूरज के लिए मिशन जल्द ही शुरू हो सकता है इसरो चिफ श्री एस. सोमनथन ने चंद्रयान-3 की सफलता के बाद कहा की ईसरो कई प्रोजेक्ट्स पर कार्य कर रहा है आनेवाले तीन महिनों में ईसरो गगनयान और आदित्य L1 समेत कई महत्वपुर्ण मिशन लोंच करने जा रहा है इसरो के इस सोलर मिशन का नाम आदित्य L1 होगा यह भारत का पहला अंतरिक्ष अभियान होगा जो सूर्य के अध्ययन के लिए भेजा जाएगा। इसके लिए सारी तैयारीयां पुरी की जा चुकी है। इसरो 2 सितम्बर को सूर्य के वातावरण की अभ्यास करने के लिए सतिश धवन स्पेस सेंटर से पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी LMV M3 रॉकेट पर अपना Aditya L1 लॉन्च करने जा रहा है आदित्य L1 का एसेम्बलिंग किया जा चुका है और Aditya L1 रोकेट से जोडने का कार्य पुर्ण गति से चल रहा है 

क्या है L1 का अर्थ?

सेटेलाइट इस एल1 कक्षा के आगे नहीं जा सकता है, क्योंकि अगर इसे पार किया तो सूयॅ की गरमी से जल जायेगा इसलिए इसी बिंदु पर रहकर ADITYA-L1 सुर्य का अभ्यास, अध्ययन करेगा L1 एक ऐसी कक्षा है, जो सूरज और पृथ्वी के बीच की ऐसी दूरी होती है, जहां दोनों का गुरुत्वाकर्षण शून्य रहता है. अर्थात यहाँ न तो सूरज की ग्रैविटी उसे अपनी तरफ खींच सकती है, न तो पृथ्वी की... L1 को लैंग्रेजियन प्वाइंट कहा जाता है ऐसे पांच प्वाइंट हैं, लेकिन L1 एक ऐसी जगह है जहां से सुर्य का सरलता से अध्ययन, संशोधन किया जा सकता है जहां दोनों ग्रहों की ग्रैविटी खत्म हो जाती है. इस प्वाइंट की पृथ्वी से कुल दूरी करीब 15 लाख (1.5 मिलियन) किमी है लॉन्च किए जाने के पूरे चार महीने बाद सूरज-पृथ्वी के सिस्टम में लैगरेंज पॉइंट-1 तक पहुंचेगा अंतरिक्ष में इसी स्थान से अमेरिका की अंतरिक्ष संस्था नासा और युरोपीयन अंतरिक्ष संस्था का सोहो उपग्रह वर्ष1996 से सुर्य का अभ्यास कर रहा है, भारत का आदित्य L1 सुर्य के बारे में विषेश जानकरी प्राप्त करेगा इस खास बिंदु लैग्रेंज प्वाइंट 1 (L1) की विशेषता यह है कि यहां वेधशाला के संचालन के लिए ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होगी इसीलिए इस मिशन को आदित्य L-1 नाम दिया गया है आदित्य L-1 मिशन की सफलता के पश्चात इसरो उन स्पेस एजेंसी के समूह में शामिल हो जाएगा जिन्होंने सूर्य के लिए एक खास यान प्रक्षेपित किया है 

आदित्य L1 में कौन कौन से उपकरण होंगे? 

आदित्य L1 को कुल मिलाकर 7 पेलोड (उपकरणों) के साथ लॉन्च किया जाना है यह सात पेलोड में शामिल है: सौर पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT), सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS), आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX), हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS), आदित्य के लिये प्लाज़्मा विश्लेषक पैकेज (PAPA), उन्नत त्रि-अक्षीय उच्च रिज़ॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर। यह सातों उपकरण विविध रुप से सुर्य का अभ्यास करेंगेआदित्य L1 5 वर्ष तक सुर्य का अभ्यास करेगा।आदित्य L1 सूर्य के कोरोनल मास इजेक्शन का अभ्यास करेगा



आदित्य L1 सुर्य का क्या अभ्यास करेगा?

