बुधवार, 26 अक्टूबर 2022

भारत का सब से शक्तिशाली रॉकेट : LVM-3

       भारत का सब से शक्तिशाली रॉकेट : LVM-3



भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को LVM3 M2/OneWebIndia-1 मिशन के सफल प्रक्षेपण के साथ एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार किया। LVM3 रॉकेट ने लगभग 6 टन पे लोड को लोअर-अर्थ ओर्बिट में स्थापित किया, जो अब तक किसी भी इसरो मिशनने अंतरिक्ष में पहुंचाया हुआ सब से अधिक है। LMV-3 M2 की सफल उड़ानने गगनयान जैसे उत्सुकता से प्रतीक्षित मिशनों के लिए इसरो के सबसे उन्नत प्रक्षेपण यान LVM3 रॉकेट की व्यवहार्यता को न केवल फिर से सत्यापित किया, बल्कि भारी उपग्रह प्रक्षेपण बाजार में इसरो के एक गंभीर खिलाड़ी रूप के दावे की भी पुष्टि की है। 

वर्तमान में बहुत कम देशों के पास 2 टन से अधिक वजन वाले उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की क्षमता है, इसरो भी कुछ समय पहले तक अपने भारी उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए यूरोप के एरियन रॉकेटों की सेवाएं लेता था लेकिन अब इसरो भी  उन देशो की श्रेणी में इसरो भी शामिल हो गया है। LVM3 रॉकेट, जिसे पहले GSLV Mk-III कहा जाता था, भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रमों के अधिक महत्वाकांक्षी भागों - मानव मिशन, चंद्र पर लैंडिंग और गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए अन्य देशों की निर्भरता को निकट भविष्य में समाप्त करने का वाहन भी बन सकता है।


भारत में वर्तमान में तीन परिचालन प्रक्षेपण वाहन हैं- पोलार सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल या PSLV, जिसके एक से ज्यादा  संस्करण हैं; जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल या GSLV Mk-II; और लॉन्च व्हीकल मार्क-3 या LVM3.

   1993 से अब तक PSLV के उपयोग से 53 सफल मिशनों को अंजाम दिया गया है, PSIV की अब  केवल दो उड़ानें विफल रही हैं। GSLV-Mk II रॉकेट का इस्तेमाल 14 मिशनों में किया गया है, जिनमें से पिछले साल अगस्त में हुआ उसको गिनकर कुल मिलाकर चार उड़ान विफल हो गए हैं । LVM3 ने चंद्रयान 2 मिशन सहित पांच बार उड़ान भरी है, और सभी उड़ानें सफल रही है। इसके अलावा, इसरो एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान (RLC) पर भी काम कर रहा है जो अन्य रॉकेटों के विपरीत अंतरिक्ष में कचरे के रूप में समाप्त नहीं होगा इसे वापस लाया जा सकता है और एक से ज्यादा बार उसका उपयोग भी किया जा सकता है।

इसरो LVM3 जैसे रॉकेट को स्वदेशी रूप से विकसित करने के लिए पिछले तीन दशकों से अधिक समय से प्रयास कर रहा था। ऐसा प्रक्षेपण यान जो भारी वेतन भार ले जा सके, अंतरिक्ष में अधिक गहराई तक उद्यम कर सके ऐसी आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप न केवल रॉकेट के आकार में भारी वृद्धि होती है, बल्कि इंजनों और उपयोग किए जा रहे ईंधन के प्रकार में भी बदलाव की आवश्यकता होती है। LVM3 ऐसी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इसरोने पिछले तीन दशकों से जो उच्चतम प्रयास किए उसकी परिणति है।

    जमीन पर या पानी पर चलने वाले वाहनों की तुलना में, रॉकेट परिवहन, परिवहन का एक अत्यंत जटिल माध्यम हैं। अंतरिक्ष यात्रा की अनूठी प्रकृति है की उसे गुरुत्वाकर्षण के जबरदस्त बल पर काबू पाना होता है इस कारण से किसी भी अंतरिक्ष मिशन के प्रक्षेपण-समय भार का 80 से 90 प्रतिशत के बीच ईंधन, या प्रणोदक होता है जब की यात्री या पेलोड में रॉकेट के वजन का मुश्किल से 2 से 4 प्रतिशत हिस्सा होता है।

      उदाहरण के लिए, LMV3 रॉकेट का उत्थापन द्रव्यमान 640 टन है, और यह पृथ्वी की निचली कक्षा (Lower Earth Orbitस :LEO) तक ले जा सकता है – जो लगभग 200 किमी है। जो पृथ्वी की सतह से - मात्र 8 टन है। पृथ्वी से लगभग 35,000 किमी की दूरी पर आगे स्थित भूस्थैतिक स्थानांतरण कक्षा ( Geostationary Transfer Orbit : GTO)तक  बहुत कम वजन ले जा सकता है, लगभग केवल 4 टन। हालांकि, अन्य देशों या अंतरिक्ष कंपनियां के द्वारा इसी कार्य के लिए उपयोग किए जा रहे रॉकेट की तुलना में एलएमवी जरा भी कमजोर नहीं है।

