भारत का अपना GPS NaVIC
दिन ब दिन इंटरनेट पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है या
कहे हम अब डिजिटल होते जा रहे है, हम 2G, 3G से 4G के विश्व को छोड़कर 5G के विश्वमें प्रवेश कर चुके है। आज सामान्य बातचीत में भी “अपना लाइव लोकेशन
भेज दीजिये” जैसे शब्द आमतौर पर हम सुनते है, और हम भी जब कोई अनदेखे स्थान पर जा रहे होते है तो तुरंत गूगल मेप का सहारा
लेने लगते है,इन सभी कार्यो के लिए एक सक्षम नेविगेशन प्रणाली की आवश्यकता
होती है। वर्तमान में हम अमेरिका की GPS अर्थात ग्लोबल पोझिशनिंग सिस्टम
पर आधारित है। नौवहन प्रणाली जो की अब हमारे डिजिटल जीवन का एक अभिन्न अंग बन गई है।
क्या है GPS, इसे कब और किसने शुरू किया ?
GPS Global Positioning System को शॉर्ट में कहा जाता है। आज विश्व में सभी इस नाम को
जानते है हो सकता है की वो ग्लोबल पोझिशनिंग सिस्टम शब्द को न जानते हो परंतु GPS शब्द को न केवल जानते है बल्कि उसका यथा उचित उपयोग भी कर लेते है। GPS की शुरुआत अमेरिका की नौसेना ने 1960 के दशक मे परमाणु मिसाइलों को लेकर जा
रही अमेरिकी पनडुब्बीओं को ट्रेक करने के लिए की थी। 1970 के दशक में अमेरिका के रक्षा
विभाग DoD (Department of Defence) को भी एक मजबूत और सटीक स्थिर उपग्रह नेविगेशन सिस्टम की आवश्यकता महेसूस होने
लगी। अमेरिकी नौसेना के द्वारा विकसित की गई टेक्निक को ही अमेरिकी रक्षा विभागने अपनाया
और अपनी प्रस्तावित नेविगेशन सिस्टम को ओर बहेतर और सटीक बनाने के लिए उपग्रहो का सहारा
लेने का फैसला किया। करीब आठ वर्षो की लगातार महेनत के बाद 1978 के वर्ष में अमेरिकी
रक्षा विभागने प्रथम नेविगेशन सिस्टम की शुरुआत की। अपने प्रथम नेविगेशन सिस्टम को
अमेरिकी रक्षा विभाग (DoD) ने टाइमिंग नेड़ रेंजिंग (NAVSTAR) उपग्रह के साथ लॉन्च की, यह प्रणाली 24 उपग्रहो के साथ
वर्ष 1993 मे सम्पूर्ण रूप से कार्यरत हो गई। आज यह स्थिति है की अमेरिकी GPS सिस्टम 32 उपग्रहो के साथ पृथ्वी के हर कोने को अपनी नजरों के तले रखती है।
GPS आज के समय मे दो प्रकार की सेवाए प्रदान करता है, 1. आम लोगो को दी जानेवाली सेवाए और अमेरिकी सेना और सरकारी
एजंसीओं के लिए दी जानेवाली प्रतिबद्ध सेवाएं। वैसे देखें तो GPS एक अंतरिक्ष आधारित रेडियो नेविगेशन प्रणाली है, जो सम्पूर्णतया अमेरिकी सरकार के आधिपत्य में है, जिसका संचालन सामाजिक, वाणिज्यिक, वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अमेरिकी वायु
सेना द्वारा क्या जाता है।
भारत को अपनी GPS बनाने की जरूरत क्यों पड़ी ?