जैसे उपर बताया आदित्य-L1 में कुल मिलाकर अलग-अलग सात पेलोड होंगे इसमें हाई डेफिनेशन कैमरे भी लगे होंगे आदित्य L-1 में लगे कुल सात पेलोद में से चार पेलोड सुर्य की रिमोट सेंसिंग करेंगे और बाकी के तीन इन पेलोद -सीटू ऑब्जर्वेशन का कार्य करनेवाले है आदित्य-L1 से सूर्य के फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और सबसे बाहरी परत 'कोरोना' पर नजर रखी जाएगी। इसके लिए इलेक्ट्रोमैग्नेटिक, पार्टिकल और मैग्नेटिक फील्ड डिटेक्टरों का इस्तेमाल किया जाएगा। इनमें से चार पेलोड्स सीधे सूरज पर नजरें रखेंगे। बाकी तीन आसपास के क्षेत्र में मौजूद पार्टिकल और अन्य चीजों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाकर देंगे। इसरो को उम्मीद है कि आदित्य एल 1 पर लगे पेलोड्स की मदद से कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, सौर धधक से पहले और बाद की गतिविधियों, उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष के मौसम की गतिशीलता आदि के बारे में काफी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक जानकारियां प्राप्त की जा सकेंगी।

https://devenzvoice.blogspot.com/2023/08/isro.html 

अब तक किस किस देशों के कितने मिशन सुर्य के संशोधन के लिए हुए है? 

सुर्य के विशिष्ट संशोधन के लिए अब तक अमेरिका, जर्मनी, जापान, चीन और युरोपीय देशों के द्वारा अकेले अथवा संयुक्त रुप से 25 मिशन भेजे जा चुके है। इन 25 मिशनों में से सात मिशन आज भी सक्रीय रुप से कार्य कर रहे है। सुर्य के संशोधन के लिए सब से ज्यादा मिशन अब तक अमेरिकाने भेजे है जबकि जापान और चीनने एक एक मिशन भेजा है और युरोपीय युनियन और जर्मनीने अमेरिका की अंतरिक्ष संस्था नासा के साथ मिलकर संयुक्त रुप से मिशन भेजे है। वर्तमान में नासा और युरोपीय स्पेस एजंसी का सोहो मिशन L-1 बिंदु से ही सुर्य का संशोधन कर रहा है, भारत का आदित्य L-1 मिशन भी इसी बिंदु से सुर्य का अभ्यास करनेवाला है।  

 

विज्ञान के उद्देश्य:

आदित्य-एल1 मिशन के प्रमुख विज्ञान उद्देश्य हैं:

  • सौर ऊपरी वायुमंडलीय (क्रोमोस्फीयर और कोरोना) गतिकी का अध्ययन।
  • क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल तापन, आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल मास
  • इजेक्शन की शुरुआत, और फ्लेयर्स का अध्ययन
  • सूर्य से कण की गतिशीलता के अध्ययन के लिए डेटा प्रदान करने वाले यथावस्थित कण और प्लाज्मा
  • वातावरण का प्रेक्षण
  • सौर कोरोना की भौतिकी और इसका ताप तंत्र।
  • कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान: तापमान, वेग और घनत्व।
  • सी.एम.ई. का विकास, गतिशीलता और उत्पत्ति।
  • उन प्रक्रियाओं के क्रम की पहचान करें जो कई परतों (क्रोमोस्फीयर, बेस और विस्तारित कोरोना) में होती हैं जो अंततः सौर विस्फोट की घटनाओं की ओर ले जाती हैं।
  • कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी और चुंबकीय क्षेत्र माप।
  • हवा की उत्पत्ति, संरचना और गतिशीलता।

 


रविवार, 20 अगस्त 2023

आदित्य L1 के बाद गगनयान ISRO की अंतरिक्ष में बडी छलांग

 


अंतरिक्ष में अपने पहले मानव मिशन गगनयान को लॉन् करने की दिशा में 20 जुलाई को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को एक बहुत बड़ी सफलता मिली थी गगनयान मिशन के सर्विस मॉड्यूल प्रोपल्शन सिस्टम (SMPS) का 20 जुलाई को सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया सर्विस मॉड्यूल प्रोपल्शन सिस्टम गगनयान ऑर्बिटल मॉड्यूल की आवश्यकताओं को पूरा करता है हॉट टेस्ट के अंतिम कॉन्फिग्रेशन का आयोजन इसरो के तमिलनाडु में महेंद्रगिरी स्थित प्रोपल्शन कॉम्प्लेक् में किया गया था गगनयान मिशन को अगले वर्ष लॉन् किया जाना है, जिसे लेकर इसरो के वैज्ञानिकों और कर्मचारीओं में अत्यांतिक उत्तेजना और रोमांच है और सभी इस मिशन की तैयारी पूरी कर रहे है 

गगनयान मिशन के लिए केंद्र सरकारने इसरो को 10 हजार करोड़ की राशि दे चुकी है. गगनयान भारत का अंतरिक्ष में पहला मानव मिशन है। इस मिशन की गंभीरता ध्यान में रखते हुए इसरो काफी सावधानी बरत रहा है और सभी परिक्षण बारीकी से कर रहा है। मिशन गगनयान मानव को अंतरिक्ष में भेजने का ISRO का महत्वाकांक्षी आयोजन है, इस मिशन के अंतर्गत अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर स्पेस में भेजा जायेगा. इस संबंध में भारतीय वायुसेना की मदद भी ली जा रही है। वायुसेना से अंतरिक्ष यात्री चुनने के लिए कहा गया है।

