शनिवार, 17 नवंबर 2018

भारत का प्रथम जलियांवाला हत्याकांड : मानगढ़ पहाड़ी

ओ रे भुरेतिया नइ मानु रे, नइ मानु अर्थात् ओ अंग्रेजों हम नहीं झुकेंगे तुम्हारे सामने यह गाना गाते हुए राजस्थान और गुजरात की सीमा में मानगढ़ नामक पहाड़ी पर करीब 1500 से ज्यादा भारतीय आदिवासी भीलों ने अंग्रेजों के आगे न झुककर अपने प्राणों की आहुति दी थी।
गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में फैले वागड़ अंचल की लोक-संस्कृति, परंपराओं और जीवन अपने आपमें अनुठा है। यह क्षेत्र शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भले ही पिछड़ा माना जाता हो परंतु इसी अंचल से लोक चेतना, सामाजिक सुधार एवं स्वातंत्र्य की अभिप्सा से अलंकृत है। स्वाभिमान की रक्षा की द्रष्टी से वागड़ अंचल किसी से भी कम नहीं है, आत्म सम्मान की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के संस्कार का ज्वलंत प्रतिक एवं अतुलनीय उदाहरण है मानगढ़-धाम ।
17 नवंबर 1913 के दिन राजस्थान – गुजरात की सीमा में फैली अरावली पर्वत श्रंखला में शामिल मानगढ़ नामक पहाड़ी पर मेजर एस बैली और कैप्टन इ. स्टाइली ने आदिवासियों के ऐसे बर्बर नरसंहार को अंजाम दिया था, जिसको वर्तमान इतिहास में वो स्थान नहीं मिल पाया जिसका वो अधिकारी था। यह देशभक्त आदिवासी भीलों ने गोविंद गुरु के नेतृत्व में अपना बलिदान दिया था।
गोविंद गुरु का जन्म 30 दिसंबर 1858 में वर्तमान राजस्थान के डुंगरपुर जिले के बासीपा गांव के एक बंजारा परिवार में हुआ था। गोविंद गुरु सामाजिक रूप से जागरूक एवं धार्मिक भावनाओं से भरे व्यक्तित्व के स्वरुप थे। उन्होंने भीलों और गरासियों में व्याप्त कुरितियों के विरुद्ध जागरूकता यज्ञ शुरू किया हुआ था। 1890 के दशक के उत्तरार्ध में उन्होंने भीलों के सशक्तिकरण के लिए “भगत आंदोलन” शुरू किया। इस आंदोलन में अग्नि देवता प्रतिक स्वरुप माना गया था, गोविंद गुरु के अनुयायियों को पवित्र अग्नि के सन्मुख खड़े होकर पूजा के साथ साथ हवन यानी धुनी करना होता था। गोविंद गुरु के “भगत आंदोलन” के कारण भीलों ने शाकाहार अपनाना और सभी प्रकार के मादक एवं नशीले पदार्थों के सेवन से दूर रहना शुरू कर दिया था । गोविंद गुरु इस धुनी के माध्यम से भीलों में एकता को बढ़ावा देने लगे, साथ साथ दुराचार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, और सादगी से जीवन जीने के लिए जागृति लाने लगे। “भगत आंदोलन” को मजबूत करने के लिए गुजरात धरा पर “संप सभा” नामक सामाजिक एवं धार्मिक संगठन शुरु हुआ और देखते ही देखते संप सभा गांव गांव तक फैल गया।
उस समय दक्षिणी राजस्थान के सामंतों, जमींदारों और अंग्रेजों के द्वारा आदिवासी भीलों का बंधुआ मजदूरी, भारी लगान से शोषण और गोविंद गुरु के अनुयायियों का उत्पीडन किया जाता था। भगत आंदोलन और संप सभा सामंतों, जमींदारों एवं अंग्रेजी जड़ों को हिलाने लगा है इस बात का अंदाजा आने के बाद सामंतों, जमींदारों एवं अंग्रेजी सरकार ने षड्यंत्र कर गोविंद गुरु को गिरफ्तार कर लिया परंतु आदिवासी भीलों की एकता और विरोध से डरकर उनको रिहा कर दिया गया।
