गुरुवार, 3 नवंबर 2022

भारत के अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान

 








 

 

क्या होता है सैटेलाइट लोंच वेहिकल ?

किसी भी देश की संचार व्यवस्था तथा सुरक्षा को मजबूत करने में विभिन्न मानव निर्मित कृत्रिम उपग्रहों की अहम भूमिका होती है, ऐसे उपग्रहों को अंतरिक्ष की अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित करना होता हैकिसी भी कृत्रिम उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजने के लिए हमें एक यान की आवश्यकता पड़ती है जिसकी सहायता से उस उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित किया जाता है जिसके लिए ऐसे दक्ष वाहनों की आवश्यकता होती है, यह बहुत ही बडी चुनौती हैजो सुरक्षित तरीके से इन उपग्रहों को अंतरिक्ष तक ले जा सके इसी यान को अंग्रेजी में सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV अर्थात Satellite Launch Vehicles)और हिंदी में उपग्रह प्रक्षेपण यान कहा जाता है। सैटेलाइट लौंच वेहिकल एक प्रकार का रोकेट प्रोपेलर होता है जिसका प्रयोग कर कृत्रिम उपग्रहों को अंतरिक्ष में (विशेषकर पृथ्वी की कक्षा या उससे पार) भेजा जाता है। SLV अर्थात Satellite Launch Vehicles एक ऐसा वाहन है, जिसकी सहायता से किसी सेटेलाइट यानी उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजा जाता है। सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV अर्थात Satellite Launch Vehicles इसके प्रकारों की बात करें तो SLV के मुख्यतः निम्नलिखित प्रकार हैं।

  1. उपग्रह प्रक्षेपण यान : Satellite Launch Vehicles (SLV)
  2. संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान : Augmented Satellite Launch Vehicle (ASLV)
  3. ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान : Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV)
  4. भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान : Geosynchronous Satellite Launch Vehicle (GSLV)
  5. लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान : Small Satellite Launch Vehicle (SSLV)

उपग्रह प्रक्षेपण यान : Satellite Launch Vehicles (SLV)

उपग्रह प्रक्षेपण यान या एसएलवी (SLV) परियोजना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा 1970 के       दशक में उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए मिसाइल मैन' के नाम से प्रसिद्ध डो. एपीजे अब्दुल कलाम की अध्यक्षता में की गयी थी। उपग्रह प्रक्षेपण यान का उद्देश्य उपग्रह को 400 किलोमीटर की ऊंचाई तक 40 किलो तक के पेलोड को अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित करना था। यह उपग्रह प्रक्षेपण यान चार चरण वाले ठोस इंधनयुक्त इंजन से लैस रॉकेट था। उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएलवी-3) का पहला प्रक्षेपण 10 अगस्त 1979 को श्रीहरिकोटा से हुआ, इसमें 35 किलोग्राम (77 पौंड) का रोहिणी उपग्रह पेलोड के तौर पर था परन्तु दोषपूर्ण वाल्व के कारण वाहन लांच के 317 सेकंड के बाद बंगाल की खाड़ी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया और यह प्रक्षेपण विफल रहा। उसके बाद दुसरा प्रक्षेपण 18 जुलाइ 1980 के दिन 35 किलोग्राम (77 पौंड) का रोहिणी उपग्रह के साथ हुआ जो सफल हुआ। तीसरी उडान 31 मई 1981 के दिन 38 किलोग्राम (84 पौंड) वजन के रोहिणी उप्ग्रह के साथ हुइ और उपग्रह निश्चित कक्षा में स्थापित नहि होने के कारण दुर्भाग्यवश यह उडान असफल हुइ तीन उडानो में से दो असफल होने के बावजुद इसरो के वैज्ञानिकोने अपने प्रयास नही छोडे और SLV-3 का चौथा और अंतिम प्रक्षेपण करीब दो वर्ष पश्चात 17 अप्रैल 1983 के दिन सफलतापुर्वक किया गया, SLV-3 के सभी चार उपग्रह प्रक्षेपण यान को शार(SHAR) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के उपग्रह प्रक्षेपण यान लॉन्च पैड से लॉन्च किये गये थे। इस प्रक्षेपण यान के द्वारा भारत में, भारत के वैज्ञानिको के द्वारा निर्मित रोहिणी उपग्रह को प्रक्षेपित किया गया।