गगनयान इसरो के तीन अंतरिक्ष मिशन का एक ग्रुप है। गगनयान इसरो द्वारा बनाया गया एक स्पेसक्राफ्ट है. इसमें दो अभियान मानव रहित होंगे जबकि तीसरे में मानव को अंतरिक्ष में भेजा जाना है. बताया जा रहा है कि इस मिशन में तीन अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में भेजे जाएंगे, जिसमें एक महिला रोबोट समेत दो पुरुष और एक महिला होंगी. इसरो की योजना पृथ्वी की सबसे करीबी कक्षा (लोअर ऑर्बिट) में मानव यान भेजने की है। गगनयान 5-7 दिनों के लिए पृथ्वी के ऊपर 300-400 किमी की ऊंचाई पर एक लो अर्थ ऑर्बिट में पृथ्वी का चक्कर लगाएगा और वापस लौटेगा। भारत का गगनयान मिशन सफल रहा तो अमेरिका, रूस और चीन जैसे चुनिन्दा देशों की क्लब में भारत भी शामिल हो जाएगा।

इस अंतरिक्ष मिशन की घोषणा पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में राष्ट्र के नाम अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में की थी। मानवयुक्त मिशन से पहले, इसरो ने गगनयान मिशन के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष में दो मानव रहित मिशन भेजने की भी योजना बनाई है। पहला मानव रहित मिशन दिसंबर 2020 में भेजा जाना था और दूसरा मिशन जून 2021 के लिए निर्धारित किया गया था। हालांकि, कोरोना वायरस महामारी के कारण इसरो के काम और संचालन में व्यवधान के कारण पहले मानवरहित मिशन में देरी हुई है। अब इस मिशन के साल 2023-2024 में लॉन्च किया जाएगा। इंडिया के इस स्पेस कार्यक्रम की कुल लागत 10000 करोड़ रुपये से कम होने की उम्मीद है।

गगनयान कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य मानव को भारतीय प्रक्षेपण यान पर पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की क्षमता को प्रदर्शित करना है। गगनयान प्रोजेक्ट में 3 सदस्यों के चालक दल को 400 किमी की कक्षा में 3 दिनों के मिशन के लिए लॉन्च करके और सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने के उन्हें भारतीय समुद्री जल में उतारकर, भारत द्वारा मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता के प्रदर्शन की परिकल्पना की गई है। भारतीय इसरो जिस अंतरिक्ष यान को विकसित कर रहा है उसमें रूस अंतरिक्ष यात्रियों के प्रशिक्षण में हमारी मदद कर रहा है। एचएसएफसी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के तहत गगनयान की पहली विकास उड़ान को लागू करने के लिए मौजूदा इसरो केंद्रों का समर्थन लेगा। अंतरिक्ष यात्रियों के बैठने वाली जगह क्रू मॉड्यूल का निर्माण पूरा हो चुका है। गगनयान के पहले चालक दल के मिशन (क्रू मिशन) को मूल रूप से दिसंबर 2021 में इसरो के LVM3 पर लॉन्च करने की योजना थी, लेकिन इसमें 2024 से पहले लॉकडाउन के कारण देरी हुई है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने पहले मानव अंतरिक्ष यान (गगनयान) की तैयारी में लगा हुआ है।

गगनयान कार्यक्रम का उद्देश्य मानव को भारतीय लॉन्च वाहन पर पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) में भेजने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की क्षमता प्रदर्शित करना है। COVID प्रतिबंधों के कारण भारत के गगनयान कार्यक्रम में थोड़ी देरी हुई, लेकिन अब 2023-24 तक मिशन को हासिल करने की तैयारी जोरों पर है।

गगनयान परियोजना के तहत 3 सदस्यों के चालक दल को 400 किमी की कक्षा (ऑर्बिट) में 3 दिनों के मिशन के लिए लॉन्च करके और मिशन पूरा होने के बाद उन्हें भारतीय समुद्री जल में सुरक्षित और सफल लैंडिंग करवाना है। अतः इस गगनयान कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को मिशन पूरा होने पर सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाकर इसरो द्वारा भारत की मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता के प्रदर्शन को साबित करना है।


संवैधानिक संतुलन: भारत में संसद की भूमिका और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में, जाँच और संतुलन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न संस्थाओं की भूमिकाएँ सावधानीपूर्वक परिभाषित की गई है...