गोविंद गुरु ने 1903 में मानगढ़ पहाड़ी पर अपनी धुनी लगाई,1910 में उनके आव्हान और मार्गदर्शन से भीलों ने अपनी ओर से 33 मांगे अंग्रेजों के सामने रखी, जिसमें प्रमुख मांगे थी अंग्रेजों, सामंतों एवं जमीनदारों की मुफ्त में बंधुआ मजदूरी से मुक्ति, भारी लगान कम हो और गोविंद गुरु के अनुयायियों पर हो रहे अत्याचार बंद करना था परंतु भीलों की मांगों को अस्वीकार कर दिया गया ।
अंग्रेज़ों, सामंतों और जमीनदारों के द्वारा अपनी मांगे अस्वीकार करने के बाद तथा मुफ्त में बंधुआ मजदूरी की व्यवस्था को समाप्त नहीं करने के कारण गोविंद गुरु के अनुयायियों में तथा भीलों में रोष का वातावरण उत्पन्न हुआ और नरसंहार के एक महीने पहले ही भीलों ने मानगढ़ पहाड़ी पर कब्जा कर लिया और अंग्रेजों से अपनी स्वतंत्रता की सौगंध खाई। खतरे को भांपकर शातिर अंग्रेजों ने वर्षभर जुताई के सवा रुपए की पेशकश की परंतु भीलों ने इसे ठुकरा दिया।
भीलों ने अब संघर्ष की शुरुआत कर दी थी, इस संघर्ष का नारा बना “ओं भुरेतिया नइ मानु, रे नइ मानु” “ओ अंग्रेजों नहीं झुकेंगे तुम्हारे सामने” इस संघर्ष की प्रथम घटना संतरामपुर के पुलिस थाने पर हुए हमले में एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई। इस घटना के बाद बांसवाड़ा, संतरामपुर, कुशलगढ़, डुंगरपुर, मध्यप्रदेश के कुछ इलाके एवं गुजरात के कुछ इलाकों में गोविंद गुरु के अनुयायियों की शक्ति बढ़ने लगी, इससे अंग्रेजों एवं रजवाड़ों को लगा कि इस आंदोलन को कुचल देना चाहिए।
भीलों ने गोविंद गुरु के नेतृत्व में मानगढ़ पहाड़ी को अपना केन्द्र बनाया हुआ था । भीलों को मानगढ़ पहाड़ी खाली करने की चेतावनी दी गई जिसकी आख़री दिनांक 13 नवंबर 1913 थी परंतु गोविंद गुरु के नेतृत्व में उनके अनुयायी भीलों ने इसे मानने से इन्कार कर दिया।
17 नवंबर 1913 को मेजर हैमिल्टन सहित तीन अंग्रेज अफसरों के नेतृत्व में उनकी सैनिक टुकड़ी और रजवाड़ों की अपनी सेना ने मानगढ़ पहाड़ी को संपूर्ण रुप में घेर लिया, भीलों को वहां से डराकर भगाने के लिए हवा में गोलियां चलाई गईं, कुछ ही क्षणों में अंग्रेजी असली बर्बरता सामने आई और हजारों भीलों पर अंधाधुंध, निरंकुश गोलियों की बौछार कर दी गई। काफी आदिवासी भील खेड़ापा खाई की ओर भागे जिससे उनकी मौत हो गई। कहा जाता है कि अंग्रेजों ने खच्चरों पर बंदूकें बांध दी थी और खच्चरों को गोल दौड़ाया जा रहा था उस बंदूकों से गोलियां चल रही थी ऐसा इसलिए किया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारा जाए, और इसकी कमान अंग्रेजी अफसर एस. बैली और कैप्टन इ. स्टोइली के हाथ में थी।
इस जधन्य, अमानवीय नरसंहार में करीब 1500 से ज्यादा भील एवं अन्य वनवासी की हत्या कर दी गई, कहते हैं यह बर्बर हत्याकांड अंग्रेज अफसर ने तब रोका जब उसने देखा कि एक वनवासी स्त्री मारी गई है और उसका बच्चा उसके निष्चेट शरीर से चिपककर स्तनपान कर रहा था।
इस हत्याकांड के कारण मानगढ़ पहाड़ी के आसपास के विस्तारों में इतना खौफ पैदा हो गया था कि स्वतंत्रता के बाद भी कइ वर्षों तक भील मानगढ़ पहाड़ी जाने से कतराते थे। अंग्रेजों ने भी इस बर्बर हत्याकांड के सबुतों को मिटाने की ही मंशा से इस जगह को प्रतिबंधित घोषित कर दिया था।
