सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

जम्मु और कश्मीर पर कब्जा करने का नापाक षड्यंत्र : ओपरेशन टोपाक - पार्ट 1

स्वतंत्रता के समय अंग्रेजों ने षड्यंत्र के तहत भारत को अनेक रजवाड़ों में बिखेरा था परंतु सरदार वल्लभभाई पटेल ने दीर्घदृष्टि, चतुराईपूर्वक करीब 562 रजवाड़ों को भारतीय संघ में जोड़कर एकीकृत भारत के नक्शे का निर्माण किया । 1947 से ही पाकिस्तान की मंशा जम्मु और कश्मीर पर कब्जा करने की थी, स्वतंत्रता दिवस से ही भारत के लिए जम्मु और कश्मीर तत्कालिन प्रधानमंत्री श्री की ढीली, द्रष्टीहीन, एक तरफा नीति के चलते एक हमेशा तकलीफ देनेवाला राज्य बन गया जिसके लिए भारत को पाकिस्तान के साथ तीन तीन युद्ध लड़ने पड़े और प्रत्येक बार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी।
शौर्यवान भारतीय सेना ने पाकिस्तान को 1971 में दो टुकड़ों में विभाजित कर विश्व के पटल पर एक नये राष्ट्र का निर्माण किया, करीब एक लाख पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने समर्पण कर हथियार डाल दिए थे हालांकि वह बात अलग है कि भारत की सेना जो युद्ध के मैदान में जीतकर लाती है उसे राजनीतिक नेतृत्व टेबल पर हार जाते हैं, 1971 के युद्ध में भी यही हुआ और सिमला में जो हुआ वो इतिहास है।
1971 की हार पाकिस्तान की सेना को करारा तमाचा था और इस हार का बदला लेने के लिए काबुल के पाकीस्तान मिलिट्री एकेडमी के न सैनिकों को सोगंध दिलाई गई थी । 1971 की करारी हार के बाद पाकिस्तान को एक बात अच्छी तरह समझ में आ गई थी की भारत को युद्ध में हराना उसके लिए न केवल मुश्किल परंतु असंभव है। ईस वास्तविकता को पहचान पाकिस्तान ने अपनी रणनीति में आमूल परिवर्तन कर भारत के साथ छद्म युद्ध छेड़ने का षड्यंत्र रचा जिस षड्यंत्र का पर्दाफाश जुलाई 1989 के में इंडियन डिफेंस रिव्यू (IDR) में पहली बार किया गया। संपूर्ण आर्टीकल पढ़ने के बाद आज जम्मु और कश्मीर में जिस तरह स्थानिक पुलिस, कश्मीरी युवा जो रक्षा विभाग में कार्यरत हैं उन पर जो हमलें हो रहें हैं और उनकी जो हत्याएं हो रही है उसके पीछे का रहस्योद्घाटन हो जाता है। ओपरेशन टोपाक के तहत उन स्थानिक कश्मीरीओं पर हमले और उनकी हत्या करना अंतिम चरण है।
क्या है ओपरेशन टोपाक :
1971 की करारी हार और अपना आधा हिस्सा खोने के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने कश्मीर पर कब्जा करने के लिए भारत के साथ 1000 वर्ष लड़ने की गिदड भभकी दी थी, परंतु वो खुद 10 वर्ष तक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नहीं रह पाये, जीया उल हक़ ने बगावत कर 1979 में भुट्टो को फांसी पर लटका दिया।
अब पाकिस्तान लश्करी शासन की एड़ी के नीचे आ चुका था। दुसरी तरफ अफगानिस्तान में तालिबान का उद्भव हुआ, और अब 1971 के वैश्विक अपमान का बदला लेने के लिए, छद्म युद्ध छेड़ने के लिए जनरल जीया उल हक़ की अगुवाई में षड्यंत्र रचा गया, जिसका नाम ” ओपरेशन टोपाक” 
