सोमवार, 12 नवंबर 2018

थलसेना के आधुनिकीकरण की योजना - M-777 और K-9 होवित्जर तोप

कहा जाता है "जीससे दुश्मन डरते हैं वह देश सर्वदा प्रगति करता है"

भारतीय सेना को 31 वर्षों के दीर्घकाल बाद नई आर्टीलरी मीली। बोफोर्स मार्च 1986 के बाद या फिर ऐसे कहा जाए कि बोफोर्स तोप के घोटाले के 31 वर्षों बाद दिनांक 9/11/18 को संरक्षण मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने भारतीय सेना को M777 अल्ट्रा लाइट वेइट होवित्जर आर्टीलरी और K9 को समर्पित किया।
इस 31 वर्षों में ऐसा प्रश्न उठ रहा था कि भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की कोशिश क्यों नहीं हो रही ? विश्व के हथियारों में बदलाव आ चुका है परंतु भारत की सेना क्युं 31 वर्ष पुरानी तकनीक के साथ जुज़ रही है ? समस्त विश्व की सेनाएं आधुनिक तकनीक बनें हथियारों से लैस है और भारतीय सेना क्यों 30-35 वर्ष पुरानी तकनीक से बनें हथियारों से लड रही है ? ऐसा महसूस हो रहा था जैसे संपूर्ण संरक्षण व्यवस्था को बोफोर्सालिसिस हो गया था, और खासकर 2004 के पश्चात इस बोफोर्सालिसिस ओर गहेरा हो गया था जब तत्कालीन संरक्षण मंत्री ए.के. एंटनी ने कहा कि सरकार के पास सेना के लिए जैट खरीदने के पैसे नहीं है । इस दौरान एक दौर ऐसा भी आया था जब 1999 में वाजपेई सरकार के कार्यकाल में भारतीय सेना के आधुनिकीकरण की पुरी योजना बनाई गई थी जीसे Field Artillery Rationalisation plan (FARP) फिल्ड आर्टीलरी रेशनालाइजेशन प्लान नाम दिया गया था । इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2027 तक 220 रैजिमेन्ट को अलग अलग आधुनिक आर्टीलरी प्रणाली से लैस करना था, इसके हेतु 3000 - 3600 आर्टीलरी 155 मिमी/39 कैलिबर की हल्के वजन वाली होवित्जर आर्टीलरी, 155 मिमी/52 कैलिबर टौड, माउन्टैन, सेल्फ प्रोपेल्ड (ट्रेक्ड और व्हीलर) तोपों का अधिग्रहण करना था हालांकि कुछ समय से इस योजना को कार्यान्वित करने में बिजली जैसी गति देखने को मिली है जिसे तीन चार वर्ष पहले पुरे दशक तक नजरंदाज कर दिया गया था।
आखिर भारतीय थल सेना के लिए अच्छे दिन आ गये, 1999 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार ने थलसेना के आधुनिकीकरण की जो योजना बनाई थी वो जमीनी वास्तविकता बनी जब अनेक टेन्डर्स को जांचने के बाद 2016 में 145 M-777 हलके वजन की होवित्जर तोपें और 2017 में 100 K-9 सेल्फ प्रोपेल्ड तोपों के अधिग्रहण का निर्णय लेकर ओर्डर दिया गया।
M777 और K9 दोनों तोपों का उत्पादन नरेन्द्र मोदी सरकार के अति महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट Make In India के अंतर्गत बनाया जायेगा। M-777 बनाने वाली अमेरिका की कंपनी बीएइ सिस्टम ने भारत में इस तोपों को बनाने के लिए महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम के साथ हाथ मिलाया है जबकि दक्षिण कोरिया की हान्वा टेकविन भारत में लार्सन एंड टुब्रो (L&T) के साथ मिलकर K-9 का एसेम्बल करेंगी। M-777 और K-9 होवित्जर तोप की विशेषताएं क्या है ?
M-777 की विशेषताएं :
M-777 विश्व के पटल पर सबसे पहले अफगान युद्ध के दौरान आई थी। कुछ संरक्षण विशेषज्ञों की मानें तो इस होवित्जर तोप विश्व में करीब 1200 की संख्या में उपयोग में लाई जा रही है।एम-777 होवित्जर तोप वर्तमान विश्व में अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के पास है और अब भारत इस क्लब में शामिल होगा। कुल 145 एम-777 होवित्जर तोप भारत खरीदेगा जिसमें से 5 रेडी टु फायर मोड़ में भारत को मिल चुकी है, 20 तोप मे 2019 में भारत को मिलेगी जबकि बाकी की 120 एम-777 तोपों का एसेम्बलिंग Make in India के अंतर्गत अमेरिका की कंपनी BAE systems की भारतीय भागीदार महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम में किया जाएगा। अमेरिकी कंपनी बीएई सिस्टम्स और महिन्द्रा डिफेंस सिस्टम जुन 2019 से 5 तोप प्रति महीने सौंपेंगी और 24 महीनों में सभी 145 तोपों को बनाकर भारत की थलसेना को सौंप दिया जाएगा। भारतीय थलसेना ने इस हल्के वजन की होवित्जर तोपों की कुल सात रैजिमेन्ट बनाने की योजना बना रही है जिसमें प्रत्येक रैजिमेन्ट में 18 तोपें होंगी। एम-777 होवित्जर तोपों का परिवहन काफी आसान है, इसे हवाई जहाज या हैलिकॉप्टर से उंचाई पर पहुंचाया जा सकता है, इस विशेषता को देखते हुए भारत चीन सीमा के लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश जैसी ऊंची जगह पर तैनात करने की योजना भी बनाई जाएगी। कुछ रिपोर्ट के अनुसार भारत एम-777 हल्के वजन के होवित्जर तोपों की माउन्टैन स्ट्राईक कोर्प की रचना की भी योजना है। इस तोपों के परिवहन के लिए 15 चिनूक हैलिकॉप्टर अगले वर्ष भारत को मिलने की डिल की गई है।