1500 से अधिक भीलों एवं अन्य वनवासी ओं की हत्या कर दी गई थी उसके बाद भी बचे हुए करीब 900 लोगों ने मानगढ़ पहाड़ी छोड़ने से, खाली करने से मना कर दिया। अंग्रेजों ने उन सभी को गिरफ्तार कर लिया । गोविंद गुरु को भी पैर में गोली लगी थी, अंग्रेजों ने उनको भी पकड़ लिया। गोविंद गुरु को अहमदाबाद और संतरामपुर की जैल में बंदी बनाकर रखा गया, बाद में उन पर मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई बाद में उसे बदलकर आजीवन कारावास कर दिया गया। उनके अच्छे व्यवहार और लोकप्रियता को देखते हुए 12 जुलाई 1923 में अपने समर्थकों के विस्तार में जाने पर प्रतिबंध लगाकर मुक्त कर दिया गया। मुक्त होने के बाद गोविंद गुरु गुजरात के दाहोद के मीराखेडी आश्रम – भील सेवा मंडल पर कुछ वर्षों तक वनवासी समाज में जागृति का कार्य करते रहे, बाद में पंचमहाल के लीमडी नजदीक कंबोइ में रहे, 30 अक्टूबर 1930 को उनका स्वर्गवास हुआ।
अंग्रेजों की बर्बरता के प्रतिक मानगढ़ धाम का यह हत्याकांड 19 अप्रैल 1919 में हुए पंजाब के जलियांवाला बाग के हत्याकांड के 6 वर्ष पहले हुआ था। इतिहास में मानगढ़ पहाड़ी के शहिदों को कदाचित उतनी जगह नहीं मिली है जिसके वो अधिकारी है। परंतु लहु अंत में तो लहु ही है टपकेगा तो जमकर ही रहेगा, इस कुदरत के न्याय को प्रमाण देते हुए आज हजारों लोग मानगढ़ धाम इन शहिदों को वंदन करने और अपनी कृतज्ञता प्रकट करने आते हैं।

बुधवार, 14 नवंबर 2018

श्री रामायण एक्सप्रेस

भगवान श्रीराम प्रत्येक भारतीय के ह्रदय में स्थान रखते हैं, संपूर्ण देश भगवान श्रीराम के प्रति आस्था रखता है। प्रत्येक हिंदु का एक स्वप्न होता ही है कि जीवन में एक बार जहां जहां भगवान श्रीराम के चरणों का स्पर्श हुआ हो उस पावन तीर्थ रूप जगहों के दर्शन करें।
विश्व भर में फैले श्रीराम के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं को आज भारतीय रेल मंत्री पियुष गोयल ने एक विशेष पर्यटन ट्रेन श्री रामायण एक्सप्रेस का 14 नवंबर 2018 को हरी झंडी दिखाकर शुभारंभ किया। यह ट्रेन भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े सभी महत्वपूर्ण स्थानों के दर्शन करवाएगी।
भारतीय रेलवे की ईस सबसे अनुठी पर्यटन ट्रेन के पैकेज की सारी व्यवस्था IRCTC करेगा। इस यात्रा की अवधि 15 दिन और 16 रात होंगी, भोजन और रहने ठहरने की, कीसी स्थान को देखने की टिकट, कपड़े की धुलाई आदि की व्यवस्था इस पैकेज में शामिल होंगी। ट्रेन में कुल 800 यात्रियों की क्षमता होंगी। यह यात्रा दो हिस्सों में है, पहला हिस्सा जिसमें भारत में स्थित भगवान श्रीराम से जुड़े स्थानों के दर्शन कराएगी जबकि दुसरे हिस्सा श्रीलंका में स्थित भगवान श्रीराम के जुड़े स्थानों के दर्शन का होगा और वो यात्री पर निर्भर करता है, अगर यात्री दुसरे फैज की टुर में शामिल होना चाहें तो IRCTC चेन्नई से फ्लाइट उपलब्ध करवाएगा, दुसरे फेज की पैकेज यात्रा 6 दिन 5 रात का रहेगा और इसके लिए यात्री को अलग से भुगतान करना रहेगा। इस संपूर्ण यात्रा के दौरान IRCTC का एक टुर मैनेजर साथ होगा।