भारतीय जासूसी संस्था रो “रिसर्च एंड एनालिसिस विंग” (RAW) के जांबाज जासूसों ने जीया उल हक़ ने अप्रैल 1988 में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई (Inter Service Intelligence – ISI) के सामने जो प्रेजन्टेशन दिया था उसके सबूत इकट्ठा कर “ओपरेशन टोपाक” का पर्दाफाश किया। भारत के विरुद्ध यह एक छद्म युद्ध था । शुरुआत में यह षड्यंत्र को तीन चरणों में कार्यरत करने की बात हुई जिसे बाद में तीन और चरण जोड़कर 6 चरण तय कीए गये और प्रत्येक चरण में क्या करना है उसकी रणनीति बनाई गई।
जीया उल हक़ ने 1988 अप्रैल में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के सामने जो प्रेजन्टेशन दिया था उसकी शुरुआत के अंश कुछ यह थे “ जैन्टलमेन, मैंने इस विषय पर काफी समय पहले बात की है इसलिए मैं विवरणों में नहीं जाउंगा। आप जानते हैं कि इस्लाम के लिए अफगानिस्तान में हमारी व्यस्तता के कारण यह योजना आपके सामने पहले नहीं रख पाया । हमारा लक्ष्य स्पष्ट और द्रढ है कि कश्मीर घाटी की मुक्ति, घाटी के हमारे कश्मीरी मुस्लिम भाईयों को अब ज्यादा समय तक भारत के साथ नहीं रहने दिया जा सकता । अतीत में हमने सैन्य और हथियारों के विकल्प का चयन कर इस्तेमाल किया था परंतु हम सफल नहीं हो पाए। इसलिएजैसे कि मैंने पहले उल्लेख किया अब हमने सैन्य के विकल्प को आखिरी रखा है और वो भी आवश्यकता पड़ने पर ही। कश्मीर घाटी के हमारे भाई दिल और दिमाग से हमारे साथ है और हमारी विचारधारा वाले हैं। हालांकि जैसे पंजाबी और अफगानी लोग में विदेशी प्रभुत्व के खिलाफ युद्ध को जितनी स्वाभाविकता से स्वीकार्य है ऐसा कश्मीरीओं में स्वीकार्य नहीं है। हालांकि कश्मीरीओं में कुछ गुण है जिसका हम इस्तेमाल कर सकते हैं, पहला गुण है उनकी चतुराई और बुद्धि, दबाव में अपने को संरक्षित करने की शक्ति और तीसरा अगर मैं कहुं तो वो अपनी राजनीतिक चाल का खुद मास्टर है, अगर हम कुछ ऐसा करें जिससे वो अपने गुणों का इस्तेमाल कर सकें। जैसा की मैंने पहले कहा सैन्य की आवश्यकता हर बार ज़रुरी नहीं है खासकर हमें जो स्थिति कश्मीर में मिलने वाली है।
आगे जनरल जीया उल हक़ अपने आइएसआइ के लोगों को अपने ओपरेशन टोपाक का विस्तृत वर्णन किया है। कैसा होगा, कौन चलायेगा, क्या चाहते हैं, क्या लक्ष्य है, क्या मिलेगा और क्या पाकिस्तान चाहता है ? जीया उल हक़ कहते हैं…..
यहां हमें युद्ध के उन तरीकों को अपनाना होगा जिसे कश्मीरी स्वीकार करें और उसमें जुड़े, दुसरे शब्दों में कहें तो सैन्य कार्रवाई न करके कश्मीरी के नैतिक और भौतिक मूल्यों का समन्वित इस्तेमाल करना चाहिए जिससे हमारे दुश्मन की इच्छाशक्ति को नष्ट कर दें, उसकी राजनीतिक क्षमता को खत्म कर दुनिया के सामने एक दमनकारी के रूप में उसे दिखा सकें। जैन्टलमेन हमने शुरुआत में यह लक्ष्यांक पाना है ।
इसके बाद पाकिस्तान के लश्करी तानाशाह जनरल जीया उल हक़ ने अपने नापाक इरादों को “ओपरेशन टोपाक” के जरिए हासिल करने की साज़िश का पुरा स्वरुप कहा है।
अपूर्ण…….

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Bhai eto sachi bat kahi aapne me sahmat hu aapke bicharo se

Unknown ने कहा…

🙄😯

Unknown ने कहा…

ઓપરેશન ટોપાક સાચું છે

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