 

संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान : Augmented Satellite Launch Vehicle (ASLV)

संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (Augmented Satellite Launch Vehicle - ASLV) SLV-3 के पप्श्चात भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा SLV-3 से अधिक शक्तिशाली और भू-स्थिर कक्षा में पेलोड के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए 1980 के दशक के दौरान शुरू किया गया था। इसका डिजाइन उपग्रह प्रक्षेपण यान पर आधारित था। संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (ASLV) में पांच चरण ठोस ईंधन के इंजन का प्रयोग किया गया। संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (ASLV)  पृथ्वी की निचली कक्षा में पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर की उंचाइ पर 150 किलो के उपग्रहों स्थापित करने में सक्षम था।

ASLV कार्यक्रम के तहत श्रीहरिकोटा हाई एल्टीट्यूड रेंज में SLV launch pad से चार विकासात्मक उड़ानें संचालित की गईं. पहली दो विकासात्मक उड़ानें जो क्रमशः 24 मार्च, 1987 और 13 जुलाई, 1988 को हुईं, सफल नहीं हो सकीतीसरी विकासात्मक उड़ान 20 मई, 1992 को आयोजित की गई थी जिसमे उपग्रह निश्चित भ्रमणकक्षा में स्थिर नही हो पाया और गलत भ्रमण-स्थिरीकरण के कारण जल्दी निष्क्रीय हो गया और यह प्रक्षेपण आंशिकरुप से सफल रहा। ASLV की चौथी और अंतिम उडान (ASLV-D4) 5 मई, 1994 को संचालित किया गया, जो 106 किलोग्राम के SRSS-C2 उपग्रह को रखने में इच्छित कक्षा में स्थापित करने में सफल रहा।वर्ष 1994 में अंतिम लॉन्च के बाद, ASLV कार्यक्रम अनिश्चित काल के लिए समाप्त कर दिया गया।

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान : Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV)


ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान : Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) भारत की तिसरी पीढी का प्रक्षेपण यान है, यह भारत की पहली लॉन्च वीइकल है जिसमें लिक्विड स्टेज है यानी लिक्विड रॉकेट इंजन का इस्तेमाल किया गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा अपने सुदूर संवेदी उपग्रह ( Indian Remote Sensing (IRS) satellite) को सूर्य समकालिक कक्षा (sun-synchronous orbits) में प्रक्षेपित करने के लिये विकसित किया गया है। एसएलवी और एएसएलवी उपग्रहो को केवल भू-स्थिर कक्षा में प्रक्षेपित करने में सक्षम थे जबकी पीएसएलवी उपग्रहो को सूर्य समकालिक कक्षा (sun-synchronous orbits) में प्रक्षेपित करने में सक्षम है,पीएसएलवी की एक ओर विषेशता यह है की वो छोटे आकार के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में भी भेजने में सक्षम है। पीएसएलवी चार स्टेजों में बंटा हुआ रॉकेट है. इसकी पहली और तीसरी स्टेज में सॉलिड रॉकेट मोटर्स का इस्तेमाल हुआ है. जबकि दूसरी और चौथी स्टेज लिक्विड रॉकेट और इंजन से लैस है. पीएसएलवी में इनके अलावा स्ट्रैप्स का इस्तेमाल होता है, जो पहली स्टेज में रॉकेट को ऊंचाई तक ले जाने में ताकत देता है.

पीएसएलवी का प्रथम विकास प्रक्षेपण 20 सितम्बर1993 के दिन 846 किलोग्राम वजन के भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह 1 को लेकर श्रीहरिकोटा लौंच पेड से किया गया था, हालांकि सोफ्टवेर में त्रुटी के कारण यह प्रक्षेपण उडान भरने के केवल 700 सेकंड में ही बंगाल की खाडी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया. ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान : Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) को कुल 37 बार लौंच किया गया जिसमें पीएसएलवी-जी: 12 उडानेपीएसएलवी-सीए: 11 उडाने और पीएसएलवी-एक्सएल : 14 उडाने हुई उसमें से 35 उडाने सफल रही. 29 सितंबर 1997 के दिन भेजी गई 1 उडान  आंशिक रुप से सफल रही जबकी 31 अगस्त 2017 के दिन की 1 उडान असफल हुई.