श्री रामायण एक्सप्रेस दिल्ली के सफदरजंग स्टेशन से प्रस्थान करेगी । अयोध्या इस ट्रेन का पहला स्टोप होगा, अयोध्या से होते हुए यह ट्रैन नंदीग्राम, सीतामढ़ी, जनकपुर, वाराणसी, प्रयाग, श्री रंगवीरपुर, चित्रकूट, हम्पी, नासिक और रामेश्वरम् पहुंचेगी।
श्री रामायण एक्सप्रेस की यात्रा के पहले फेज का किराया प्रति व्यक्ति ₹15,120 होगा और जो यात्री दुसरे फेज की श्रीलंका यात्रा करना चाहते हैं उनके लिए श्रीलंका यात्रा के लिए अतिरिक्त ₹39,970 प्रति व्यक्ति किराया होगा।

सोमवार, 12 नवंबर 2018

थलसेना के आधुनिकीकरण की योजना - M-777 और K-9 होवित्जर तोप

कहा जाता है "जीससे दुश्मन डरते हैं वह देश सर्वदा प्रगति करता है"

भारतीय सेना को 31 वर्षों के दीर्घकाल बाद नई आर्टीलरी मीली। बोफोर्स मार्च 1986 के बाद या फिर ऐसे कहा जाए कि बोफोर्स तोप के घोटाले के 31 वर्षों बाद दिनांक 9/11/18 को संरक्षण मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने भारतीय सेना को M777 अल्ट्रा लाइट वेइट होवित्जर आर्टीलरी और K9 को समर्पित किया।
इस 31 वर्षों में ऐसा प्रश्न उठ रहा था कि भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की कोशिश क्यों नहीं हो रही ? विश्व के हथियारों में बदलाव आ चुका है परंतु भारत की सेना क्युं 31 वर्ष पुरानी तकनीक के साथ जुज़ रही है ? समस्त विश्व की सेनाएं आधुनिक तकनीक बनें हथियारों से लैस है और भारतीय सेना क्यों 30-35 वर्ष पुरानी तकनीक से बनें हथियारों से लड रही है ? ऐसा महसूस हो रहा था जैसे संपूर्ण संरक्षण व्यवस्था को बोफोर्सालिसिस हो गया था, और खासकर 2004 के पश्चात इस बोफोर्सालिसिस ओर गहेरा हो गया था जब तत्कालीन संरक्षण मंत्री ए.के. एंटनी ने कहा कि सरकार के पास सेना के लिए जैट खरीदने के पैसे नहीं है । इस दौरान एक दौर ऐसा भी आया था जब 1999 में वाजपेई सरकार के कार्यकाल में भारतीय सेना के आधुनिकीकरण की पुरी योजना बनाई गई थी जीसे Field Artillery Rationalisation plan (FARP) फिल्ड आर्टीलरी रेशनालाइजेशन प्लान नाम दिया गया था । इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2027 तक 220 रैजिमेन्ट को अलग अलग आधुनिक आर्टीलरी प्रणाली से लैस करना था, इसके हेतु 3000 - 3600 आर्टीलरी 155 मिमी/39 कैलिबर की हल्के वजन वाली होवित्जर आर्टीलरी, 155 मिमी/52 कैलिबर टौड, माउन्टैन, सेल्फ प्रोपेल्ड (ट्रेक्ड और व्हीलर) तोपों का अधिग्रहण करना था हालांकि कुछ समय से इस योजना को कार्यान्वित करने में बिजली जैसी गति देखने को मिली है जिसे तीन चार वर्ष पहले पुरे दशक तक नजरंदाज कर दिया गया था।
आखिर भारतीय थल सेना के लिए अच्छे दिन आ गये, 1999 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार ने थलसेना के आधुनिकीकरण की जो योजना बनाई थी वो जमीनी वास्तविकता बनी जब अनेक टेन्डर्स को जांचने के बाद 2016 में 145 M-777 हलके वजन की होवित्जर तोपें और 2017 में 100 K-9 सेल्फ प्रोपेल्ड तोपों के अधिग्रहण का निर्णय लेकर ओर्डर दिया गया।