आज के समय मे करी पूरा विश्व अमेरिकी GPS सिस्टम का उपभोगकर्ता है जिसमें भारत भी शामिल है। हालांकि भारत अब अपनी GPS सिस्टम बना चुका है जिसका नाम NaVIC है। यहाँ यह प्रश्न होता है की
भारत को अपनी GPS सिस्टम बनाने की जरूरत क्यों पड़ी ? वर्ष 1999 में पाकिस्तान ने अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिया घुसपैठ
की और भारत पाकिस्तान के बीच एक सीमित प्रकार का युद्ध हुआ जिसमे भारतने फिर एकबार
पाकिस्तान को धूल चटा दी। इस कारगिल युद्ध के दौरान भारत को दुश्मनों की पोजीशन की
सटीक जानकारी मिले इसके लिए भारतने अमरीका को उसकी GPS सिस्टम के द्वारा सहायता करने का अनुरोध किया था जिसको अमेरिकाने नकार दिया, उल्लेखनीय है की कार्गिल युद्ध में दुश्मन ऊंचाई पर थे जिससे भारतीय सेना उनको
ठीक तरह से निशाना नहीं बना पा रही थी जब की उनके लिए भारतीय सेना पर निशाना लगाना
काफी आसान था। इस अनुभव से सीख लेते हुए भारतने नेविगेशन सिस्टम पर आत्मनिर्भरता की
ओर बढ़ने के विषय मे सोचा और जन्म हुआ स्वदेशी नेविगेशन कार्यक्रम के उपग्रह नौवहन प्रणाली
यानि NaVIC का।
भारत की स्वदेशी नेविगेशन सिस्टम NaVIC
NavIC
यानी नेविशगेशन विद इंडियन कॉन्सटिलेशन, भारतीय
अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की तरफ से डेवलप एक स्वतंत्र
स्टैंड-अलोन नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है। प्रारंभ में भारतीय क्षेत्रीय नौवहन प्रणाली
(IRNSS : Indian Regional Navigation Satellite System) कार्यक्रम का नाम NaVIC (Navigation with Indian Constellation) रखा गया। वर्ष 2006 में 17.4 करोड़
डॉलर की लागत वाले प्रोजेक्ट नाविक की शुरुआत हुई थी। इस प्रोजेक्ट के तहत अवकाश मे
7 उपग्रह प्रक्षेपित किए जानेवाले थे। इसके 2011 के अंत तक
पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था, परंतु इस शृंखला का प्रथम उपग्रह
IRNSS-1A का प्रक्षेपण जुलाई 2013 में हुआ, 2014 के बाद इस कार्यक्रम में तेजी आई और इस हश्रुंखला का अंतिम उपग्रह IRNSS-1I को 2018 में प्रक्षेपित कर इस प्रणाली को पूरा किया गया। नाविक में आठ
उपग्रह शामिल हैं। यह भारत और पड़ोश के देशो सहित 1,500 किमी
तक के पूरे भूभाग को कवर करता है। यह प्रणाली अपने दायरे में आनेवाले सभी क्षेत्रों
की सटीक स्थिति एवं संबन्धित सूचनाएंउपलब्ध करने में सक्षम हो इस तरह से इसे डिजाइन
किया गया है। वर्तमान में, NavIC का उपयोग सीमित है। इसका
उपयोग सार्वजनिक वाहन ट्रैकिंग में किया जा रहा है, गहरे
समुद्र में जाने वाले मछुआरों को आपातकालीन चेतावनी अलर्ट प्रदान करने के लिए। ये
उन जगहों पर प्रयोग में लाया जा रहा है जहां कोई टेरेरेस्टियल नेटवर्क कनेक्टिविटी
नहीं है। साथ ही प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित जानकारी को ट्रैक करने और प्रदान
करने के लिए है। स्मार्टफोन में इसे सपोर्ट उपलब्ध करना अगला कदम है। कारगिल में GPS
के लिए भारत आत्मनिर्भर नहीं होने के कारण जो नुकशान हमें भुगतना पड़ा
ऐसा अब हमारी स्वदेशी प्रणाली होने के करना नहीं होगा क्यूंकी भारत के पास अपनी स्वयं
की नेविगेशन प्रणाली है और उसका नियंत्रण एवं संचालन भारत के ही पास है। NaVIC
के संचालन एवं रख रखाव के लिए पूरे भारत में करीब 18 संचालन केन्द्रों
का निर्माण किया गया है।
NaVIC
अन्य नेविगेशन सिस्टम से अलग कैसे हैं?
नाविक और अन्य नेविगेशन सिस्टम में मुख्य अंतर इन की
तरफ से आवृत्त प्रदेश है। GPS दुनिया भर में उपभोगकर्ताओं की आवश्यकता
को पूरा करता है। GPS के सैटेलाइट प्रतिदिन दो बार पृथ्वी का
परिभ्रमण करते हैं। वहीं, नाविक वर्तमान में भारत और आस-पास
के क्षेत्रों में उपयोग के लिए है। GPS की तरह, तीन अन्य नेविगेशन सिस्टम हैं जो सम्पूर्ण वैश्विक एरिया को कवर करते है, इनमें यूरोपीय संघ का गैलीलियो, रूस का ग्लोनास और
चीन की बाइडो शामिल हैं। जापान द्वारा संचालित QZSS, जापान
पर फोकस करने के साथ एशिया-ओशिनिया क्षेत्र को कवर करने वाला एक अन्य रिजनल
नेविगेशन सिस्टम है। भारत की 2021 उपग्रह नेविगेशन मसौदा
नीति में कहा गया है कि सरकार NavIC सिग्नल की उपलब्धता
सुनिश्चित करने के लिए ' रीजनल से ग्लोबल तक कवरेज का
विस्तार' करने की दिशा में काम करेगी। इस तरह NaVIC दुनिया के किसी भी हिस्से में अपनी सेवाएं देगा। सरकार ने अगस्त में कहा,
स्थिति सटीकता के मामले में नाविक संयुक्त राज्य अमेरिका के GPS जितना अच्छा है।