पीछले तीन दिन से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसले दिए हैं वह यह साबित कर दिया है कि देश संविधान से चलने वाला है ।
दो दिन पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आधार को अपना आधार दिया, फिर नमाज के लिए मस्जिद अनिवार्य नहीं है, और आज केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश निषेध को समानता के आधार पर खारिज कर दिया।
आज माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने केरल के सुप्रसिद्ध, पवित्र सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश निषेध के विरुद्ध ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा कि लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता और सभी उम्र की महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश करने के निर्देश दिए हैं।
केरल स्थित विश्व प्रसिद्ध एवं पवित्र भगवान अय्यप्पा सबरीमाला मंदिर में करीब 800 वर्षों से परंपरा है जिसके तहत मंदिर में 10 वर्ष से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का मंदिर में प्रवेश निषेध माना जाता है। यह मंदिर केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किलोमीटर दूर, पथानामथीट्टा जिले में पूर्व ओर सबरी हिल्स नाम से विख्यात 18 पहाड़ीयों के बीच में स्थित है। मंदिर जैसे 18 पहाड़ीयों के बीच है उसी तरह मंदिर के आंगन तक पहुंचने के लिए 18 सीढ़ीयां पार करनी पड़ती है। मंदिर का उल्लेख कंब रामायण, महाभारत के आंठवे स्कंध और स्कंद पुराण के असूर कांड में आता है । ऐसा माना जाता है कि स्कंद पुराण में जिस शिशु शास्ता का जो उल्लेख है सबरीमाला मंदिर स्थित भगवान अय्यप्पा उन्हीं के अवतार हैं। एक मान्यता ऐसी भी हैं कि स्वयं भगवान परशुराम जी ने अय्यपन की पूजा के लिए सबरीमाला मंदिर में मूर्ति स्थापित की थी, एक मान्यता के अनुसार इस मंदिर का संबंध माता शबरी से भी बताया जाता है, कइ मान्यता में से एक मान्यता के अनुसार भगवान अय्यपन प्रभु विष्णु एवं शिव की संतान हैं, कदाचित इसीलिए भगवान अय्यपन हरिहर नाम से भी जाना जाता है, साथ ही मकरसंक्रांति के दिन कतामाला पर्वत के ऊपर एक दिव्य ज्योतिपूंज प्रकट हुआ था तब से यह स्थान सबरीमाला मंदिर के रूप में प्रगट हुआ। मंदिर में भगवान अय्यपन के साथ साथ गणेश जी, मलिकापूरत अम्मा और नागराज जैसे उप देवताओं की मूर्तियों को भी स्थापित किया गया है और उनकी पूजा होती है।
इस मंदिर में प्रमुख रूप से दो उत्सव मनाये जातें हैं । एक मकरसंक्रांति और दुसरा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के संयोग के दिन, पांचवीं तिथि और वृश्चिक लग्न के संयोग के समय ही भगवान अय्यपन का जन्मदिन मनाया जाता है। यह मंदिर सभी मंदिरों की तरह पुरे वर्ष खुला नहीं रहता परन्तु मलयालम पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने के पहले पांच दिन ही खुला रहता है और विशेष पूजा एवं उत्सव पर खुलता है।
सबरीमाला मंदिर में मंडला पूजा का महत्व बहुत है। यह मंडला पूजा पूरे 41 दिन चलती है जिसमें सबसे पहले गणेशजी का आव्हान किया जाता है। इस पूजा के दौरान भजन कीर्तन एवं दक्षिण भारत के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। मंडला पूजा में शामिल होने वाले भक्त भगवान अय्यपन को अधिक प्रिय तुलसी माला एवं रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं।
सबरीमाला मंदिर अपनी एक परंपरा के कारण आजकल चर्चा में आया है। यह परंपरा भगवान अय्यपन ब्रह्मचारी थे इसलिए इस मंदिर में 10 वर्ष से अधिक और 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं का मंदिर प्रवेश वर्जित हैं, हालांकि 10 वर्ष से कम और 50 वर्ष से अधिक आयु वाली महिलाओं को मंदिर प्रवेश के लिए कीसी भी प्रकार के प्रतिबंध नहीं है।
“द इंडियन यंग लोयर्स एसोसिएशन” ने इस परंपरा को न्यायालय में चुनौती देती याचिका दाखिल की थी। इस याचिका में केरल सरकार, द त्रावणकोर देवस्यम बोर्ड, सबरीमाला मंदिर के पूजारी और डीएम को 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति देने की मांग की थी। पीछले वर्ष 7 नवंबर 2016 में केरल सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया था कि वह सबरीमाला मंदिर में सभी आयु की महिलाओं के मंदिर प्रवेश के पक्ष में हैं।
पिछले वर्ष 13 अक्टूबर को सर्वोच्च न्यायालय की तीन जजों की पीठ ने अनुच्छेद-14 में दिए गए समानता के अधिकार, अनुच्छेद-15 में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव रोकने, अनुच्छेद-17 में छुआछूत को समाप्त करने जैसे सवालों सहित चार मुद्दों पर पूरे मामले की सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ को सुपुर्द किया था।
आज सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने सबरीमाला मंदिर में खास आयु वाली महिलाओं के प्रवेश निषेध को गैरकानूनी घोषित कर दिया। अब सबरीमाला मंदिर में सभी आयु वाली महिलाओं को मंदिर प्रवेश मिलेगा ।
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