M777 और K9 दोनों तोपों का उत्पादन नरेन्द्र मोदी सरकार के अति महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट Make In India के अंतर्गत बनाया जायेगा। M-777 बनाने वाली अमेरिका की कंपनी बीएइ सिस्टम ने भारत में इस तोपों को बनाने के लिए महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम के साथ हाथ मिलाया है जबकि दक्षिण कोरिया की हान्वा टेकविन भारत में लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के साथ मिलकर K-9 का एसेम्बल करेंगी। M-777 और K-9 होवित्जर तोप की विशेषताएं क्या है ?
M-777 की विशेषताएं :
M-777 विश्व के पटल पर सबसे पहले अफगान युद्ध के दौरान आई थी। कुछ संरक्षण विशेषज्ञों की मानें तो इस होवित्जर तोप विश्व में करीब 1200 की संख्या में उपयोग में लाई जा रही है।एम-777 होवित्जर तोप वर्तमान विश्व में अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के पास है और अब भारत इस क्लब में शामिल होगा। कुल 145 एम-777 होवित्जर तोप भारत खरीदेगा जिसमें से 5 रेडी टु फायर मोड़ में भारत को मिल चुकी है, 20 तोप मे 2019 में भारत को मिलेगी जबकि बाकी की 120 एम-777 तोपों का एसेम्बलिंग Make in India के अंतर्गत अमेरिका की कंपनी BAE systems की भारतीय भागीदार महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम में किया जाएगा। अमेरिकी कंपनी बीएई सिस्टम्स और महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम जुन 2019 से 5 तोप प्रति महीने सौंपेंगी और 24 महीनों में सभी 145 तोपों को बनाकर भारत की थलसेना को सौंप दिया जाएगा। भारतीय थलसेना ने इस हल्के वजन की होवित्जर तोपों की कुल सात रैजिमेन्ट बनाने की योजना बना रही है जिसमें प्रत्येक रैजिमेन्ट में 18 तोपें होंगी। एम-777 होवित्जर तोपों का परिवहन काफी आसान है, इसे हवाई जहाज या हैलिकॉप्टर से उंचाई पर पहुंचाया जा सकता है, इस विशेषता को देखते हुए भारत चीन सीमा के लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश जैसी ऊंची जगह पर तैनात करने की योजना भी बनाई जाएगी। कुछ रिपोर्ट के अनुसार भारत एम-777 हल्के वजन के होवित्जर तोपों की माउन्टैन स्ट्राईक कोर्प की रचना की भी योजना है। इस तोपों के परिवहन के लिए 15 चिनूक हैलिकॉप्टर अगले वर्ष भारत को मिलने की डिल की गई है।M-777 हल्के वजन की होवित्जर तोप का वजन 4200 किलोग्राम है जो बोफोर्स तोप के 13,100 किलोग्राम की तुलना में काफी कम है। इसकी बैरल 5.08 मीटर अथवा 16.7 फ़ीट है। M-777 होवित्जर तोप की बीना सहायता की फायरिंग रैंज 24.7 किलोमीटर तक की है जबकि रोकेट की सहायता से रैंज बढ़कर 30 किलोमीटर तक की होती है। यह होवित्जर तोप तीव्र फायरिंग की स्थति में 5 राउंड प्रति मिनट और लगातार फायरिंग की स्थति में 2 राउंड प्रति मिनट गोले दाग सकती है। इस तोप की सबसे बड़ी विशेषता है हमला कर के भाग जाना अर्थात् हीट एन्ड रन इस विशेषता से दुश्मन देश के लिए इसका स्थान ढुंढना काफी मुश्किल हो जाता है।
K-9 सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप
