कल माननीय सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधानिक बैंच ने आधार से जुडती सभी असमंजसों को दूर करते हुए एक ऐतिहासिक जजमेंट दिया।
इस केस की पृष्ठभूमि देखें तो माननीय सर्वोच्च न्यायालय में आधार कार्ड की संवैधानिकता को चुनौती देती हुई 31 याचिका ओं को लेकर कुल मिलाकर 38 दिनों तक सुनवाई चली । न्यायालय में आधार कार्ड की संवैधानिकता मान्यता को चुनौती दी गई थी, याचिका दायर करने वालों में एक उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री के. एस. पट्टास्वामी भी शामिल थे।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने जजमेंट से सभी भारतीयों के लिए 12 अंकों के आधार नंबर को संवैधानिक मान्यता बरकरार रखने के साथ-साथ अपने फैसले में आधार उपर के प्रत्येक हमले को संविधान के विरुद्ध बताया है।
आधार कार्ड 12 अंकों का बायोमेट्रिक कार्ड है जिसमें प्रत्येक कार्ड धारक का फोटोग्राफ, दोनों हाथों की दसों उंगलियों के निशान (फिंगर प्रिंट) और दोनों आंखों की रैटिना की निशानी है। इस तरह से भारत का आधार कार्ड विश्व के देशों के ऐसे ही अन्य पहचान पत्रों के मुकाबले काफी अलग और अनूठा है। आइये विश्व के दूसरे देशों में ऐसे पहचान पत्रों के बारे में जानते हैं। विश्व में सबसे स्वीकृत पहचान पत्र के रूप में ड्राइविंग लाइसेंस सबसे आगे हैं। विश्व में सबसे पहले फ्रांस ने 1804 में अपने नागरिकों को पहचान पत्र दिए थे, इससे पहले फ्रांस में ही नेपोलियन के समय में पहचान पत्र दिए गए थे परन्तु उसका उद्देश्य केवल कामगारों की हरकतों पर नजर रखना ही था। दुसरे विश्व युद्ध की शुरुआत में 1938 में इंग्लैंड और जर्मनी ने अपने नागरिकों के लिए पहचान पत्र आवश्यक कर दिए थे। जर्मनी का उद्देश्य यहुदियों की पहचान कर उनको अलग-थलग करना था।
अंतरराष्ट्रीय निजता संगठन (Privacy International) के 1996 के रिपोर्ट के मुताबिक विश्व में करीब 100 राष्ट्रों में पहचान पत्र को आवश्यक यानी कंपल्सरी माना गया है, वहीं कुछ ऐसे भी देश है जहां कोई राष्ट्रीय पहचान पत्र नहीं है और कुछ देशों में एक से अधिक पहचान पत्रों को मान्यता मिली हुई है।
भारत में सर्व प्रथम नैशनल आइडेंटिटी कार्ड जैसा कार्ड होना चाहिए ऐसा विचार सर्व प्रथम 2009-10 में तत्कालीन सरकार ने रख्खा, मंत्रीओं के एक ग्रुप ने ऐसा विचार किया कि देश के प्रत्येक नागरिक के पास एक नैशनल आइडेंटिटी कार्ड होना चाहिए। इस योजना को कार्यान्वित करने हेतु 28 जनवरी 2009 में तत्कालीन योजना आयोग ने एक नोटिफिकेशन जारी किया, 2010 में नैशनल आइडेंटिफिकेशन ओथोरीटी ओफ इंडिया (UIDAI) बिल लोकसभा में लाया गया जिसे 2016 में वर्तमान सरकार ने पास किया। विश्व प्रसिद्ध इन्फोसिस कंपनी के श्री नंदन नीलेकणी इसके प्रथम अध्यक्ष बने। 2011 तक देश के करीब 10 करोड़ लोगों ने अपना आधार कार्ड बनवा लिया था, तभी दिसंबर में UIDAI बिल पर स्टैन्डींग कमीटी ने “नागरिकों की नीजी और संवेदनशील जानकारी ओं की सुरक्षा कैसे होगी ?” एसा कहकर आधार के लिए एकत्रित की गई जानकारियों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया, और 2013 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कुछ सरकारी विभागों ने आधार कार्ड को आवश्यक करने का सरक्युलर जारी किया है परन्तु यह निश्चित किया जाए कि जिन्होंने आधार कार्ड अब तक बनवाया हो उनको नुकसान न पहुंचे। 15अक्तुबर 2015 में न्यायालय ने कहा आधार कार्ड स्वैच्छिक है और जब तक न्यायालय अंतिम आदेश नहीं देता तब तक आधार कार्ड को अनिवार्य नहीं बना सकते।