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान : Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) के संस्करण

इसरो ने विभिन्न मिशन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पीएसएलवी के कई संस्करणो को विकसित किया है। वर्तमान में पीएसएलवी के दो परिचालन संस्करण हैं - एक है कोर-अलोन (पीएसएलवी-सीए) जो स्ट्रैप-ऑन मोटर्स के बिना का है, और दुसरा है (पीएसएलवी-एक्सएल) संस्करण, जिसमें छह विस्तारित लंबाई (एक्सएल) स्ट्रैप-ऑन मोटर्स हैं, इस कोंफ्रिगेशन के द्वारा पीएसएलवी 3,800 किग्रा (8,400 पाउंड) के पेलोड को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में  और सन सिंक्रोनस ऑर्बिट कक्षा में 1,800 किग्रा (4,000 पाउंड) तक की पेलोड को प्रक्षेपित करने में सक्षम हैं। पीएसएलवी को अलग-अलग वर्जन में विभाजित किया गया है. इनमें PSLV-G, PSLV-CA, PSLV-XL,PSLV-DL, PSLV-QL और जिसको विकसित करने का कार्य अभी चालु है ऐसा PSLV-3S शामिल हैं

  1. PSLV-G (पीएसएलवी-जी) : पीएसएलवी-जी, पीएसएलवी का  स्टांडर्ड या 'जेनेरिक' वर्जन है। पीएसएलवी-जी संस्करण में चार चरण है विकल्पत: प्रयोग करने हेतु ठोस और तरल इंधन उपयोग होता है, पीएसएलवी में 9 टन प्रोपलंट लोडिंग के साथ छह स्ट्रैप-ऑन मोटर्स (पीएसओएम या एस9) का इस्तमाल होता है। इस संस्करण के द्वारा 1,678 किलोग्राम (3,699 पाउंड) से 622 किमी (386 मील) तक सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (सन सिंक्रोनस ऑर्बिट - Sun-synchronous orbit) में लॉन्च करने की क्षमता थी। पीएसएलवी-जी के बंद होने से पहले का अंतिम परिचालन प्रक्षेपण पीएसएलवी-सी35 था।
  2. PSLV-CA (पीएसएलवी-सीए) : PSLV-CA, CA का अर्थ है "कोर अलोन", मॉडल का सर्व प्रथम बार 23 अप्रैल 2007 उपयोग में लाया गया। CA मॉडल में PSLV स्टांडर्ड संस्करण द्वारा उपयोग किए गए छह स्ट्रैप-ऑन बूस्टर शामिल नहीं हैं, अपितु दो SITVC टैंक के साथ पहले चरण के लिये अतिरिक्त दो बेलनाकार वायुगतिकीय स्टेबलाइजर्स के साथ रोल कंट्रोल थ्रस्टर मॉड्यूल संलग्न हैं। CA संस्करण के चौथे चरण में इसके स्टांडर्ड संस्करण की तुलना में 400 किग्रा (880 पौंड) कम प्रोपलंट है। पीएसएलवी-सीए की क्षमता 1,100 किग्रा (2,400 पाउंड)  622 किमी (386 मील) की दुरी तक सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (सन सिंक्रोनस ऑर्बिट - Sun-synchronous orbit) तक लॉन्च करने की है।
  3. PSLV-XL (पीएसएलवी-एक्सएल) पीएसएलवी-एक्सएल (PSLV-XL) पीएसएलवी-जी अथवा पीएसएलवी स्टांडर्ड का उन्नत संस्करण (upgraded version) है, जो 12 टन प्रोपेलंट से लैस करके स्ट्रेच्ड स्ट्रैप-ऑन बूस्टर द्वारा अधिक शक्तिशाली बनाया गया है। पीएसएलवी-एक्सएल लिफ्ट-ऑफ पर 320 टन वजन रहता है, बड़े स्ट्रैप-ऑन मोटर्स (PSOM-XL या S12) के कारण पीएसएलवी-एक्सएल अधिक पेलोड क्षमता प्राप्त करता है। इसरो ने PSLV के लिए स्ट्रैप-ऑन बूस्टर के उन्नत संस्करण (Improved version) का 29 दिसंबर 2005 को सफलतापूर्वक परीक्षण किया। पीएसएलवी-सी11 के द्वारा चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण पीएसएलवी-एक्सएल का प्रथम प्रयोग था। पीएसएलवी के यह प्रकार 1,800 किग्रा (4,000 पाउंड) के पेलोड को सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (सन सिंक्रोनस ऑर्बिट - Sun-synchronous orbit) में स्थापित करने की क्षमता रखता है। एक्सएल वैरियंट अब तक का सबसे शक्तिशाली राकेट है जिसका इस्तेमाल चंद्रयान और मंगलयान जैसे मिशन में हो चूका है।
  4. PSLV-DL (पीएसएलवी-डीएल)‌ : पीएसएलवी-डीएल संस्करण में 12 टन वजन के प्रोपलंटवाले दो स्ट्रैप-ऑन बूस्टर हैं पीएसएलवी-डीएल संस्करण का उपयोग करने वाली पहली उड़ान 24 जनवरी 2019 को पीएसएलवी-सी44 ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) ने की। पीएसएलवी-सी44 1,257 किग्रा (2,771 पाउंड) पेलोड को 600 किमी (370 मील) सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (सन सिंक्रोनस ऑर्बिट - Sun-synchronous orbit) तक लॉन्च करने में सक्षम है।
  5. PSLV-QL (पीएसएलवी-क्यूएल) : पीएसएलवी-क्यूएल संस्करण में प्रत्येक में 12 टन प्रोपलंट हो ऐसे चार ग्राउंड-लाइट स्ट्रैप-ऑन बूस्टर हैं। पीएसएलवी-क्यूएल की पहली उड़ान  1 अप्रैल 2019 को हुइ और प्रक्षेपण यान का नाम पीएसएलवी-सी45 रखा गया था। इसकी क्षमता 1,523 किग्रा (3,358 पाउंड) पेलोड को 600 किमी (370 मील) दुरी पर सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (सन सिंक्रोनस ऑर्बिट - Sun-synchronous orbit) में लॉन्च करने की है।
  6. PSLV-3S (पीएसएलवी-3S) (Concept - संकल्पना : पीएसएलवी-3एस की कल्पना पीएसएलवी के तीन चरणों वाले संस्करण के रूप में की गई है, जिसमें इसके छह स्ट्रैप-ऑन बूस्टर जोडा गया है और दूसरे चरण के तरल इंधन को हटा दिया गया है। पीएसएलवी -3 एस का कुल उत्थापन द्रव्यमान (Lift-off mass) 175 टन और 550 किमी लॉ अर्थ ओर्बिट (LEO) में 500 किलोग्राम पेलोड प्रक्षेपित करने की क्षमता अपेक्षित है।