     इसरो द्वारा अपने भारी पेलोड के लिए अक्सर यूरोपियन स्पेस एजंसी के एरियन 5 रॉकेट का उपयोग किया जाता है, जिसका उत्थापन द्रव्यमान 780 टन है, और यह 20 टन पेलोड को पृथ्वी की निचली कक्षाओं में और 10 टन को जीटीओ तक ले जा सकता है।

     स्पेसएक्स का फाल्कन हेवी रॉकेट सबसे शक्तिशाली मॉडम लॉन्च वाहन माना जाता है, जो लॉन्च के समय 1,400 टन से अधिक वजन का होता है, और 60 टन वजन वाले पेलोड ले जा सकता है।

अंतरिक्ष में जिस गंतव्य की ओर प्रेक्षेपण को प्रक्षेपित करना होता है, उस तरह के ईंधन-ठोस, तरल, क्रायोजेनिक, मिश्रण- और पे लोड के आकार का उपयोग किया जा रहा है। इनमें से किन्हीं दो चरों का चुनाव तीसरे के लचीलेपन पर गंभीर बढ़ाएँ उत्पन्न करता है, यह एक ऐसी स्थिति होती है जो अंतरिक्ष विश्व को जाननेवाले समुदाय में "रॉकेट समीकरण के अतिबलप्रयोग" के रूप में जाना जाता है।

पृथ्वी की निचली कक्षा में गुरुत्वाकर्षण बल सबसे मजबूत होता है जिससे वहाँ जाने में रॉकेट की अधिकांश ऊर्जा जल जाती है।

अंतरिक्ष में आगे की दूरी बहुत अधिक सरल है, और इसके लिए बहुत कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है। वास्तव में, एक रॉकेट को LEO (लगभग 4 लाख किमी का अजूमे) से चंद्रमा की यात्रा करने में में जितनी ऊर्जा लगती है उससे आधी अधिक ऊर्जा पृथ्वी से LEO (लगभग 200 किमी) की यात्रा करने लगती है। यही कारण है कि यह अक्सर कहा जाता है कि मानव जाति के लिए विशाल छलांग चंद्रमा पर कदम रखनानहीं थी, बल्कि LEO तक पहुंचने में थी।

यदि कोई अंतरिक्ष मिशन चंद्र, मंगल या किसी अन्य खगोलीय पिंड की ओर जाता है, तो उस गंतव्य का गुरुत्वाकर्षण का समीकरण एक आवशयक बिन्दु हो जाता है । एक उपग्रह को गंतव्य तक पहुंचने के लिए अंतरिक्ष की कक्षा को प्राप्त करने की तुलना में ऐसे अधिक ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है।

उपयोग में लिए जा रहे ईंधन की दक्षता रॉकेट की उड़ान में एक अन्य बाधा है। रॉकेट ईंधन के रूप में कई रसायनों का उपयोग किया जाता है, वे सभी अलग-अलग शक्ति से धक्का देते हैं। अधिकांश आधुनिक रॉकेट की उड़ान के विभिन्न चरणों को शक्ति प्रदान करने के लिए विभिन्न प्रकार के ईंधन का उपयोग किया जाता हैं। उदाहरण के लिए, LMV3 में शुरुआती स्टेज में ठोस ईंधन होता है जो बूस्टर की तरह लिफ्टऑफ के दौरान अतिरिक्त धक्का प्रदान करता है, फिर तरल ईंधन होता है और अंतिम चरण मे क्रायोजेनिक ईंधन होता है ।

मानव जहां चंद्र पर एक स्थायी स्टेशन स्थापित करने और अंतरिक्ष में अधिक से अधिक सामान ले जाने के सपने देख रहा है वहाँ रॉकेट की क्षमता गंभीर रूप से सीमित है। रॉकेट इंजीनियरिंग में दो प्रकार के नवाचार हैं जिन्हें भविष्य के मिशनों के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए नियोजित किया जा सकता है, जैसे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन और अन्य सुविधाओं का निर्माण किया गया है ऐसे ही रॉकेट अंतरिक्ष में एसेम्बल किया जा सके ऐसे बड़े ढांचे के पार्ट्स को लेकर अंतरिक्ष में एक से ज्यादा यात्राएं कर सकता है। दूसरा चंद्र और मंगल पर उपलब्ध संसाधनों के उपयोग की संभावना है, वास्तव में, सभी चंद्र मिशन में भविष्य इस संभावना को तलाशने के लिए तैयार हैं। 


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