इस तोप के नाम में "K" पूर्व राष्ट्रप्रमुख ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम को अभिप्रेरित है। भारतीय थलसेना में के-9 आकर 50 वर्ष पुरानी, 1964 में अधिग्रहीत की गई 105 मिमी Abbot की जगह लेगी ऐसा संरक्षण विशेषज्ञों का मानना है। के-9 तोपों का अधिग्रहण अब तक के इतिहास में किया गया सब से अधिक गति से किया गया अधिग्रहण कहा जाता है। इस तोपों को राजस्थान के रेगिस्तान में तैनात करने की योजना है, इससे लगता है कि K-9 भारत का पाकिस्तान की अमेरिकी तोप 109A5 को ज़वाब है। के-9 दक्षिण कोरिया की कंपनी हान्वा टेकविन के द्वारा बनाई और विकसित की है। भारत 100 के-9 सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप खरीदने वाला है, जिसमें से 10 तोपें दक्षिण कोरिया में बनाकर भारत लाई जाएगी और बाकी की 90 तोपों का एसेम्बलिंग भारत में हान्वा टेकविन की भारतीय भागीदार एल एंड टी के गुजरात के हजीरा रैंज में होंगी। अभी भारत को 10 तोपें मिल चुकी है बाकी की 90 तोपों में से 40 तोप नवंबर 2019 में और 50 तोप नवंबर 2020 में भारतीय थलसेना को सौंप दी जाएगी।
K-9 तोप की गोलेबारी की रैंज 28-38 किलोमीटर तक की है। यह तोप बर्स्ट मोड के युद्ध में प्रति मिनट 3 गोले दाग सकती है, इन्टैंस मोड़ में 15 गोले प्रति 3 मिनट फायर कर सकती हैं और सस्टैन मोड़ में 60 गोले प्रति 60 मिनट दागने की क्षमता रखती है। इस तोप की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सीधे फायरिंग में 1 किलोमीटर तक सटीकता से लक्ष्य भेद करने में सक्षम है। संरक्षण विशेषज्ञों की राय से मोबाइल वोरफेर के लिए विश्व की सबसे श्रेष्ठ तोपों में से एक है। इस तोप का कीसी भी पहीए वाले वाहन से परिवहन किया जा सकता है। के-9 सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप जंगल, रेगिस्तान, ठंडे प्रदेशों में असरकारक कार्य करने में कारगर साबित हो चुकी है। यह सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप नाटो मानकों (NATO Standard) पर खरी उतरी है और अब इसे भारतीय मानकों में सफलतापूर्वक ढाला गया है। भारतीय थलसेना के-9 की 20 तोपों की एक ऐसी कम से कम 5 रैजिमेन्ट बनाने की योजना बना रही है, जिसके तहत पहली रैजिमैंट जुलाई 2019 में तैयार हो जाएगी ऐसा संरक्षण विशेषज्ञों का मानना है। यह सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप ओल वेल्डेड स्टील के बख्तर से लैस है, इसे चलाने के लिए 7 जवान तैनात किए जाएंगे उनमें से 3 कम्प्युटर से तोप के निर्देश देंगे, बाकी के 4 जवानों की सुरक्षा के लिए इस तोप में सुरक्षा छत्र उपलब्ध है।इस तोप में 50% पूर्जे भारत में बने हुए होंगे, भारत के पास इस तोप के निर्यात करने का भी अवकाश होगा।
अंत में इतना जरूर लगता है कि आखिर भारतीय थलसेना के आधुनिकीकरण की योजना को लगा बोफोर्सोलिसिस अब खत्म हो गया है और भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की गति में बिजली जैसी तेजी का संचार हुआ है। 

शनिवार, 3 नवंबर 2018

Statue of Equality : डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की सबसे ऊंची प्रतिमा