पीएसएलवी के रेकोर्ड

 

पीएसएलवी ने छोटे उपग्रहों के लिए राइडशेयर सेवाओं के अग्रणी प्रदाता के रूप में विश्वभर में विश्वसनीयता प्राप्त की है, इसके कई बहु-उपग्रह परिनियोजना अभियान राइड-शेयरिंगजिसमें आमतौर सहायक पेलोड प्राथमिक रुप से  भारतीय होता है साथ साथ अन्य पेलोड भी होते  हो स्फलतापुर्वक लोंच की है  22 जून, 2016 में इस यान ने पीएसएलवी सी-34 के माध्यम से रिकॉर्ड 20 उपग्रह एक साथ छोड़े और इससे पहले 28 अप्रैल 2008 को इसरो ने एक साथ 10 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजकर एक ही बार में सबसे ज़्यादा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजने का विश्वरिकॉर्ड बनाया था उसे तोड दिया था। 15 फरवरी 2017 को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन लॉन्चिंग सेंटर से पीएसएलवी-सी37 ने 104 उपग्रह एक साथ अंतरिक्ष में भेजे . इस सफल प्रक्षेपण में 104 उपग्रहों में अमेरिका के 96, भारत के 3 और इजरायल, हॉलैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड और कजाकिस्तान के भी सैटेलाइट शामिल थे. इस से पुर्व रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने एक साथ 37 उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण कर रेकोर्ड बनाया था जिसे भारतने केवल तोडा अपितु एक साथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित करने में सफलता हासिल करने वाला विश्व का पहला देश बन गया. भारत के अंतरिक्ष संशोधन अनुसंधान इसरो के पीएसएलवी ने जुन  2022 तक कुल 36 देशो के 345 उपग्रहो को अंतरिक्ष में सफलतापुर्वक प्रक्षेपित किया है.