M-777 हल्के वजन की होवित्जर तोप का वजन 4200 किलोग्राम है जो बोफोर्स तोप के 13,100 किलोग्राम की तुलना में काफी कम है। इसकी बैरल 5.08 मीटर अथवा 16.7 फ़ीट है। M-777 होवित्जर तोप की बीना सहायता की फायरिंग रैंज 24.7 किलोमीटर तक की है जबकि रोकेट की सहायता से रैंज बढ़कर 30 किलोमीटर तक की होती है। यह होवित्जर तोप तीव्र फायरिंग की स्थति में 5 राउंड प्रति मिनट और लगातार फायरिंग की स्थति में 2 राउंड प्रति मिनट गोले दाग सकती है। इस तोप की सबसे बड़ी विशेषता है हमला कर के भाग जाना अर्थात् हीट एन्ड रन इस विशेषता से दुश्मन देश के लिए इसका स्थान ढुंढना काफी मुश्किल हो जाता है।
K-9 सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप
इस तोप के नाम में "K" पूर्व राष्ट्रप्रमुख ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम को अभिप्रेरित है। भारतीय थलसेना में के-9 आकर 50 वर्ष पुरानी, 1964 में अधिग्रहीत की गई 105 मिमी Abbot की जगह लेगी ऐसा संरक्षण विशेषज्ञों का मानना है। के-9 तोपों का अधिग्रहण अब तक के इतिहास में किया गया सब से अधिक गति से किया गया अधिग्रहण कहा जाता है। इस तोपों को राजस्थान के रेगिस्तान में तैनात करने की योजना है, इससे लगता है कि K-9 भारत का पाकिस्तान की अमेरिकी तोप 109A5 को ज़वाब है। के-9 दक्षिण कोरिया की कंपनी हान्वा टेकविन के द्वारा बनाई और विकसित की है। भारत 100 के-9 सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप खरीदने वाला है, जिसमें से 10 तोपें दक्षिण कोरिया में बनाकर भारत लाई जाएगी और बाकी की 90 तोपों का एसेम्बलिंग भारत में हान्वा टेकविन की भारतीय भागीदार एल एंड टी के गुजरात के हजीरा रैंज में होंगी। अभी भारत को 10 तोपें मिल चुकी है बाकी की 90 तोपों में से 40 तोप नवंबर 2019 में और 50 तोप नवंबर 2020 में भारतीय थलसेना को सौंप दी जाएगी।
K-9 तोप की गोलेबारी की रैंज 28-38 किलोमीटर तक की है। यह तोप बर्स्ट मोड के युद्ध में प्रति मिनट 3 गोले दाग सकती है, इन्टैंस मोड़ में 15 गोले प्रति 3 मिनट फायर कर सकती हैं और सस्टैन मोड़ में 60 गोले प्रति 60 मिनट दागने की क्षमता रखती है। इस तोप की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि सीधे फायरिंग में 1 किलोमीटर तक सटीकता से लक्ष्य भेद करने में सक्षम है। संरक्षण विशेषज्ञों की राय से मोबाइल वोरफेर के लिए विश्व की सबसे श्रेष्ठ तोपों में से एक है। इस तोप का कीसी भी पहीए वाले वाहन से परिवहन किया जा सकता है। के-9 सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप जंगल, रेगिस्तान, ठंडे प्रदेशों में असरकारक कार्य करने में कारगर साबित हो चुकी है। यह सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप नाटो मानकों (NATO Standard) पर खरी उतरी है और अब इसे भारतीय मानकों में सफलतापूर्वक ढाला गया है। भारतीय थलसेना के-9 की 20 तोपों की एक ऐसी कम से कम 5 रैजिमेन्ट बनाने की योजना बना रही है, जिसके तहत पहली रैजिमैंट जुलाई 2019 में तैयार हो जाएगी ऐसा संरक्षण विशेषज्ञों का मानना है। यह सेल्फ प्रोपेल्ड होवित्जर तोप ओल वेल्डेड स्टील के बख्तर से लैस है, इसे चलाने के लिए 7 जवान तैनात किए जाएंगे उनमें से 3 कम्प्युटर से तोप के निर्देश देंगे, बाकी के 4 जवानों की सुरक्षा के लिए इस तोप में सुरक्षा छत्र उपलब्ध है।इस तोप में 50% पूर्जे भारत में बने हुए होंगे, भारत के पास इस तोप के निर्यात करने का भी अवकाश होगा।
अंत में इतना जरूर लगता है कि आखिर भारतीय थलसेना के आधुनिकीकरण की योजना को लगा बोफोर्सोलिसिस अब खत्म हो गया है और भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की गति में बिजली जैसी तेजी का संचार हुआ है। 

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

વાહ ....

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