कल माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक जजमेंट में 800 वर्ष से चली आ रही सबरीमाला मंदिर की परंपरा को असंवैधानिक करार दिया जिसकी प्रतिक्रियाएं काफी मिली-जुली आ रही थी परंतु सायं काल के पश्चात अचानक ही प्रतिक्रियाओं की धार नुकुली होने लगी और कुछ लोगों ने तो इस जजमेंट को हीन्दु धर्म के लिए ख़तरे की घंटी के समान बताया।
कल रात से काफी प्रतिक्रियाओं की धार और कहीं कहीं धार्मिक ग्रंथों का प्रमाण देकर विरोध करने वाले को देख कर मन में प्रश्न उठा,
- क्या सनातन धर्म की जड़ें इतनी कमजोर है कि कीसी एक या कुछ और परंपराओं को बंद करने से धर्म खतरे में आ जाएगा ?
इतिहास साक्षी है कि सनातन धर्म की जड़ें इतनी गहरी और मजबूत है कि इसे मिटाना तो दूर की बात है इसे हिलाना भी असंभव है। और तो और सनातन धर्म ने अपने आप ही अनेकों प्रकार की परंपरा को ध्वस्त किया है, यहां जगद्गुरू श्रीकृष्ण को याद करना अनिवार्य है, बाल कृष्ण ने जब इन्द्र पूजा की परंपरा को तोड़कर गोवर्धन पूजा का आव्हान किया था और वृंदावन के सभी ने उस आव्हान का स्वीकार कर इन्द्र पूजा की परंपरा को त्याग दिया था। धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में भी एक ओर परंपरा को भगवान श्री कृष्ण ने ध्वस्त कर दिया था। सत्य बोलना यह एक परंपरा एवं सनातन धर्म का प्राण है, कदाचित इसीलिए धर्मं चर से पहले सत्यं वद कहा गया है परंतु धमक्षेत्र कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण सत्यवादी युधिष्ठिर से “अश्वत्थामा हत:, नरो वा कुंजरो” जैसे अर्द्धसत्य का उच्चारण करवाते हैं। चलिए धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र न जाएं और पीछले वर्षों के प्रति द्रष्टी करें तो एक ओर परंपरा को सकारात्मक दिशा में बदलते हुए देखा होगा आपने, श्रावण माह में कईं शिव मंदिरों के व्यवस्थापकों और पूजारीओं ने ही शिवलिंग पर अभिषेक के लिए चढ़ाएं जानेवाले दूध को इकट्ठा कर गरीब बच्चों को बांटने की शुरुआत की है। इतना दूर नहीं जाना है तो पंद्रह दिन पहले ही जातें हैं, सार्वजनिक गणेशोत्सव में POP की मूर्तियों का चलन कम हुआ है तथा मिट्टी की मूर्तियों की प्रतिष्ठा का प्रमाण बढ़ा है, और ईस वर्ष नदियों में विसर्जन भी नहीं कीया गया, काफी लोग ऐसे भी देखने को मिले जिन्होंने अपने घर आये भगवान गणपति बाप्पा की मिट्टी की मूर्ति का विसर्जन अपने घर पर ही किया और उस मिट्टी का इस्तेमाल पौंधा लगाकर कीया।
यहां चिंता की बात यह नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सनातन धर्म के लिए ख़तरे की घंटी कहा जा रहा है परन्तु चिंता उस विषय की है कि विशाल, परिवर्तनशील, इश्वरप्रिय सनातन धर्म को संकुचित, कट्टर सोचवाले धर्म की श्रेणी में ले जाने वाली सोच की है, जो कि सनातन धर्म का संपूर्णत: गलत और विपरीत चित्र खड़ा करती है।
साथ ही साथ यह बात भी इतनी ही सत्य है कि सनातन धर्म की आस्थाओं, परंपराओं, मान्यताओं और धार्मिक भावनाओं के उपर आघात करने की कोशिशें और कोशिशें करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। खासकर सोश्यल मिडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, मनोरंजन, फिल्में, एडवरटाइजमेंट, किताबें जैसे हथियारों का खुबी पूर्वक इस्तेमाल किया जा रहा है, और इस माध्यमों से योजनापूर्वक युवा पीढ़ी को निशाना बनाया जा रहा है और यह षड्यंत्र जिस किसी के ध्यान में आया है सभी ने यथायोग्य, पर्याप्त, प्रमाणभूत जानकारी के साथ ज़वाब देकर ईसे नाकाम करने में पुरी ताकत लगा दी है। कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने केवल सनातन धर्म पर कीए जाने वाले आघातों को ज़वाब देने हेतु ही धर्म ग्रंथों का अध्ययन करने लगे हैं जो कि एक अच्छा बदलाव है।
जहां तक सबरीमाला मंदिर में सभी आयु की महिलाओं के प्रवेश के फैसले के विरोध करने का प्रश्न है हमें यह ध्यान होना चाहिए कि हमारे देश की महिलाएं माता गार्गी, माता मैत्रेयी, माता सीता, माता अहल्या, माता कौशल्या जैसी विदुषी नारी ओं प्रतिकृति है और अपनी बुद्धि से परंपराओं को आगे बढ़ाना अच्छी तरह से जानती है उन्हें कम न आंका जाएं। वैसे भी सामान्य महिला ओं में से भी 95% से 98% महिलाएं मासिक धर्म के दौरान मंदिर में प्रवेश करती ही नहीं है, सार्वजनिक मंदिर ही नहीं बल्कि अपने घर के मंदिर में भी प्रवेश नहीं करती है और बाकी 2% से 5% महिलाएं मंदिर में जाती ही नहीं है परंतु अगर फिर भी कीसी अनिवार्य कारणों से जाना पड़ता है तो यह महिलाएं भी इस बात का ध्यान रखती ही है, अगर फिर भी विश्वास नहीं आता तो कृपया एक बार शनि शिंगणापुर जरूर जाना चाहिए क्यों कि उस मंदिर में भी महिलाओं का प्रवेश निषेध था परंपरा एवं धार्मिक मान्यता के अनुसार, कुछ समय पहले ऐसे ही एक फैसले से न्यायालय ने उस परंपरा को खत्म कर दिया था परन्तु सुना है कि आज भी भारत की बुद्धिमान महिलाओं ने परंपरा को बनाए रखा है ।
अंत में इतना जरूर लगता है कि सनातन धर्म की जड़ें इतनी गहरी और मजबूत है कि इसे मिटाना असंभव है। अपने आप पर विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता है, अपनी माताओं एवं बहनों पर श्रद्धा और विश्वास बनाए रखने की आवश्यकता है।
2 टिप्पणियां:
https://devenzvoice.blogspot.com/2018/09/blog-post_28.html?m=1
आप की बात से सम्पूर्ण सहमति देवेंद्र सर जी।
सनातन इतना भी कमजोर नही है...
जिस से छोटे मोटे फेसलो से उसकी गरिमा को हानि पहोचे... और इस का गवाह खुद इतिहास है।
सनातन संस्कृति अनेको प्रहारों का सामना कर के आज वैसी की वैसी ही खड़ी है... अडिग... मज़बूत।
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