 

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान : Geosynchronous Satellite Launch Vehicle (GSLV)

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) : जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) प्रोजेक्ट 1990 में जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट्स के लिए भारतीय लॉन्च क्षमता हासिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है।  जीएसएलवी अपने डिजाइन और सुविधाओं में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान यानि पीएसएलवी से बेहतर है। यह तीन श्रेणी वाला प्रक्षेपण यान होता है जिसमें पहला ठोस-आधार या पुश वाला, दूसरा तरल दबाव वाला यानि लिक्विड प्रापेल्ड तथा तीसरा क्रायोजेनिक आधारित होता है। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं। इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है। जीएसएलवी लगभग 5,000 किग्रा (11,000 पाउंड) को पूर्व की निचली पृथ्वी की कक्षा (Low Earth Orbit : LEO :एलईओ) या 2,500 किग्रा (5,500 पाउंड) (एमके II संस्करण के लिए) को 18 डिग्री भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा (Geostationary Transfer Orbit :GTO : जीटीओ) में स्थापित कर सकता है।

 

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान के अलग अलग संस्करण:

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV)  के तीन संस्करण इसरोने विकसीत किये है I जिस भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) में रूसी क्रायोजेनिक चरण (Russian Cryogenic Stage : CS : सीएस) का उपयोग करता है उस जीएसएलवी रॉकेट को जीएसएलवी मार्क I के रूप में नामित किया गया हैजिस भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) में स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) इंजन का उपयोग किया जाता है उस संस्करणों को जीएसएलवी मार्क II और जीएसएलवी मार्क III नाम से नामित किया गया है। जीएसएलवी मार्क III का नाम हाल ही में बदलकर लॉन्च वाहन मार्क 3 (LVM 3) किया गया हैसभी जीएसएलवी प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किए गए हैं।


  1. GSLV Mark I : 
    GSLV मार्क I की पहली विकासात्मक उड़ान में पहला चरण 129 टन (S125) का था और यह लगभग 1500 किलोग्राम भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा (Geostationary Transfer Orbit :GTO : जीटीओ) में लॉन्च करने में सक्षम था। दूसरी विकासात्मक उड़ान ने S125 चरण को S139 से परिवर्तित किया गया था, इसमें 138 टन वजन के प्रोपलंट के साथ प्रथम उडान में उपयोग में ली गई ठोस इंधंनवाली मोटर का उपयोग किया गया था। तरल इंधनवाले इंजनों की सभी चैम्बरो के दबाव को हाइ प्रोपलंट द्रव्यमान और इंधन की कार्यक्षमता सक्षम करने के लिये बढ़ाया गया था। इन सुधारों ने जीएसएलवी को अतिरिक्त 300 किलोग्राम पेलोड ले जाने के लिये सक्षमता प्रदान की। GSLV मार्क I, GSLV-F06 की चौथी परिचालन उड़ान में 15 टन प्रोपलंट लोडिंग के साथ C15 नामक एक लंबा तीसरा चरण था और इसमें 4 मीटर व्यास वाला पेलोड फेयरिंग भी लगाया गया था।
  2. GSLV Mark II : GSLV Mark II (जीएसएलवी मार्क II) में रूसी क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग किया जाता था, GSLV Mark II उसका विकसीत संस्करण हैI GSLV Mark II (जीएसएलवी मार्क II में इसरो द्वारा विकसित किया गया क्रायोजेनिक इंजन, सीई-7.5 का उपयोग करता है, और 2500 किलोग्राम को भूस्थिर स्थानांतरण कक्षा में लॉन्च करने में सक्षम है। 2018 से लॉन्च किये जानेवाले जीएसएलवी के लिये 6% बढ़ा हुआ थ्रस्ट देनेवाले "विकास" इंजन का संस्करण विकसित किया गया था। "विकास" इंजन को 29 मार्च 2018 को प्रथम बार GSAT-6A लॉन्च के दूसरे चरण में उपयोग में लाया गया और इस इंजन के बारे में पुरे विश्व को जानकारी प्राप्त हुइ। इसका उपयोग भविष्य के मिशनों के लिये चार विकास इंजनों के पहले चरण के बूस्टर के तौर पर किया जानेवाला था।
  3. GSLV Mark III GSLV Mark III(जीएसएलवी मार्क III) : जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क III (GSLV Mk3) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित एक तीन-चरण मध्यम-लिफ्ट लॉन्च वेहिक्ल है। मुख्य रूप से संचार उपग्रहों को भूस्थिर कक्षा में लॉन्च करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।अपने पूर्ववर्ती GSLV Mk II की तुलना में GSLV Mk III में अधिक पेलोड क्षमता है।जीएसएलवी-III का विकास की योजना 2000 के दशक में बनाइ गइ और उस पर कार्य भी शुरू कर दीया गया, शुरुआती योजना के अंतर्गत वर्ष 2009-2010 में इसके प्रथम प्रक्षेपण अपेक्षित किया गया था परंतु कई कारणो से इस कार्यक्रम में देरी होती चली गइ जिसमे सब से बडा विक्षेप था 2010 में हुए भारतीय क्रायोजेनिक इंजन को मीली विफलता। जीएसएलवी मार्क III के विकास के कार्य में अनेक मुश्किले और विक्षेप के बाद अंतत: एक उपकक्षा परीक्षण उड़ान (Sub-Orbital Test Flight) तीसरे निष्क्रिय क्रायोजेनिक चरण के साथ सफलतापूर्वक 18 दिसंबर 2014 को कि गयीI इसरो ने सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 5 जून 2017 को जीएसएलवी एमके III का पहला कक्षीय परीक्षण (Orbital Test) सफलतापूर्वक किया। जीएसएलवी एमके III के प्रथम कक्षीय परीक्षण की विशेष बात यह थी की इसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के भविष्य के भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिए एक प्रायोगिक परीक्षण वाहन क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोग (Crew Module Atmospheric Re-entry Experiment या CARE का भी सफलतापुर्वक परिक्षण किया गया.