स्वतन्त्रता से पहले और उसके बाद का भारत का इतिहास गौर से देखा जाए तो एक बात स्पष्ट नजर आती है कि कई ऐसे राष्ट्रपुरुष है जिन्होंने नुतन राष्ट्र निर्माण में अपना अतुलनीय योगदान दिया है, जैसे सरदार वल्लभभाई पटेल रक्त की बुंद भी बहाये बीना 562 रजवाड़ों को भारतीय संघ में जोड़कर खंड खंड भारत को एकजुट किया। जिन्होंने भारत के बाहर रहकर, आजाद हिंद फौज बनाकर स्वतंत्रता का युद्ध छेड़ा और सरकार भी बनाई ऐसे सुभाषचन्द्र बोस, स्वतंत्र भारत के संविधान के प्रमुख शिल्पकार डॉ बाबासाहेब आंबेडकर, ऐसे अनेक उदाहरण मिलेंगे, और एक खास बात भी तुरंत दिखाई देंगी की एसे अनेक महापुरुषों के राष्ट्र के प्रति योगदान को भुलाने की, मिटाने की और उनकी प्रतिभा के मुकाबले काफी कम दिखाने की कोशिश की गई या जानबूझकर या फिर…….?? यह देखकर याद आ जाता है ” History is written by victors” ।
सूर्य के प्रकाश को आप रोक सकते हो परंतु ढंक नहीं सकते। इसी वर्ष 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा Statue of Unity का अनावरण प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किया । भारत की सरकार की सर्व प्रथम रचना की 75वीं जयंति पर उस सरकार के नेता सुभाषचंद्र बोस को वंदना करने हेतु स्वतंत्रता के पश्चात पहली बार लाल किले पर तिरंगा फहराया गया। डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के राष्ट्र के प्रति योगदान को कृतज्ञ राष्ट्र के द्वारा ऋण स्वीकार करने के लिए महाराष्ट्र के मुंबई में दादर में स्थित शिवाजी पार्क में चैत्य भूमि के पास इंदु मिल में 12.5 एकड़ में करीब 250 फ़ीट ऊंची Statue of Equality 2020 तक बनकर तैयार हो जाएगी ।
Statue of Equality
दिनांक 11 अक्टूबर 2015 को वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मुंबई के शिवाजी पार्क में स्थित इंदु मिल जो इंडिया युनाइटेड मिल -6 के नाम से भी जानी जाती है और चैत्य भूमि से बहुत ही निकट है वहां डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की 350 फ़ीट ऊंची प्रतिमा का भूमिपूजन किया। बहुत समय से मुंबई में जहां डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का अंतिम संस्कार किया गया था वहां एक स्मारक बनाने की मांग की जा रही थी और पांच वर्ष पहले केन्द्र की UPA सरकार ने यहां स्मारक बनाने की मंशा जताई थी और तय भी कीया था परंतु जमीन अधिग्रहण के लिए कोई भी निर्णय नहीं ले पाई। जो 12.5 एकड़ जमीन में इस योजना का अवतरण होना था उसमें से 6 एकड़ जमीन RCZ के अंतर्गत थी । इंदु मिल भी National Textile Corporation (NTC) के पास थी नैशनल टैक्सटाइल कोर्पोरेशन और महाराष्ट्र सरकार के बीच में जमीन की कीमत के विषय में विवाद था नैशनल टैक्सटाइल कोर्पोरेशन जमीन की कीमत ₹3600 करोड़ मांग रहा था वहां महाराष्ट्र सरकार 1413.48 करोड़ पर अड़ी थी। इस विवाद के चलते यह स्मारक बनाने की योजना पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाईं। वर्तमान NDA सरकार ने इंदु मिल की वो 6 एकड़ जमीन महाराष्ट्र सरकार को हस्तांतरित करदी।
Statue of Equality स्टेच्यु ऑफ इक्वालिटी इंदु मिल की जमीन पर ही क्यों ?