3 मार्च 2016 में वर्तमान श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने आधार बिल लोकसभा के पटल पर रखा बाद में इस बिल को फीनान्शियल बिल के तौर पर पास किया गया। 25 मार्च 2016 में राष्ट्रप्रमुख ने इस बिल को मंजूरी दे दी, और 10 मइ 2016 में ही कोंग्रेस के नेता जयराम रमेश आधार बिल को फीनान्शियल बिल के तौर पर पारित कराने के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में गये और याचिका दाखिल की। इस से पहले 30 नवंबर 2013 में कर्णाटक उच्च न्यायालय के निवृत्त न्यायाधीश श्री के. एस. पट्टास्वामी भी आधार के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे अपनी पीआईएल को लेकर जिसमें उन्होंने आधार कार्ड के लिए लिए जाने वाले बायोमेट्रिक डेटा को नागरिकों की निजता के अधिकार का भंग होने की दलील दी थी।
आधार कार्ड के विषय पर फैसला देने से पहले माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सामने कुछ प्रश्न ऐसे थे ।
– संसद में मनी बिल के तौर पर पारित किया गया आधार एक्ट संविधानिक रुप से उचित है ?
– क्या आधार नागरिकों की निजता के अधिकार का भंग करता है ?
– सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के लिए आधार एक मात्र सबूत कैसे हो सकता है ?
– अगर सरकार आधार के डेटा का उपयोग सामुहिक जासूसी के लिए करें तो क्या ?
दिनांक 26 सितंबर को हुई सुनवाई में कुछ बातें सामने आई। आधार के विरुद्ध अर्जी करने वालों ने क्या कहा और उनके सामने सरकार की ओर से क्या जवाब दिया गया।
अर्जी कर्ता ओं की कुछ दलीलें
- UIDAI का डेटा एकत्रित कर रही एजेंसियों के साथ कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है, जो संदेहास्पद है ।
- किसी का आधार डिएक्टिवेट करना नागरिक को मारने के जैसा है।
- संविधान राज्य को अधिकार नहीं देता किन्तु राज्य के अधिकारियों की सीमाएं तय करता है।
- बायोमेट्रिक और व्यक्तिगत जानकारियां आज के डिजिटल विश्व में एक बार बाहर चलीं गईं तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता।
सरकार की ओर से दलीलें और स्पष्टताएं
- आधार एक्ट ऐसा है जो कीसी की भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कम से कम भंग करता है
- आधार के डेटा को एक ही जगह सेंट्रलाइज्ड तरीके से स्टोर किया जाता है। उसके लिए 2048 के एन्क्रीप्शन का इस्तेमाल किया गया है।
- कोई भी और किसी का भी अधिकार निरंकुश नहीं है हितों की रक्षा के लिए अधिकारों पर रोक लगाई जा सकती है।
- बैंक फ्रोड, मनी लोंन्डरींग, आर्थिक धोखाधड़ी की पहचान के लिए बायोमेट्रिक पहचान ज़रुरी है।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री दिपक मिश्रा के नेतृत्व में बनी पांचन्यायाधिशों की बैंचने अपने जजमेंट से सभी बातों को साफ़ और स्पष्ट कर दिया है।