GSLV Mark III GSLV Mark III (जीएसएलवी मार्क III) की विशेष उपलब्धिया

GSLV Mk III  (जीएसएलवी मार्क III) की मुख्य रुप से बडी उपलब्धि वर्तमान में हम गीन सकते है जिसमें सर्वप्रथम है अपने प्रथम कक्षीय परीक्षण में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के भविष्य के भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिए एक प्रायोगिक परीक्षण वाहन क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोग ( CARE : Crew Module Atmospheric Re-entry Experiment) का सफलतापुर्वक परिक्षण किया गया, दुसरी उपलब्धी यह है की इसी GSLV Mk III  (जीएसएलवी मार्क III) के द्वारा भारत के महात्वाकांक्षी चंद्रयान -2 का भी प्रक्षेपण किया गया थाएक चंद्र ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर शामिल हैं, जो सभी स्वदेशी रूप से विकसित किए गए थे और इसका उपयोग भारतीय मानव स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम के तहत पहला क्रू मिशन गगनयान को ले जाने के लिए किया जाएगा। मार्च 2022 में, यूके स्थित वैश्विक संचार उपग्रह प्रदाता वनवेब ने इसरो के साथ पीएसएलवी के साथ जीएसएलवी एमके III पर वनवेब उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए एक समझौता किया जिस के तहत पहला प्रक्षेपण 22 अक्टूबर 2022 को हुआ, 'एलवीएम-3-एम2/वनवेब इंडिया-1 मिशन ने पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए 36 उपग्रहों को इंजेक्ट किया गया। इस रॉकेट की क्षमता 8,000 किलोग्राम तक के उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने की है। इसरो के अनुसार, मिशन में वनवेब के 5,796 किलोग्राम वजन के 36 उपग्रहों के साथ अंतरिक्ष में जाने वाला यह पहला भारतीय रॉकेट बन गया है। LVM3-M2 मिशन के सफल प्रक्षेपण के बाद ISRO ने अंतरिक्ष की एक विशेष कक्षा में पेलोड लगाने के लिए वाहन की क्षमता पर किसी भी अस्पष्टता को दूर करने के लिए GSLV Mk3 का नाम बदलकर LVM 3 कर दिया

 

कोई टिप्पणी नहीं:

संवैधानिक संतुलन: भारत में संसद की भूमिका और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

भारत के लोकतांत्रिक ढांचे में, जाँच और संतुलन की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न संस्थाओं की भूमिकाएँ सावधानीपूर्वक परिभाषित की गई है...