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर अपने परिनिर्वाण तक दिल्ली में रहते थे, उनका परिनिर्वाण 06/12/1956 के दिन दिल्ली में हुआ था। उनकी अंतिम संस्कार क्रीया मुंबई के समुद्र तट पर की गई थी जो जगह चैत्य भूमि के नाम से देश विदेश में विख्यात है, इंदु मिल चैत्य भूमि के ठीक निकट है इसलिए इंदु मिल की जमीन पर स्टेच्यु ऑफ इक्वालिटी Statue of Equality ऐसे निर्माण किया जाएगा जिससे दोनों भूमि एक दुसरे से जुड़ी रहें।
Statue of Equality की विशेषताएं
  • Statue of Equality डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा होंगी
  • Statue of Equality अमेरिका की Statue of Liberty से भी ऊंची होंगी
  • मुंबई के दादर में शिवाजी पार्क में स्थित इंदु मिल की जमीन पर स्टेच्यु ऑफ इक्वालिटी का भव्य निर्माण होगा।
  • स्टेच्यू ऑफ इक्वालिटी 14 अप्रैल 2020 तक तैयार हो जायेगा।
  • यह प्रतिमा की डिजाइन, स्टेच्यु ऑफ युनिटी के डिजाइन कर्ता, पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित श्री राम सुतार बनायेंगे।
  • Statue of Equality की डिजाइन संसद भवन में प्रस्थापित डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की प्रतिमा जैसी होगी।
  • Statue of Equality की ऊंचाई 100 फ़ीट की बुनियाद पर 250 फ़ीट होगी अर्थात् प्रतिमा जमीन से 350 फ़ीट की ऊंची होंगी।
  • Statue of Equality कांसे की बनाई जाएगी।
  • प्रतिमा के बैस में कमल के फूल बनें होंगे।
  • आर्ट गैलरी में डॉ बाबासाहेब आंबेडकर से जुड़ी कलाकृतियां रखी जाएगी।
  • करीब 50,000 स्कवैर फ़ीट में लाइब्रेरी बनाने का आयोजन है।
  • इस परिसर में Gallery of struggle बनाई जाएगी।
  • 39622 स्कवैर फ़ीट में संग्रहालय बनाने की योजना है।
  • इस परिसर में सबसे आकर्षक बौद्ध स्तूप जैसी उपर से खुली इमारत होंगी जो 25,000 स्कवैर फ़ीट में बने तालाब के बीच में बनाई जाएगी।
  • इस परिसर में करीब 13,000 लोग एक साथ बैठकर विपसना कर सकते हैं।
  • डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के चवदार तालाब आंदोलन पर ध्वनि प्रकाश शो आयोजित किया जाएगा।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भारत के उन राष्ट्र पुरुष में से एक है जिन्हें भुलाने की कोशिश की गई, उनके राष्ट्र के प्रति योगदान को मिटाने की कोशिश की गई, दोनों प्रयास कामयाब होते न देखकर उनको किसी जाति विशेष के नेता के रूप में प्रर्दशित किया गया।
Statue of Equality डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के वो सच्चे राष्ट्रभक्त की छवि राष्ट्र के सामने रखने में सफल होगा।
डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के ही शब्दों को याद करते हुए मेरी लेखनी को विराम देता हुं।
We are Indian firstly and lastly
हम भारतीय हैं पहले और अंत में भी भारतीय हैं
– डॉ बाबासाहेब आंबेडकर

संवैधानिक संतुलन: भारत में संसद की भूमिका और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में, जाँच और संतुलन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न संस्थाओं की भूमिकाएँ सावधानीपूर्वक परिभाषित की गई है...