इस केस के जजमेंट के तीन सैट आयें। पहले सेट में जस्टीस दिपक मिश्रा, जस्टीस ए.के. सिकरी और जस्टीस ए.एम. खानविलकर ने अपने जजमेंट में पान कार्ड और आइटी रिटर्न को आधार से जोड़ने के सरकार के निर्णय को उचित ठहराया और बैंक खातों एवं मोबाइल नंबर के साथ जोड़ने को रद्द कर दिया। जजों ने कहा आधार एक्ट की धारा 57 गैरसंवैधानिक है, नीजी, प्राईवेट कंपनीयां आधार की जानकारी नहीं मांग सकती। आधार एक्ट की धारा 33(2) को गैरसंवैधानिक करार देते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु कीसीभी नागरिक की पहचान एवं ओथेन्टीकेशन सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। आधार एक्ट की धारा 47 को रद्द कर दिया, विशेष रूप से कहा समाज के पिछड़े वर्ग के लोगों का सशक्तिकरण हो रहा है उनको अधिकारों से वंचित नहीं कर सकते। आधार का उपयोग कर के प्रोफाईलींग नहीं किया जा सकता। UIDAI के द्वारा आधार के डेटा की सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं।
जजमेंट के दुसरे सेट में न्यायमूर्ति अशोकभूषण ने कहा कि आधार नंबर को मोबाइल नंबर के साथ जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है, सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और सब्सीडी के लाभ के लिए आधार एक्ट की धारा 7 को बनाए रखने के लिए सरकार के पास प्रर्याप्त सबूत है। आधार एक्ट जासूसी के लिए ढांचा तैयार नहीं करता है।
जजमेंट के तीसरे सेट में न्यायमूर्ति डी.वाय. चंद्रचूड़ ने अपना जजमेंट रखा। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि संपूर्ण आधार एक्ट असंवैधानिक है, और भारत सरकार की सभी योजनाओं के लिए आधार अनिवार्य करने पर भारत में जीना मुश्किल हो जाएगा। आधार एक्ट को मनी बिल के तौर पर पारित करना संविधान के साथ छल है। आधार अंतर्गत जानकारियों के आधार पर जासूसी करना संभव है।
इस जजमेंट की खास बातें जहां आधार अनिवार्य नहीं है
- बैंक में खाता खोलने के लिए एवं बैकींग सेवाओं के लिए आधार अब अनिवार्य नहीं है
- मोबाइल नंबर को आधार से लिंक कराना अनिवार्य नहीं है
- NEET, UGC, CBSE जैसी परीक्षाओं में आधार अनिवार्य नहीं किया जाएगा।
- मोबाइल कंपनियां, मोबाइल वोलेट कंपनीयां एवं अन्य नीजी, प्राईवेट कंपनीयां आधार नंबर नहीं मांग सकती।
ईस जजमेंट के जहां आधार अनिवार्य अब आधार अनिवार्य होगा
- PAN के साथ आधार नंबर के साथ जोड़ना अनिवार्य होगा।
- PAN आवंटन एवं आइटी रिटर्न भरने के लिए आधार नंबर अनिवार्य होगा।
- सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए एवं सब्सीडी पाने के लिए आधार अनिवार्य होगा।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक जजमेंट में आधार एक्ट की धारा 33(2), 47, और 57 को रद्द कर दिया है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए डेटा साझा करने वाली धारा 33 (2), आधार एक्ट के उल्लंघन के मामले में न्यायिक अधिकार क्षेत्रो को नियंत्रित करने वाली धारा 47 एवं नीजी, प्राईवेट कंपनीयां और व्यक्तिओं को आधार के डेटा साझा करने की अनुमति देने वाली धारा 57 को रद्द कर दिया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से अब राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कीसी भी नागरिक की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकेगी, और नीजी प्राईवेट कंपनीयां भी अब आधार के डेटा का उपयोग नहीं कर पाएंगी।
आज भारत की वर्तमान आबादी के करीब 90% लोगों के पास आधार कार्ड है, देश में हाल में 123 करोड़ लोगों ने अपना आधार कार्ड बनवा लिया है। जीस में करीब 4.4% की आयु 0 से 5 वर्ष है, 23.6% लोगों की उम्र 5 वर्ष से 18 वर्ष तक की है और करीब 72% आधार कार्ड धारक की आयु 18 वर्ष या उससे अधिक है ।
It is better to be 'Unique" than best
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें