भारत में करंसी का इतिहास 2500 साल पुराना हैं। बात सन 1917 की है जब 1 रुपया 13 डॉलर के बराबर हुआ करता था। वर्ष 1947 में भारत स्वतंत्र हुआ तब 1 रूपया 1 डॉलर कर दिया गया। स्वतंत्रता के समय देश पर कोई कर्ज नहीं था। वर्ष 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना के लिए सरकार ने कर्ज लिया और इसके बाद यह सिलसिला चलता रहा। 1 रूपए में 100 पैसे होंगे, ये बात सन 1957 में लागू की गई थी। पहले इसे 16 आने में बांटा जाता था। अगर अंग्रेजों का बस चलता तो आज भारत की करंसी पाउंड होती लेकिन रुपए की मजबूती के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ। वर्ष 1948 से वर्ष 1966 के बीच रुपया लगातार गिरता चला गया और इंदिरा गांधीने 6 जुन1966 के दिन रुपये का अवमुल्यन करने की घोषणा कर दी और 1 डोलर के सामने रुपये की किमत 7.50 रुपये हो गयी जो अवमूल्यन से पहले 4.76 रुपये थी, रुपया गिरते गिरते वर्ष 1975 में 1 डॉलर 8.39 रूपए हो गया, रुपये के गिरने कि यह परम्परा ऐसी चली की रुपया 1985 में 1 डॉलर 12 रूपए तक महेंगा हो गया।
यह वो दौर था जब देश में राजनितिक अस्थिरता चारो तरफ दिख रही थी, भारत की अर्थ व्यवस्था जैसे ढह जायेगी ऐसे आसार दिख रहे थे, 1991 आते आते पुरा देश बेतहाशा मंहगाई की जंजिर में जैसे फंसता जा रहा था, यह वो समय था जब कभी भारतीय रीजर्व बेंक के गवर्नर रहे प्रतिष्ठीत अर्थशास्त्री मनमोहंसिन्ह भारत के अर्थमंत्री बने, विकास दर कम होता जा रहा था, ऐसा माना जाता है कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे कठिन दौर था, इस दौर में राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद का 7.8%, ब्याज भुगतान सरकार के कुल राजस्व संग्रह का 39%, चालू खाता घाटा (CAD) सकल घरेलू उत्पाद का 3.69% और थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति लगभग 14% थी और फॉरेन रिर्जव कम होने की कगार पर आ गया था, थोडे दिन तक कि आयात का बिल दे पाये इतना हो गया था भारत का फॉरेन रिर्जव भंडार, इन सब परिस्तिथियों में भारत विदेशियों को भुगतान नही कर पा रहा था जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा भारत को दिवालिया घोषित किया जा सकता था, अतः इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए सरकार ने भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन किया और विनिमय दर 24.58 रूपये/1अमेरिकी डॉलर हो गयी। वित्तमंत्री मनमोहनसिन्ह के उपाय कारगर नहि हो रहे थे, 1993 में एक डॉलर 31.37 रूपए। 2000-2010 के दौरान यह एक डॉलर की कीमत 40-50 रूपए तक पहुंच गई। 2013 में तो यह हद पार हो गई और यही एक डॉलर की कीमत 65.50 रूपए तक पहुंच गई।
भारत में प्रथम बार कागज की नोट
RBI, ने जनवरी 1938 में पहली बार 5 रूपए की पेपर करंसी छापी थी जिस पर किंग जार्ज-6 का चित्र था। इसी साल 10,000 रूपए का नोट भी छापा गया था लेकिन 1978 में इसे पूरी तरह बंद कर दिया गया। आजादी के बाद पाकिस्तान ने तब तक भारतीय मुद्रा का प्रयोग किया जब तक उन्होनें काम चलाने लायक नोट न छाप लिए।
भारतीय नोट पर महात्मा गांधी की जो फोटो छपती हैं वह तब खींची गई थी जब गांधीजी, तत्कालीन बर्मा और भारत में ब्रिटिश सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत फ्रेडरिक पेथिक लॉरेंस के साथ कोलकाता स्थित वायसराय हाउस में मुलाकात करने गए थे।
यह फोटो 1996 में नोटों पर छपनी शुरू हुई थी। इससे पहले महात्मा गांधी की जगह अशोक स्तंभ छापा जाता था। भारत के 500 और 1,000 रूपये के नोट नेपाल में नहीं चलते। 500 का पहला नोट 1987 में और 1,000 का पहला नोट 2000 में बनाया गया था।
भारत में 75, 100 और 1,000 रूपए के भी सिक्के छप चुके हैं।1 रूपए का नोट भारत सरकार द्वारा और 2 से 1,000 तक के नोट RBI द्वारा जारी किये जाते हैं। एक समय पर भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए 10 का नोट 5thpillar नाम की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी किए गए थे।
10 रूपये के सिक्के को बनाने में 6.10 रूपए की लागत आती हैं। हर सिक्के पर सन के नीचे एक खास निशान बना होता हैं आप उस निशान को देखकर पता लगा सकते हैं कि ये सिक्का कहां बना है। मुंबई – हीरा ◆, नोएडा – डॉट. हैदराबाद – सितारा ★ कोलकाता- कोई निशान नहीं। नोटों पर सीरियल नंबर इसलिए डाला जाता हैं ताकि आरबीआई(RBI) को पता चलता रहे कि इस समय मार्केट में कितनी करंसी हैं। रूपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी करंसी हैं।
2 जनवरी 1918 में ब्रिटिश सरकार ने एक ढाई (2.5) रुपए का नोट जारी किया था. साल 2018 में इस दुर्लभ नोट के सौ साल पूरे हुए हैं. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक ये नोट सफेद कागज़ पर छापा गया था और इसपर जॉर्ज पंचम की मुहर छपी थी. इस नोट पर ब्रिटिश फाइनेंस सेक्रेट्री एम एम एस गब्बी के सिग्नेचर थे
ये नोट सात सर्किल्स के हिसाब से प्रिफिक्स थे. ये सात सर्किल कानपुर (c), बॉम्बे (B), कराची (K), लाहौर(L), मद्रास (M) और रंगून (R). ये नोट शुरुआत में इन इलाकों में ही चलता था. एक समय इस ढाई रुपए की कीमत 1 डॉलर के बराबर थी.
जिस दौर में ये ढाई रुपए का नोट जारी हुआ था उस समय भारत में 'आना' सिस्टम था. एक रुपए में सोलह 'आने' होते थे. इसका मतलब हुआ कि ढाई रुपए के नोट में 40 'आने' होते हैं.
साल 1926 में ब्रिटिश सरकार ने ये नोट बंद कर दिया और दोबारा जारी नहीं किया. अब ये नोट दुर्लभ बन गया है. इसके बाद एक नीलामी में ढाई रुपए का ये नोट 6,40,000 का बिका था.
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