चंद्र के बाद अब इसरो सूरज के लिए मिशन जल्द ही शुरू हो
सकता है। इसरो चिफ श्री एस. सोमनथन ने
चंद्रयान-3 की सफलता के बाद कहा की ईसरो कई प्रोजेक्ट्स पर
कार्य कर रहा है आनेवाले तीन महिनों में ईसरो गगनयान और आदित्य L1 समेत कई महत्वपुर्ण मिशन लोंच करने जा रहा है। इसरो के इस सोलर मिशन का नाम आदित्य L1 होगा। यह
भारत का पहला अंतरिक्ष अभियान होगा जो सूर्य के अध्ययन के लिए भेजा जाएगा। इसके लिए सारी तैयारीयां पुरी की जा चुकी
है। इसरो 2 सितम्बर को सूर्य के वातावरण की अभ्यास करने के लिए सतिश धवन स्पेस सेंटर
से पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल यानी LMV M3 रॉकेट पर अपना Aditya
L1 लॉन्च करने जा रहा है। आदित्य L1 का एसेम्बलिंग किया जा चुका है और Aditya
L1 रोकेट से जोडने का कार्य पुर्ण गति से चल रहा है।
क्या
है L1 का अर्थ?
सेटेलाइट इस
एल1 कक्षा के आगे नहीं जा सकता है, क्योंकि अगर इसे पार
किया तो सूयॅ की गरमी से जल जायेगा। इसलिए इसी बिंदु पर रहकर ADITYA-L1
सुर्य का अभ्यास, अध्ययन करेगा। L1
एक ऐसी कक्षा है, जो सूरज और पृथ्वी के बीच की
ऐसी दूरी होती है, जहां दोनों का गुरुत्वाकर्षण शून्य रहता
है. अर्थात यहाँ न तो सूरज की ग्रैविटी उसे अपनी तरफ खींच सकती है, न तो पृथ्वी की... L1 को लैंग्रेजियन प्वाइंट कहा
जाता है। ऐसे पांच प्वाइंट हैं,
लेकिन L1 एक ऐसी जगह है जहां से सुर्य का
सरलता से अध्ययन, संशोधन किया जा सकता है। जहां दोनों ग्रहों की ग्रैविटी खत्म हो जाती है. इस प्वाइंट की पृथ्वी से
कुल दूरी करीब 15 लाख (1.5 मिलियन)
किमी है। लॉन्च किए जाने के पूरे चार महीने बाद सूरज-पृथ्वी के सिस्टम में लैगरेंज
पॉइंट-1 तक पहुंचेगा। अंतरिक्ष में इसी स्थान से अमेरिका की अंतरिक्ष संस्था नासा और युरोपीयन
अंतरिक्ष संस्था का सोहो उपग्रह वर्ष1996 से सुर्य का अभ्यास कर रहा है, भारत का आदित्य L1 सुर्य के बारे में विषेश
जानकरी प्राप्त करेगा। इस
खास बिंदु लैग्रेंज
प्वाइंट 1 (L1) की विशेषता यह है कि यहां वेधशाला के
संचालन के लिए ज्यादा ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होगी। इसीलिए इस मिशन को आदित्य L-1 नाम दिया गया है। आदित्य L-1 मिशन की सफलता के पश्चात इसरो उन स्पेस
एजेंसी के समूह में शामिल हो जाएगा जिन्होंने सूर्य के लिए एक खास यान प्रक्षेपित
किया है।
आदित्य L1 में कौन कौन से उपकरण होंगे?
आदित्य L1 को कुल मिलाकर 7 पेलोड (उपकरणों) के
साथ लॉन्च किया जाना है। यह सात पेलोड में शामिल है: सौर पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT),
सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (SoLEXS), आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट (ASPEX), हाई
एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (HEL1OS),
आदित्य के लिये प्लाज़्मा विश्लेषक पैकेज (PAPA), उन्नत त्रि-अक्षीय उच्च रिज़ॉल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर। यह सातों उपकरण विविध रुप से सुर्य का अभ्यास करेंगे, आदित्य
L1 5
वर्ष तक सुर्य का अभ्यास करेगा।आदित्य L1 सूर्य के कोरोनल मास इजेक्शन का अभ्यास करेगा।
आदित्य L1 सुर्य का क्या अभ्यास करेगा?
जैसे उपर बताया
आदित्य-L1 में कुल मिलाकर अलग-अलग सात पेलोड होंगे। इसमें हाई
डेफिनेशन कैमरे भी लगे होंगे। आदित्य L-1 में लगे कुल सात पेलोद में से चार पेलोड
सुर्य की रिमोट सेंसिंग करेंगे और बाकी के तीन इन पेलोद -सीटू ऑब्जर्वेशन का कार्य
करनेवाले है। आदित्य-L1
से सूर्य
के फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और सबसे बाहरी परत 'कोरोना' पर नजर रखी जाएगी। इसके लिए
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक, पार्टिकल और मैग्नेटिक फील्ड डिटेक्टरों
का इस्तेमाल किया जाएगा। इनमें से चार पेलोड्स सीधे सूरज पर नजरें रखेंगे। बाकी
तीन आसपास के क्षेत्र में मौजूद पार्टिकल और अन्य चीजों के बारे में महत्वपूर्ण
जानकारियां जुटाकर देंगे। इसरो को उम्मीद है कि आदित्य
एल 1 पर लगे पेलोड्स की मदद से कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, सौर धधक से पहले और बाद की
गतिविधियों, उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष
के मौसम की गतिशीलता आदि के बारे में काफी महत्वपूर्ण वैज्ञानिक जानकारियां
प्राप्त की जा सकेंगी।
https://devenzvoice.blogspot.com/2023/08/isro.html
अब
तक किस किस देशों के कितने मिशन सुर्य के संशोधन के लिए हुए है?
सुर्य के
विशिष्ट संशोधन के लिए अब तक अमेरिका,
जर्मनी, जापान, चीन और
युरोपीय देशों के द्वारा अकेले अथवा संयुक्त रुप से 25 मिशन
भेजे जा चुके है। इन 25 मिशनों में से सात मिशन आज भी सक्रीय
रुप से कार्य कर रहे है। सुर्य के संशोधन के लिए सब से ज्यादा मिशन अब तक
अमेरिकाने भेजे है जबकि जापान और चीनने एक एक मिशन भेजा
है और युरोपीय युनियन और जर्मनीने अमेरिका की अंतरिक्ष संस्था नासा के साथ मिलकर
संयुक्त रुप से मिशन भेजे है। वर्तमान में नासा और युरोपीय स्पेस एजंसी का सोहो
मिशन L-1 बिंदु से ही सुर्य का संशोधन कर रहा है, भारत का आदित्य L-1 मिशन भी इसी बिंदु से सुर्य
का अभ्यास करनेवाला है।
विज्ञान के
उद्देश्य:
आदित्य-एल1 मिशन के प्रमुख
विज्ञान उद्देश्य हैं:
- सौर ऊपरी वायुमंडलीय (क्रोमोस्फीयर और कोरोना) गतिकी का अध्ययन।
- क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल तापन, आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा की भौतिकी, कोरोनल
मास
- इजेक्शन की शुरुआत, और फ्लेयर्स का
अध्ययन
- सूर्य से कण की गतिशीलता के अध्ययन के लिए डेटा प्रदान करने वाले
यथावस्थित कण और प्लाज्मा
- वातावरण का प्रेक्षण
- सौर कोरोना की भौतिकी और इसका ताप तंत्र।
- कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान: तापमान, वेग और घनत्व।
- सी.एम.ई. का विकास, गतिशीलता और
उत्पत्ति।
- उन प्रक्रियाओं के क्रम की पहचान करें जो कई परतों (क्रोमोस्फीयर, बेस और विस्तारित कोरोना) में होती हैं जो
अंततः सौर विस्फोट की घटनाओं की ओर ले जाती हैं।
- कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी और चुंबकीय क्षेत्र माप।
- हवा की उत्पत्ति, संरचना और गतिशीलता।